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भारत का अपना GPS सिस्टम, IRNSS-1G का सफल प्रक्षेपण, मोदी ने दी बधाई

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श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) : आईआरएनएसएस-1जी के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने अमेरिका के जीपीएस की तर्ज पर क्षेत्रीय दिशासूचक प्रणाली का अपना ऐतिहासिक अभियान आज पूरा कर लिया. यह उपग्रह इस तंत्र का सातवां और अंतिम उपग्रह है. आईआरएनएसएस-1जी जब एक माह के समय में संचालन शुरु कर देगा, तब भारतीय क्षेत्रीय दिशासूचक उपग्रह […]

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श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) : आईआरएनएसएस-1जी के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत ने अमेरिका के जीपीएस की तर्ज पर क्षेत्रीय दिशासूचक प्रणाली का अपना ऐतिहासिक अभियान आज पूरा कर लिया. यह उपग्रह इस तंत्र का सातवां और अंतिम उपग्रह है. आईआरएनएसएस-1जी जब एक माह के समय में संचालन शुरु कर देगा, तब भारतीय क्षेत्रीय दिशासूचक उपग्रह तंत्र क्षेत्रीय एवं समुद्री दिशा संचालन (नेविगेशन), आपदा प्रबंधन, वाहन के मार्ग का पता लगाने, यात्रियों एवं पर्यटकों को दिशाओं का पता लगाने में मदद करने, चालकों के लिए दृश्यात्मक एवं श्रव्यात्मक नेविगेशन की सुविधाएं उपलब्ध करवाएगा.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि पर वैज्ञानिकों की प्रशंसा करते हुए और देश के लोगों को बधाई देते हुए कहा, ‘इस सफल प्रक्षेपण के साथ, हम हमारी प्रौद्योगिकी के बल पर खुद अपने रास्ते तय करेंगे.’ मोदी ने कहा, ‘दुनिया इसे नाविक के रूप में जानेगी. नयी प्रौद्योगिकी हमारे लोगों, हमारे मछुआरों को लाभ पहुंचाएगी. यह वैज्ञानिकों की ओर से जनता को एक महत्वपूर्ण तोहफा है.’

इसरो का वर्कहाउस कहलाने वाले ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी33) ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद के पहले लॉन्च पैड से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट पर उडान भरी और आसमान को भेदता हुआ चला गया. यह अंतरिक्ष केंद्र चेन्नई से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. चार चरणीय इस रॉकेट ने उडान के लगभग 20 मिनट बाद आईआरएनएसएस-1जी को तय कक्षा में प्रवेश करवा दिया था. यह पीएसएलवी का लगातार 34वां सफल अभियान था, जिसने इसपर निर्भरता की एक बार फिर से पुष्टि कर दी.

कब-कब प्रक्षेपित हुए दिशासूचक उपग्रह

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि हालांकि आईआरएनएसएस चार उपग्रहों के साथ पहले से ही सक्रिय था, शेष तीन उपग्रह इसे ‘और अधिक सटीक और दक्ष’ बनाने के लिए जरुरी थे. आईआरएनएसएस में सात उपग्रह हैं, जो अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की तर्ज पर दिशा सूचक प्रणाली में पहले से ‘बेहतर सटीकता’ के साथ और लक्षित स्थिति के साथ सेवाएं देगा. इसरो ने छह अन्य उपग्रह प्रक्षेपित और संचालित किए थे. उनके नाम और प्रक्षेपण तिथियां इस प्रकार हैं-

आईआरएनएसएस-1ए – 1 जुलाई, 2013

आईआरएनएसएस-1बी – 4 अप्रैल 2014

आईआरएनएसएस-1सी – 16 अक्तूबर, 2014

आईआरएनएसएस-1डी – 28 मार्च, 2015

आईआरएनएसएस-1ई – 20 जनवरी, 2016

आईआरएनएसएस-1एफ – 10 मार्च 2016

सातो उपग्रह की कुल लागत 1420 करोड़ रुपये

इसरो के अधिकारियों के अनुसार, सातों उपग्रहों की कुल लागत 1420 करोड रुपये रही. आज के अभियान के लिए इसरो ने पीएसएलवी-एक्सएल की एक किस्म का इस्तेमाल किया, जिसमें छह मोटर लगी हैं. ये पहले चरण के तहत मिले धक्के को बढाते हुए रॉकेट को शक्तिशाली बनाता है. इस एक्सएल किस्म का इस्तेमाल आईआरएनएसएस के पूर्व के छह उपग्रहों के अलावा मंगलयान मिशन, चंद्रयान-1, एस्ट्रोसैट के प्रक्षेपण में भी किया गया. आईआरएनएसएस-1जी की अभियान अवधि 12 साल की है. यह एक माह में संचालित होगा. इसके साथ ही आईआरएनएसएस का पूर्ण संचालन शुरू हो जाएगा.

प्रधानमंत्री ने दी बधाई, ‘मेक इन इंडिया’ का दिया उदाहरण

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएसएलवी-सी33 के सफल प्रक्षेपण की आज प्रशंसा की जो सातवें दिशासूचक उपग्रह आईआरएनएसएस-1जी को लेकर अंतरिक्ष गया जिससे क्षेत्रीय दिशासूचक प्रणाली के लिए ऐतिहासिक मिशन पूरा हो गया. मोदी ने कहा कि इससे न केवल भारत को सहयोग मिलेगा बल्कि दक्षेस के सहयोगी देशों को भी लाभ होगा. मोदी ने टेलीविजन पर दिए संदेश में कहा, ‘सबसे पहले मैं इसरो के सभी वैज्ञानिकों और पूरी टीम को शुभकामना देना चाहता हूं. मैं भारत के लोगों को भी बधाई देता हूं.’

उन्होंने कहा, ‘अंतरिक्ष विज्ञान में हमारे वैज्ञानिकों ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं. दुनिया इसे नाविक के रूप में जानेगी.’ उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान के माध्यम से लोगों की जिंदगी में बदलाव लाया जा सकता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने इस तरह के सात दिशासूचक उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं जो सफल रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस सफल प्रक्षेपण के साथ हम प्रौद्योगिकी से युक्त अपनी राह खुद बनाएंगे. वैज्ञानिकों की तरफ से यह लोगों को बहुत बडा उपहार है.’ उन्होंने कहा, ‘हमारे प्रयास से न केवल भारत को फायदा होगा बल्कि दक्षेस देशों को भी लाभ मिलेगा.’ मोदी ने कहा कि इस नई प्रौद्योगिकी से देश के लोगों और खासकर मछुआरों को फायदा होगा. उन्होंने कहा, ‘यह ‘मेक इन इंडिया’, मेड इन इंडिया और मेड फॉर इंडियन्स का उदाहरण है. 125 करोड भारतीयों को नया नाविक मिला है.’

राष्‍ट्रपति और नेताओं ने भी दी बधाई

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी समेत कई नेताओं ने दिशासूचक उपग्रह आईआरएनएसएस-1जी के सफल प्रक्षेपण पर इसरो के वैज्ञानिकों को आज बधाई दी. राष्ट्रपति ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर लिखा, ‘आईआरएनएसएस-1जी ले जाने वाले पीएसएलवी-सी33 के सफल प्रक्षेपण पर इसरो की टीम को बधाई.’ वैज्ञानिकों की प्रशंसा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘इस सफल प्रक्षेपण के साथ, हम अपनी प्रौद्योगिकी के दम पर अपना रास्ता खुद तय करेंगे.’

अंसारी ने अपने बधाई संदेश में कहा कि इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये. ‘त्रुटिहीन प्रक्षेपण ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की क्षमताओं का प्रदर्शन किया है.’ रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने कहा, ‘हमारे देश के लिए यह और भी बडा मील का पत्थर है. इसरो ने हमें एक बार फिर गौरवांवित किया है. इस उपलब्धि के लिए सभी वैज्ञानिकों को बधाई. नरेंद्रमोदी का नेतृत्व प्रेरणादायी है.’ पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा, ‘इसरो को और आईआरएनएसएस समूह के सातवें एवं अंतिम उपग्रह आईआरएनएसएस-1जी को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करने वाले पूरे दल को बधाई.

हैशटैग ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया.’ आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने आईआरएनएसएस-1जी ले जाने वाले पीएसएलवी-सी33 के प्रक्षेपण की तारीफ करते हुए इसे ‘भारत के लिए एक और गौरवपूर्ण क्षण’ बताया. उन्होंने लिखा, ‘आईआरएनएसएस-1जी का प्रक्षेपण करने के लिए इसरो को हार्दिक बधाई. यह भारत के लिए एक और गौरवपूर्ण क्षण है.’ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘आईआरएनएसएस समूह के सातवें और अंतिम उपग्रह ‘आईआरएनएसएस-1जी के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को हार्दिक बधाई.’

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा, ‘आईआरएनएसएस-1जी के प्रक्षेपण पर इसरो को हार्दिक बधाई. हैशटैग प्राउड इंडियन.’ भारत ने आज आईआरएनएसएस-1जी के सफल प्रक्षेपण के साथ अमेरिका के जीपीएस की तर्ज पर एक क्षेत्रीय दिशा सूचक तंत्र का अपना अभियान सफलतापूर्वक पूरा कर लिया. यह उपग्रह इस समूह का सातवां और अंतिम उपग्रह है. इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय रॉकेट पीएसएलवी-सी33 के माध्यम से प्रक्षेपित किया गया.

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