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नफरत के प्रतीक बने नेता!

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– हरिवंश – – केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन बेंगलुरु आये. एक दिसंबर को. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के घर जाने के लिए. मुंबई प्रकरण के शहीद, बिहार रेजीमेंट के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने मुख्यमंत्री अच्युतानंदन से मिलने से मना कर दिया. फिर भी मुख्यमंत्री उतावले और बेचैन थे. सांत्वना देने के लिए. घर के […]

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– हरिवंश –

– केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन बेंगलुरु आये. एक दिसंबर को. मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के घर जाने के लिए. मुंबई प्रकरण के शहीद, बिहार रेजीमेंट के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने मुख्यमंत्री अच्युतानंदन से मिलने से मना कर दिया. फिर भी मुख्यमंत्री उतावले और बेचैन थे. सांत्वना देने के लिए. घर के अंदर संदीप के पिता चीखने-चिल्लाने लगे थे. नहीं मिले. उन्होंने कहा, किसी सियासत की जरूरत नहीं.
– गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, अनामंत्रित हेमंत करकरे परिवार की मदद में दौड़ पड़े. एक करोड़ देने की घोषणा की. वह स्वर्गीय करकरे की पत्नी से मिलना चाहते थे. उनकी पत्नी ने नरेंद्र मोदी से मिलने से इनकार कर दिया. पैसा लेने से भी मना कर दिया.
– एनडीटीवी को नेताओं के प्रति नफरत और घृणा से भरे दो लाख एसएमएस मिले हैं. एनडीटीवी के कार्यक्रम में लोगों ने कहा किसी नेता को ‘टॉक शो’ में आमंत्रित न करें.
– दो दिन पहले मुंबई में लोगों ने बड़ा जुलूस निकाला. उनके हाथ में तख्तियां थी. बैनर थे. उन पर लिखे थे, नेताओं की इतनी सुरक्षा, निर्दोष जनता की हत्या? नेताओं की सुरक्षा वापस लें, वगैरह-वगैरह. यह भी लिखा कि अब भारतीय जग गये हैं, पर हिंदुस्तान के नेता कब जगेंगे?
– मराठी मानुष राज ठाकरे भी हेमंत करकरे के घर मिलने जाना चाहते थे. हेमंत करकरे की बहादुर विधवा पत्नी ने मिलने से मना कर दिया.
– तीन रोज पहले एक सर्वे हुआ. सर्वे के संदेश साफ हैं. लोग नेताओं से बहुत खफा हैं. 86 फीसदी लोग मानते हैं कि मुंबई में आतंकवादी हमले रोके जा सकते थे. 82 फीसदी लोग कहते हैं कि नेताओं में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की इच्छा नहीं है. 84 फीसदी लोग मानते हैं कि सरकार, आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए गंभीर काम नहीं कर रही.
ये घटनाएं दीवाल पर लिखी भविष्य की इबारतें हैं. नेताओं के प्रति गहरी घृणा और नफरत समाज में है. इन घटनाओं के संदेश, अगर नेता और राजनीतिक दल समझने को तैयार नहीं हैं, तो वे देश को एक खतरनाक अंधेरे और अनिश्चित भविष्य में झोंक देंगे. फ्रांस में राजाओं के खिलाफ क्रांति, रूस में जारशाही के खिलाफ नफरत और चीन में हुई क्रांति के इतिहास से भारतीय राजनीतिज्ञ सीख सकते हैं.
इतिहास के बारे में मान्यता है कि वह भविष्य को समझने में मदद करता है. भारतीय राजनेता, सरकारें और शासक अपने कामकाज, अपनी जीवन संस्कृति और आचरण से अपने लिए घृणा और नफरत ही आमंत्रित कर रहे हैं. जो नेता यह समझते हैं कि जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की उफान पर वे इतिहास बनायेंगे, सत्ता पायेंगे. उनके लिए ऊपर की घटनाएं गंभीर चेतावनी हैं.
केरल के मुख्यमंत्री भागे-भागे बेंगलुरु पहुंचे. मेजर उन्नीकृष्णनन के परिवार से मिलने. इसके पीछे मानस रहा होगा कि मेजर संदीप उन्नीकृष्णनन केरलाइट हैं. इसलिए वह उनके घर मिल कर केरल के लोगों की सहानुभूति पा लेंगे. इसी तरह मराठी मानुष राज ठाकरे हेमंत करकरे के घर जाना चाहते थे. अब लोग साफ समझ रहे हैं कि इन नेताओं का मकसद क्या है?
मकसद, पवित्र शहादत की गरिमा और मर्यादा रखना नहीं, बल्कि इस पवित्र कुर्बानी को राजनीतिक तिजारत में बदल देना. चाहे केरल के संदीप उन्नीकृष्णन का परिवार हो या मराठी हेमंत करकरे का परिवार. वे अच्छी तरह जानते हैं कि केरल के मुख्यमंत्री या राज ठाकरे को अचानक मिलने की जरूरत क्यों पड़ी? मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और हेमंत करकरे की शहादत की पवित्र नदी में डुबकी लगा कर अपने राजनीतिक पाप धो लें ! पर राजनीतिज्ञों के चाल और चेहरे लोग देखने और जानने लगे हैं. इसलिए केरल के मुख्यमंत्री और राज ठाकरे की क्षेत्रीयता भी काम नहीं आयी.
दरअसल राजनीति ने समाज के प्रति एक बड़ा अपराध किया है. समाज को खांचों में बांट कर. जाति में, धर्म में, क्षेत्रीयता में. महज अपने वोट बैंक के लिए. यह बात अब लोग समझने लगे हैं.
कहावत है, आप धोखा एक बार देंगे. पर उसी विषय पर बार-बार नहीं छल सकते. आजादी के बाद नेताओं का सपना अलग था. डॉ लोहिया ने उस सपने को सुंदर शब्दों में आवाज दी. कहा, हिंदू बहल इलाके से मुसलमान जीतें, मुसलिम बहल इलाके से हिंदू. उत्तर के लोग दक्षिण से जीतें, दक्षिण के लोग उत्तर से. राजा के खिलाफ मेहतरानी जीते….. हमें यह देश चाहिए. पर नेताओं ने क्या किया? अब यह गणित साफ हो गया है. इसलिए लोग नेताओं का चेहरा नहीं देखना चाहते.
होना तो यह चाहिए था कि सुरक्षा बल के बीस लोग मारे गये हैं. उत्तर से दक्षिण के. पूरब से पश्चिम के. इन सुरक्षाकर्मियों की शहादत ने भारत का भूगोल साफ कर दिया है. भारत पर विपत्ति आयी (मुंबई के बहाने) तो भारत के कोने-कोने के लोगों से बनी एनएसजी टीम के कमांडो ने कुर्बानी दी.
क्या अच्छा होता, हमारे सभी वरिष्ठ नेता और सरकारें इन बीस सुरक्षाकर्मियों की शहादत के प्रति सार्वजनिक शोक का आयोजन करतीं. जो 195 निर्दोष मारे गये, उनके प्रति राजनीतिक दल दिल्ली में सर्वदलीय सभा कर अपनी भूलों और पापों का सार्वजनिक प्रायश्चित करते. अपनी अकर्मण्यता, इनइफीशियंसी और अनएकाउंटबिलिटी (गैर जवाबदेही) के लिए शहीदों के परिवारों से सार्वजनिक माफी मांगते.
देश से, जनता से. बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों के जो गरीब मारे गये हैं, उनके प्रति हमारे नेता और सरकारें सदाशयता से राहत देते. अनाथ परिवारों को पालने का राष्ट्रीय जिम्मा लेते. पर ये छोटे मन के लोग बड़े पदों पर बैठे हैं.
एक वर्ग मोदी किस्म के नेताओं का है, जो हर नाजुक घड़ी पर गिद्ध दृष्टि रखता है. ये लोग राष्ट्रीय शोक और शहादत को, राजनीति में ऊपर बढ़ने की सीढ़ी के अवसर के रूप में देखते हैं. जब सुरक्षा के जवान मुंबई में भारत की आन, बान और शान बचाने में लगे थे, उस वक्त उन जगहों पर पहंच कर समस्या खड़ा करने का क्या औचित्य था? क्या नरेंद्र मोदी कोई सुरक्षा एक्सपर्ट हैं? अब देखिए विलासराव देशमुख को? जब मुंबई में हमले हए, तो वे केरल में थे.
उनके मुंहबोले डिप्टी (उपमुख्यमंत्री) ने इतनी बड़ी वारदात के बाद कहा कि यह मामूली घटना थी. ऐसी घटनाएं तो मुंबई में होती रहती हैं. मुंबई के मुख्यमंत्री ने अपने डिप्टी के इस बयान से बढ़ कर काम किया. वह 30 नवंबर को अपने अभिनेता पुत्र रीतेश देशमुख और फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा को लेकर ‘होटल ताज’ मुआयना पर गये. मानो तीर्थ यात्रा पर निकले हों. जिन जगहों पर भारत की इत, गरिमा, आनबान और शान बिखरी पड़ी है, सुरक्षाकर्मियों के शहादत के पवित्र खून पसरे हैं, जहां केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार, इंटेलिजेंस और नेताओं की आपराधिक विफलता के कारनामे पसरे हैं, वहां जनाब मुख्यमंत्री मुआयना करने जाते हैं.
वह भी फिल्मी लोगों के साथ. यह भारत की भावना को रौंदना है. अमेरिका में 9/11 हआ. वहां जगह-जगह लोगों ने ज्ञात-अज्ञात शहीदों की स्मृति में स्मारक बनाये. फूल चढ़ाये. वहां जाकर मौन रहे. आज भी ऐसे प्रतीक स्थानों से जो गुजरते और जाते हैं, वे चुपचाप जूते उतार कर आदर के साथ याद करते हैं. और यहां जिम्मेदार पदों पर बैठे राजनीतिज्ञों का यह गैरजिम्मेदराना आचरण?
नेताओं से, राजनीति से क्यों लोगों की नफरत बढ़ती गयी? आज लोग अपने रहनुमाओं के खिलाफ सड़कों पर हैं. अपने घरों में नहीं आने देना चाहते. इसके कारण साफ हैं. डॉ लोहिया के शब्दों में कहें, तो कथनी और करनी का फर्क. गांधी को याद करें, तो साधन और साध्य में फर्क होना. क्या केंद्र सरकार, महाराष्ट्र सरकार या शासन में बैठे लोग इन सवालों का जवाब देंगे?
1. मुंबई विस्फोट के बाद एक टेलीविजन परिचर्चा में एनएसजी (नेशनल सिक्यूरिटी गार्ड्स) के पूर्व निदेशक श्री कक्कड़ ने बताया कि एनएसजी का गठन अलग उद्देश्यों के लिए हुआ था. उसमें बाद में जोड़ा गया, नेताओं की सुरक्षा. एनएसजी के 600 कमांडों नेताओं की सुरक्षा में लगे हैं. हालांकि एनएसजी में जवानों की संख्या सीमित है. यह क्यों?
2. पूर्व गृह मंत्री शिवराज पाटील के कार्यकाल में लगभग बीस बड़े विस्फोट हुए. फिर भी अब तक वह गद्दी पर क्यों बने रहे? वह लोकसभा चुनाव हार गये थे, फिर उन्हें मंत्री बनाना क्या मजबूरी थी? उनके बेटे एक शराब कंपनी के निदेशक बने और गृह मंत्री के घर का पता दिया. भारत सरकार के गृह मंत्री का घर क्या बिजनेस का प्रतीक है? इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ.
3. मई में राजस्थान में विस्फोट हुए. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने कैबिनेट को बताया कि देश का सूचनातंत्र ध्वस्त हो गया है. सरकारी कामकाज में उच्चस्तर पर तालमेल नहीं है. शायद पहली बार कैबिनेट को सुरक्षा सलाहकार ने गर्वनेंस कोलैप्स (शासन तंत्र ध्वस्त) होने की स्थिति की जानकारी दी. राष्ट्रीय अखबारों की यह लीड खबर बनी. उसके बाद भी लगातार विस्फोट होते रहे? पर केंद्र सरकार, उसकी एजेंसियां कुंभकरण की नींद सोती रहीं. ऐसा क्यों?
4. सूचना है कि वर्ष 2005 में मछुआरों के संघ ने सरकार को सूचित किया था, मछलियों के नीचे आरडीएक्स रख कर भारत भेजा जा रहा है?
5. फरवरी में उत्तरप्रदेश में फहीम अहमद अंसारी पकड़ा गया. उसने कबूल किया कि लश्कर-ए-तैयबा मुंबई के पांच सितारा होटलों में विस्फोट की योजना बना रहा है. फहीम ने खुद ताज होटल, ओबेराय ट्राइडेंट होटल, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल स्टेशन, बंबई स्टॉक एक्सचेंज और पुलिस कमिशनर अॅाफिस का मुआयना किया. वह ताज और ट्राइडेंट की एक-एक लॉबी में घूमा. फहीम ने यह सब यूपी स्पेशल टास्क फोर्स को बताया. उसने यह भी बताया कि यह सारा काम समुद्र के रास्ते होनेवाला है. फिर भी यह हादसा हुआ. इससे बढ़ कर गैरजिम्मेदार काम और क्या?
6. यह भी सूचना आयी कि गृह मंत्रालय ने मुंबई में होनेवाले इन हमलों के बारे में अग्रिम सूचना दी थी. रतन टाटा ने भी बताया कि ताज पर हमले की पूर्व सूचना थी. फिर केंद्र और राज्य सरकारों ने क्या किये?
7. रात 9.30 बजे आतंकवादी हमला करते हैं और सुबह सात बजे के लगभग साढ़े नौ घंटा के बाद एनएसजी के जवान घटनास्थल पर पहुंच पाये. क्या हमारे सिस्टम या सरकार की यही इफीसियेंसी है? कौन है इसका गुनाहगार और दोषी?
8. क्या शिवराज पाटील व आरआर पाटील पर इसलिए कार्रवाई हुई, क्योंकि चुनाव नजदीक है? जनता अब सब जानती है. समझती है.
9. 1993 में मुंबई में विस्फोट हुए. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने तत्कालीन गृह सचिव एनएन वोरा के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बनायी. एनएन वोरा की रिपार्ट ने साफ-साफ बताया कि भारत की इस बदहाली के कारण क्या हैं?
नेता, अपराधी, उद्योगपति और भ्रष्टाचारियों का गंठजोड़. मुंबई विस्फोट के बारे में जांच रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हुआ था कि कस्टम, पुलिस और नेवल भ्रष्ट अफसरों के सहयोग, इनइफिसियेंसी या लापरवाही से ही विस्फोटक पदार्थ भारत लाये गये? ऐसे भ्रष्ट अफसरों के संरक्षक हैं, नेता और सरकार में बड़े पदों पर बैठे लोग. आज अफगानिस्तान, कराची और मुंबई के बीच ड्रग की अरबों की स्मगलिंग हो रही है.
इसका पैसा किनके पास जाता है? भ्रष्ट अफसर, चोर नेता और राजनीतिक दलालों के पास. और यही लोग आज व्यवस्था में सबसे आगे हैं. भारतीय राजनीति में आज दलालों का वह प्रभुत्व और महत्व है, जो आज के पहले कभी नहीं रहा. जहां सांसद बिकते हैं, लोकतंत्र में बहुमत खरीदा और बेचा जाता है, जहां की राजनीति को ब्लैकमनी चलाती है, वहां के नेताओं और राजनीति के प्रति जनता में आग होना स्वाभाविक है.
अगर यह स्थिति है, तो जनता के मन में नेता, सरकार या प्रशासन के प्रति कहां से और कैसे सम्मान पैदा होगा? बात इतनी ही नहीं है. पिछले तीन दशकों में जिस तरह से राजनीति में पतन हुआ है, वह इस घृणा और नफरत की जड़ में है. राजनीतिज्ञ और नेता भूल गये हैं कि चरित्र निर्माण और देश निर्माण साथ-साथ संभव है.
1960 में जब राजनीति इतनी गंदी नहीं हुई थी, तब आचार्य कृपलानी ने सेमिनार पत्रिका के भ्रष्टाचार अंक में लेख लिखा था. भारत के हर राजनीतिज्ञ को यह लेख आज पढ़ना चाहिए. इससे वे आसानी से समझ जायेंगे कि नेताओं के प्रति यह आक्रोश, गुस्सा या नफरत क्यों है? आचार्य कृपलानी ने लिखा है कि भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद या परिवारवाद ने साम्राज्यों को खत्म कर दिया, वे चाहे राजा रहे हों, या तानाशाह या राजनीतिज्ञ या प्रशासक. इस लेख में उन्होंने अनेक साम्राज्यों के नाम गिनाये हैं, जो इन्हीं कारणों से तबाह या नष्ट हो गये या मिट गये.
नेताओं से नाराजगी के अनेक और असंख्य जेनुइन कारण हैं. पर इसके गंभीर और भयावह खतरे हैं. अंतत: राजनीति के प्रति अनास्था लोकतंत्र को कमजोर करती है. लोकतंत्र से बेहतर कोई दूसरी प्रणाली नहीं. राजनीति से नफरत अंतत: विखंडन, अराजकता या सैनिक तानाशाही की ओर ले जाती है. पर यह बात जनता से अधिक नेताओं को समझनी चाहिए. राजनीतिक दलों को इसका एहसास होना चाहिए.
दिनांक : 02-12-08

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