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नेहरु के योगदान को स्वीकार नहीं करना, यही तो है ‘‘असहिष्णुता”” : गुलाम नबी

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नयी दिल्ली : संविधान के निर्माण में जवाहरलाल नेहरु जैसे नेताओं के योगदान को स्वीकार नहीं करने के लिए भाजपा पर हमला बोलते हुए कांग्रेस नेशुक्रवार को कहा कि इस रवैये से सत्तारुढ पार्टी की असहिष्णुता झलकती है जो शीर्ष स्तर से सड़कों तक आती है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने […]

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नयी दिल्ली : संविधान के निर्माण में जवाहरलाल नेहरु जैसे नेताओं के योगदान को स्वीकार नहीं करने के लिए भाजपा पर हमला बोलते हुए कांग्रेस नेशुक्रवार को कहा कि इस रवैये से सत्तारुढ पार्टी की असहिष्णुता झलकती है जो शीर्ष स्तर से सड़कों तक आती है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने आज आरोप लगाया कि सरकार बाबा साहब भीमराव अंबेडकर और संविधान पर चर्चा के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधने का प्रयास कर रही है और ‘‘असहिष्णुता” के कारण वह पंडित जवाहरलाल नेहरु के योगदान को स्वीकार नहीं कर पा रही है.

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उन्होंने कहा, आप जर्मनी की बात करते हैं लेकिन नेहरु के बारे में. उन्होंने कहा कि जब संविधान के निर्माण की बात होती तो पंडित नेहरु के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता जबकि हाल ही में उनकी 125वीं जयंती थी. गुलाम नबी ने कहा कि उनके योगदान का जिक्र नहीं करना ही ‘‘असहिष्णुता” है. यह उपर से शुरु होता है और नीचे तक जाता है. डॉ बीआर अंबेडकर की 125वीं जयंती समारोह के भाग के रूप में भारत के संविधान के प्रति प्रतिबद्धता पर राज्यसभा में हुई चर्चा में भाग लेते हुए आजाद ने सरकार और भाजपा पर निशाना साधा और कहा कि उसे अचानक बाबासाहब भीमराव अंबेडकर की याद क्यों आयी. उन्होंने कहा कि यह बदलाव अचानक कैसे हो गया.

गुलाम नबी ने कहा कि बाबासाहब को ढाल बनानकर तीर चलाने की कोशिश की गयी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस समय सदन में मौजूद थे. उन्होंने आरोप लगाया कि आजादी के बाद से आज तक कांग्रेस के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है और यह उसी का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को संविधान के प्रति प्रतिबद्धता जताने की जरुरत नहीं है और उसके नेताओं ने अपनी आराम की जिंदगी का त्याग कर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और अपनी पूरी जिंदगी जेलों में गुजार दी और अपना सबकुछ त्याग दिया.

आजाद ने कहा कि हमें प्रतिबद्धता जताने की जरुरत नहीं है और यह जरुरत उन्हें है जो उस आंदोलन का हिस्सा नहीं थे. उन्होंने कहा कि एक परिवार से जुड़े कई लोग हैं जो संविधान से सहमत नहीं हैं, उनके लिए प्रतिबद्धता जताना जरुरी है. उन्होंने इस क्रम में कहावत ‘‘देर आए, दुरुस्त आए” का जिक्र किया. उन्हाेंने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि कितनी खुशी होती अगर नेता सदन अरुण जेटली उन तमाम नेताओं को भी याद करते जिन्होंने संविधान बनाने में मदद की लेकिन उनकी चर्चा नहीं हुयी. उन्होंने आरोप लगाया कि इसका कारण ‘‘आंख कहीं थीं, निशाना कहीं था” है.

कांग्रेसनेता ने कहा कि 60 साल से निरंतर कोशिश की जा रही है और पिछले डेढ साल में यह कोशिश तेज हो गयी है कि सुभाषचंद्र बोस, सरदार पटेल पंडित जवाहरलाल नेहरु जैसे नेताओं को ‘‘लड़ाया” जाए. पहले यह सदन के बाहर होता था. भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि दूसरे के नेताओं को छीनने की कोशिश की जा रही है. ‘‘लेकिन कोई उन्होंने छीन नहीं सकता….. वे देश की संपत्ति हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अंग्रेजों की ‘‘विभाजन करो और राज करो” नीति पर चल रही है.

असहिष्णुता के मुद्दे पर सरकार पर हमला बोलते हुए आजाद ने कहा कि यह सत्तारुढ पार्टी द्वारा है. उन्होंने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘आप सहन नहीं कर पा रहे हैं. पेड़ में फल होता है तो वह नीचे झुक जाता है. लेकिन यहां पेड़ झुकता नहीं….डीएनए में कोई कसूर होगा. सत्ता फलदार पेड़ होती है.” उन्होंने लेखकों, कलाकारों को बधाई दी जिन्होंने ‘‘असहिष्णुता और अन्याय” के खिलाफ आवाज उठायी. उन्होंने कहा कि पिछले डेढ साल में देश में कई ‘‘अप्रिय” घटनाएं हुईं. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कुछ एक घटनाएं हुईं.

आजाद ने सवाल किया और कहा कि यह संविधान दिवस यानी 26 नवंबर की तारीख कहां से आ गयी जबकि वह दिन न तो गणतंत्र दिवस है और न ही स्वतंत्रता दिवस. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास कर रही है. प्रक्रिया से जुड़ा एक सवाल उठाते हुए आजाद ने कहा कि संविधान दिवस के संबंध में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की है जबकि संविधान और कानून के अनुसार यह मंत्रालय ऐसी अधिसूचना जारी नहीं कर सकता.

उन्होंंने दावा किया कि यह अधिसूचना अमान्य है. उन्होंने दावा किया कि अधिसूचना जारी होने के नौ दिन पहले ही सीबीएसई ने इस तारीख को 26 नवंबर को शिक्षण संस्थानों में समारोह बनाए जाने के लिए आदेश जारी किया था. बाबासाहब के अनुभवों और उनके योगदान का जिक्र करते हुए आजाद ने कहा कि वह महात्मा गांधी के बाद सबसे बड़े सामाजिक सुधारक थे. उन्होंने छुआछूत सहित विभिन्न सामाजिक बुराइयाें को दूर करने के लिए लोगों के बीच जाकर आंदोलन किया. उन्होंने कहा कि राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि संविधान की प्रारुप समिति का अध्यक्ष बाबासाहब से बेहतर कोई नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि हम आज जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, उन्होंने उस समय ही उन पर बात की थी. इन मुद्दों में समान अधिकार, आर्थिक विकास आदि शामिल हैं.

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