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जुवेनाइल जस्टिस बिल राज्यसभा में पास

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नयी दिल्ली : देश की आत्मा को झकझोर देने वाले निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के तीन वर्ष बाद संसद ने आज किशोर न्याय से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दे दी. जिसमें बलात्कार सहित संगीन अपराधों के मामले में कुछ शर्तों’ के साथ किशोर माने जाने की आयु को 18 से घटाकर 16 वर्ष […]

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नयी दिल्ली : देश की आत्मा को झकझोर देने वाले निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के तीन वर्ष बाद संसद ने आज किशोर न्याय से संबंधित एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दे दी. जिसमें बलात्कार सहित संगीन अपराधों के मामले में कुछ शर्तों’ के साथ किशोर माने जाने की आयु को 18 से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है. इसमें किशोर न्याय बोर्ड के पुनर्गठन सहित कई प्रावधान किये गये हैं.

राज्‍य सभा में बिल पारित होने के बाद अब इसे राष्‍ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. ये बिल अगर कानून का रूप ले लेता है तो जघन्‍य अपराध के लिए 16 से 18 साल के उम्र के नाबालिग को व्‍यस्‍क माना जाएगा. जघन्‍य अपराध यानि जिसके लिए आईपीसी की धारा में सात साल से अधिक का सजा का प्रावधान है.
देश में किशोर न्याय के क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव डालने वाले किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) विधेयक को आज राज्यसभा ने ध्वनिमत से पारित कर दिया. इस विधेयक पर लाये गये विपक्ष के सारे संशोधनों को सदन ने खारिज कर दिया. लोकसभा इस विधेयक को पहले ही पारित कर चुकी है.
विधेयक को व्यापक विचार विमर्श के लिए प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग सरकार द्वारा स्वीकार नहीं किये जाने के विरोध में माकपा ने सदन से वाकआउट किया. इससे पूर्व विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में वे ही अपराध शामिल किये गये हैं जिन्हें भारतीय दंड विधान संगीन अपराध मानता है. इनमें हत्या, बलात्कार, फिरौती के लिए अपहरण, तेजाब हमला आदि अपराध शामिल हैं.
उन्होंने संगीन अपराध के लिए किशोर माने जाने की उम्र 18 से 16 वर्ष करने पर कुछ सदस्यों की आपत्ति पर कहा कि अमेरिका के कई राज्यों, चीन, फ्रांस सहित कई देशों में इन अपराधों के लिए किशोर की आयु नौ से लेकर 14 साल तक की है. उन्होंने कहा कि यदि पुलिस के आकडों पर भरोसा किया जाए तो भारत में 16 से 18 वर्ष की आयु वाले बच्चों में अपराध का चलन तेजी से बढ़ा है.
मेनका ने किशोर न्याय बोर्ड में किशोर आरोपी की मानसिक स्थिति तय करने की लंबी प्रक्रिया के संदर्भ में कहा कि ऐसा प्रावधान इसीलिए रखा गया है ताकि किसी निर्दोष को सजा न मिले. सदन में आज इस विधेयक को पेश करने और इस पर चर्चा के दौरान 16 दिसंबर के सामूहिक बलात्कार की पीडिता के माता पिता भी दर्शक दीर्घा में मौजूद थे.
इस विधेय के प्रावधान पिछली तारीख से प्रभावी नहीं होंगे. इस वजह से निर्भया मामले के नाबालिग दोषी पर विधेयक के प्रावधान लागू नहीं होंगे. उल्लेखनीय है कि इस नाबालिग दोषी को अदालत द्वारा रिहा कर दिया गया है. मेनका ने सदस्यों के इस आरोप को भी गलत बताया कि गरीबी के कारण किशोर ऐस अपराध करते हैं. उन्होंने कहा कि स्वीडन में एक भी व्यक्ति गरीब नहीं है, लेकिन उस देश में बलात्कार के सबसे ज्यादा मामले होते हैं.
उन्होंने कहा कि देश में कुछ बाल सुधार गृहों की स्थिति खराब हो सकती है लेकिन यह मौजूदा कानून को पारित नहीं करने का कारण नहीं बन सकता. उन्होंने कहा कि देश के हर पुलिस थाने में किशोर मामलों से संबंधित एक पुलिस अधिकारी पहले से ही तैनात है. उसके लिए अलग से तैनाती करने की आवश्यकता नहीं है.
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बाल सुधार गृहों के लिए पर्याप्त धन खर्च नहीं किए जाने के आरोपों को गलत बताते हुए मेनका ने कहा कि बाल सुधार गृहों में हर महीने प्रति बच्चा 750 रुपये व्यय किया जाता था जिसे 2014 में बढ़ाकर 2000 रुपये प्रति बच्चा कर दिया गया. किशोर न्याय बोर्ड के पुनर्गठन के लिए इस विधेयक में किए गए प्रावधानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अभी तक बाल सुधार गृहों की निगरानी और रखरखाव का मुआयना करने का जिम्मा केवल राज्य सरकारों पर था, लेकिन इस विधेयक में बाल सुधार के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ एनजीओ को मुआयने के काम में जोडा गया है. साथ ही पहली बार वरिष्ठ महिला वकीलों द्वारा इन सुधार गृहों का सामाजिक आडिट भी किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि एनजीओ द्वारा बाल सुधार गृहों के मुआयने का काम एक साल में शुरू हो जाएगा. कानूनों से समाज में बलात्कार जैसे अपराध नहीं रुक पाने के कई सदस्यों के तर्क पर मेनका ने कहा कि निर्भया कांड के बाद बलात्कार के खिलाफ कड़ा कानून बनाने के कारण पिछले दो वर्षों’ में बलात्कार के मामलों को दर्ज कराने के लिए महिलाएं अब अधिक सामने आ रही हैं और ऐसे मामले ज्यादा प्रकाश में आ रहे हैं.
उन्होंने कहा कि किसी किशोर द्वारा बलात्कार किए जाने जैसे अपराध को कभी भी ‘‘बचकाना कृत्य’ नहीं कहा जा सकता. मेनका ने कहा कि हर गांव में विशेष महिला पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी. यह व्यवस्था जल्द शुरू होगी. महिला विशेष पुलिस अधिकारियों द्वारा संबंधित गांवों में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की सूचना दी जाएगी.
यह विधेयक कानून बनने के बाद एक प्रतिरोधक की तरह काम करेगा. इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए कई सदस्यों ने ध्यान दिलाया कि किशोर विधेयक में बच्चों की खरीद फरोख्त के लिए पांच साल की सजा जबकि नशीले पदाथो’ के सेवन के लिए सात साल की सजा का प्रावधान है. इस पर चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि किसी भी वयस्क या अल्पवय को बेचना मानव तस्करी है जो भादंसं और अन्य कानूनों के तहत दंडनीय है.
जेटली ने स्पष्ट किया कि यदि कोई अपराध दो कानूनों के तहत आता है तो दोषी को कठोर वाली सजा मिलेगी. उन्होंने कहा कि इसमें कोई कमी नहीं है क्योंकि दोषी पाए जाने पर उसे कठोर सजा मिलेगी क्योंकि भादंसं में पहले से ही इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है.
इससे पहले विधेयक को चर्चा के लिए रखते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि इसके प्रावधानों से निर्भया मामले में भले ही असर नहीं होता हो लेकिन आगे के मामलों में नाबालिगों को रोका जा सकता है.
उन्होंने सदस्यों से इस विधेयक को पारित करने की अपील करते हुए कांगे्रस से कहा कि यह विधेयक उनका है. उन्होंने कहा कि इसकी शुरुआत आपने की थी और हम इसे पूर्ण कर रहे हैं. विधेयक के प्रावधानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक समग्र विधेयक है. बाल अपराधों के मामले में उम्र की सीमा कम किए जाने के प्रावधान वाले इस विधेयक में किशोर न्याय बोर्ड को कई अधिकार दिए गए हैं.
मेनका गांधी ने कहा कि किसी भी नाबालिग दोषी को सीधे जेल नहीं भेजा जाएगा. किशोर न्याय बोर्ड यह फैसला करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराधिक घटना में किसी किशोर अपराधी के लिप्त होने के पीछे उसकी मंशा क्या थी। बोर्ड यह तय करेगा कि यह कृत्य वयस्क मानसिकता से किया गया है या बचपने में. उन्होंने कहा कि ऐसे नाबालिग अपराधी को भी ऊंची अदालतों में अपील करने का अधिकार होगा.
विधेयक पर चर्चा के दौरान माकपा, द्रमुक तथा कांग्रेस के कई सदस्यों ने इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजे जाने का भी सुझाव दिया. उल्लेखनीय है कि 16 दिसंबर 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले में एक दोषी नाबालिग था. इस दोषी ने पिछले दिनों अपनी सजा पूरी कर ली और उसे रिहा कर दिया गया. उसकी रिहाई के खिलाफ मामला दिल्ली उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में गया. अदालतों ने मौजूदा कानून में ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं होने के कारण उस नाबालिग की रिहाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.
बलात्कार जैसे संगीन अपराध के लिए नाबालिग मानने की आयु 18 से घटाकर 16 वर्ष करने के मौजूदा विधेयक के राज्यसभा में पारित होने में विलंब के कारण समाज के कई वर्गों’ और विशेषकर सोशल मीडिया में विरोध जताया जा रहा था. स्वयं निर्भया के माता पिता इस विधेयक को पारित किए जाने की जोर शोर से वकालत कर रहे थे.
पिछले दिनों राज्यसभा में सरकार और विभिन्न दलों के नेताओं के बीच जिन छह विधेयकों को पारित किए जाने को लेकर सहमति बनी थी, उनमें किशोर न्याय संबंधी यह विधेयक सर्वोपरि था.
* क्या है कानून
गौरतलब है कि नए जुवेनाइल जस्टिस बिल में कहा गया है कि रेप, मर्डर और एसिड अटैक जैसे खतरनाक अपराधों में शामिल नाबालिगों को बालिग मानकर उसपर कार्रवाई की जाए. गंभीर अपराध करने वाले नाबालिगों पर केस आम अदालतों में और बालिगों के लिए कानून के अनुसार चलेगा. वर्तमान कानून के मुताबिक नाबालिग को ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक के लिए सुधार गृह में रखा जा सकता है.

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