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राष्ट्रपति ने बांग्लादेश दिवस पर वहां की जनता को शुभकामनाएं दी, जानिये बांग्लादेश के निर्माण में क्या रही है भारत की भूमिका

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नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस 26 मार्च 2015 की पूर्व संध्या पर वहां की सरकार और जनता को बधाई दी. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल हमीद को भेजे गये संदेश में मुखर्जी ने कहा, ‘मुझे अपनी, भारत सरकार और भारत के लोगों की ओर से बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस […]

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नयी दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस 26 मार्च 2015 की पूर्व संध्या पर वहां की सरकार और जनता को बधाई दी. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल हमीद को भेजे गये संदेश में मुखर्जी ने कहा, ‘मुझे अपनी, भारत सरकार और भारत के लोगों की ओर से बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आपको बधाई और शुभकामनाएं देते हुए खुशी हो रही है. ‘

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राष्ट्रपति मुखर्जी ने दिसंबर, 2014 की अपनी सुखद बांग्लादेश यात्रा की याद दिलाते हुए विश्वास व्यक्त किया है कि दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ेगा और नए क्षेत्रों में आपसी सहयोग कायम होगा. भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध रखता है. इसलिए ऐसे मौको पर भारत उन्हें बधाई देने या जरूरत पड़ने पर आर्थिक सहयोग देने से पीछे नहीं हटता. बांग्लादेश के गठन में भारत की अहम भूमिका रही है. शायद यही कारण है कि भारत के लिए बांग्लादेश विशेष महत्व रखता है.

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को 1971 के दौरान बांग्लादेश का सहयोग करने के लिए उन्हें ‘बांग्लादेश का सच्चा मित्र’ घोषित करते हुए बांग्लादेश मुक्ति संग्राम सम्मान से नवाजा गया. मुखर्जी को दिए गए सम्मान समारोह में कहा गया कि मुखर्जी को यह सम्मान राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीयमंचों पर स्वतंत्र बांग्लादेश की खुलकर हिमायत करने के लिए बांग्लादेश की तरफ से ‘मुक्ति संग्राम में मुखर्जी द्वारा दिए गए अद्वितीय योगदान’ के प्रति गहरी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए दिया जा रहा है.

बांग्लादेश दिवस क्यों
बांग्लादेश 26 मार्च को स्वतंत्रता दिवस मनाता है. इस दिन यहाँ राष्ट्रीय अवकाश होता है. उल्लेखनीय है, कि 26 मार्च 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की गई है और मुक्ति युद्ध शुरू कर दिया गया था. शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेता, महान अगुआ एवं प्रथम राष्ट्रपति थे. उन्हें सामान्यत: बांग्लादेशका जनक कहा जाता है. वे अवामी लीग के अध्यक्ष थे. पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र संग्राम की अगुवाई करते हुए बांग्लादेश को मुक्ति दिलाई थी. यही बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति बने और बाद में प्रधानमंत्री भी वे ‘शेख मुजीब’ के नाम से भी प्रसिद्ध थे. उन्हें ‘बंगबन्धु’ की पदवी से सम्मानित किया गया. 15 अगस्त 1975 को सैनिक तख्तापलट के दौरान उनकी हत्या कर दी गयी
क्यो हुआ अलग
बांग्लादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों की मदद से मानवाधिकारों का हनन किया. 25 मार्च 1971 को शुरू हुए ऑपरेशन सर्च लाइट से लेकर पूरे बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जमकर हिंसा हुई. बांग्लादेश सरकार के मुताबिक इस दौरान करीब ३० लाख लोग मारे गए. हालांकि, पाकिस्तान सरकार की ओर से गठित किए गए हमूदूर रहमान आयोग ने इस दौरान सिर्फ २६ हजार आम लोगों की मौत का नतीजा निकाला. इस दौरान जमकर हिंसा हुई 1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे. नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी. लेकिन खान अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से नहीं निभा पाये उनके द्वारा इस मामले को ठंडा करने के लिए दबाव बनाया गया जिसने एक इस निराशा में उसी तरह का किया जैसे आग में घी. 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में सेना एवं पुलिस की अगुआई मे जबरदस्त नरसंहार हुआ. इस नरसंहार के बाद पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबरदस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली. इसके बीच लोगों का पलायन शुरू हो गया. भारत की तरफ भारी संख्या में शरणार्थी आने लगे. किसी देश ने इस हिंसा की तरफ ध्यान नहीं दिया लेकिन अंत में अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर, बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया.
क्या थी इंदिरा की भूमिका
इंदिरा गांधी का इस देश के निर्माण में अहम भूमिका रही है. 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर इतिहास में एक नयी गाथा जोड़ दी. उन्होंने शरणार्थियों का पूरा ध्यान रखा और खुलकर मुक्ति वाहिनी का समर्थन किया उन्होंन रेडियो के जरिये संदेश भी दिये की जहां इतने लोगों को खाना नहीं मिल रहा और भारत में वह शरण ले रहे हैं भारत उन्हें शरण देने से पीछे नहीं हटेगा. उन्होंने शरणार्थियों को ना सिर्फ शरण दी बल्कि उनके भोजन की भी व्यवस्था की. उनके इस कदम के लिए उन्हें राजनीतिक तौर पर भी काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी. मशहूर लेखक सलील त्रिपाठी की पुस्तक ‘द कर्नल हू वुड नॉट रिपेंट’ में बांग्लादेश के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुछ किरदारों और प्रत्यक्षदर्शियों से बात कर उसका सूक्ष्म विश्लेषण किया है.

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