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गुलबर्ग कांड: अब सजा का ऐलान सोमवार को होगा

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अहमदाबाद :साल 2002 में हुए गुलबर्ग सोसायटी कांड के 24 दोषियों की सजा का ऐलान एक बार फिर सोमवार तक के लिए टाल दिया गया है. छह जून के बाद आज तीसरी बारहै जब सजा के ऐलान की तारीख का आगे बढाया गया है. जहां इस मामले में अभियोजन पक्ष ने दोषियों को कड़ी सजा […]

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अहमदाबाद :साल 2002 में हुए गुलबर्ग सोसायटी कांड के 24 दोषियों की सजा का ऐलान एक बार फिर सोमवार तक के लिए टाल दिया गया है. छह जून के बाद आज तीसरी बारहै जब सजा के ऐलान की तारीख का आगे बढाया गया है. जहां इस मामले में अभियोजन पक्ष ने दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की है वहीं बचाव पक्ष के वकील ने सजा सुनाए जाने के दौरान नरमी बरतने को कहा है. आपको बता दें कि गुलबर्ग सोसायटी कांड में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोग मारे गये थे.

अभियोजन पक्ष ने सोमवार को गुलबर्ग सोसायटी कांड के लिए दोषी सभी 24 लोगों के लिए मौत की सजा की मांग की थी. विशेष न्यायाधीश पी बी देसाई ने गुरुवार को आरोपी अभय भारद्वाज के वकील की दलीलें सुनीं. उन्होंने अभियोजन पक्ष के वकील की मौत की सजा या मौत होने तक उम्रकैद की सजा की मांगों के खिलाफ लंबी-चौडी दलीलें पेश कीं. आपको बता दें कि अदालत ने दो जून को मामले में 24 लोगों को दोषी ठहराया था और 36 अन्य को बरी कर दिया था.

लोगों को जलाया जिंदा

27 फरवरी 2002 को गोधरा के पास 59 लोगों की हत्या के एक दिन बाद अहमदाबाद के चमनपुरा इलाके के गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसक भीड़ ने हमला किया था. 28 फरवरी, 2002 को को हुए इस हमले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गये थे. एक प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हमलावरों की संख्या करीब 20 हजार थी. इस सोसाइटी में 29 बंगले और 10 फ्लैट थे, जिसमें एक परिवार पारसी और बाकी सभी मुसलिम परिवार रहते थे . भीड़ ने करीब चार घंटे तक सोसाइटी में मारपीट की, लोगों को जिंदा जला दिया.

जब भीड़ ने गुलबर्ग सोसाइटी को चारों तरफ से घेर लिया

घटना को याद कर एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि जब भीड़ ने गुलबर्ग सोसाइटी को चारों तरफ से घेर लिया, तो बच्चों, बुजुर्गों और औरतों ने इसी सोसाइटी में रहनेवाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी के दो मंजिला घर में पनाह ली. उन्हें उम्मीद थी कि जाफरी की जान-पहचान की वजह से शायद उनकी सुरक्षा का कोई उपाय हो जायेगा. लेकिन, हिंसक भीड़ ने घरों में आग लगाना शुरू किया. आखिर में एहसान जाफरी खुद बाहर आये और उन्होंने भीड़ से कहा, आपलोग चाहें तो मेरी जान ले लें, लेकिन बच्चों और औरतों को छोड़ दें. लेकिन, भीड़ ने उन्हें घर से घसीट कर बाहर लाया और मौत के घाट उतार दिया. घर को आग लगा दी. मूल रूप से मध्यप्रदेश के रहने वाले जाफरी छठी लोकसभा के सदस्य थे.

जाकिया को 2009 में मिली कामयाबी

पति की नृशंस हत्या के बाद जाफरी की विधवा जकिया जाफरी ने 14 साल तक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. जाकिया को 2009 में कामयाबी मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए एसआइटी को पूरे मामले की जांच के आदेश दिये थे. जाकिया ने आरोप लगाया था कि हमले के बाद उनके पति ने पुलिस और तत्कालीन मुख्यमंत्री सभी को संपर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की. गुलबर्ग सोसाइटी में 39 शव बरामद हुए थे, जबकि जाफरी व 14 साल के एक पारसी बच्चे अजहर मोडी समेत 31 लोगों को लापता बताया गया था. घटना के सात साल बाद 31 में से 30 को मृत घोषित कर दिया गया. मुजफ्फर शेख 2008 में जिंदा मिले. उन्हें एक हिंदू परिवार ने पाला और उनका नाम विवेक रखा. इधर, दंगे में अपनी पत्नी और बच्चों को खो देने वाले रफीक मंसूरी घटना के वक्त 31 साल के थे. वह पुराने दिनों को याद कर कहते हैं, हमने कभी सांप्रदायिक तनाव का माहौल नहीं देखा था. हमारी सोसाइटी के मुसलमान पड़ोस के हिंदुओं के साथ दीवाली और होली मनाते थे और हिंदू ईद के दिन हमारे घर आते थे.

सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी को सौंपी थी जांच

मार्च 2009 में जकिया जाफरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी को जांच का जिम्मा सौंपा. सितंबर, 2009 को ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई शुरू हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोर्ट की मदद करने के लिए वकील प्रशांत भूषण को एमाइकस क्यूरी नियुक्त किया. लेकिन, अक्तूबर, 2010 में भूषण इस केस से अलग हो गये. इसके बाद राजू रामचंद्रन को एमाइकस क्यूरी नियुक्त किया गया. एसआइटी ने जुलाई, 2011 में सुप्रीम कोर्ट को अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी. 28 फरवरी, 2002 को गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला किया गया. इसमें 69 लोग मारे गये. इस मामले में 66 आरोपी थे, जिसमें मुख्य आरोपी भाजपा के असारवा के पार्षद बिपिन पटेल थे. चार आरोपियों की ट्रायल के दौरान मौत हो गयी. मामले में 338 से ज्यादा गवाहों की गवाही हुई.

जानिये कब क्या हुआ

-गुलबर्ग सोसाइटी केस की जांच सबसे पहले अहमदाबाद पुलिस ने शुरू की थी. 2002 से 2004 के बीच छह चार्जशीट दाखिल की गयी.

8 जून, 2006 : एहसान जाफरी की बेवा जकिया ने शिकायत दर्ज करायी, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, कई मंत्रियों और पुलिस अफसरों को जिम्मेवार ठहराया गया.

7 नवंबर, 2007 : गुजरात हाइकोर्ट ने इस फरियाद को एफआइआर मान कर जांच करवाने से मना कर दिया.

26 मार्च, 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों (गुलबर्ग कांड समेत) की जांच के लिए आरके राघवन की अध्यक्षता में एक एसआइटी गठित की.

मार्च 2009 : फरियाद की जांच का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी को सौंपा.

सितंबर, 2009 : ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड का ट्रायल शुरू.

27 मार्च 2010 : नरेंद्र मोदी से एसआइटी ने पूछताछ की.

14 मई, 2010 : एसआइटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी.

8 फरवरी, 2012 : एसआइटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की.

10 अप्रैल, 2012: मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने मोदी और अन्य 62 लोगों को क्लीनचिट दी.

7 अक्तूबर, 2014 : सुनवाई के लिए जज पीबी देसाई की नियुक्ति.

22 फरवरी, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत को तीन महीने में फैसला सुनाने को कहा.

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