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बुलेट छोड़ें, बुनियादी ढांचा ठीक करें

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रेलवे वे पास पैसे की कमी है. ऐसे में नयी योजनाएं तो क्या, पुरानी भी धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं. इसलिए रेल बजट में फंड जुटाने के उपाय करने ही होंगे, तभी सेवाएं और सुरक्षा बेहतर हो पायेगी. यात्री किराये में भी बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है. भारत उन देशों में शामिल है, […]

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रेलवे वे पास पैसे की कमी है. ऐसे में नयी योजनाएं तो क्या, पुरानी भी धरातल पर नहीं उतर पा रही हैं. इसलिए रेल बजट में फंड जुटाने के उपाय करने ही होंगे, तभी सेवाएं और सुरक्षा बेहतर हो पायेगी. यात्री किराये में भी बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है. भारत उन देशों में शामिल है, जहां रेल यात्री किराया सबसे कम है, जबकि माल भाड़ा सबसे अधिक है. यह असंतुलन दूर करना होगा. विडंबना है कि देश के लोग बिना किराया बढ़े ही सारी सुविधाएं चाहते हैं. इससे रेलवे की सेहत पर असर पड़ रहा है. यात्री किराया थोड़ा-थोड़ा हर साल बढ़ना चाहिए. लेकिन, ऐसा होने पर आम लोग और राजनीतिक दल हो-हल्ला मचाने लगते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए रेलवे को वोट बैंक का औजार बना दिया गया है. ममता बनर्जी और लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहते यात्री किराया नहीं बढ़ाया गया, इससे रेलवे के पास पैसे की कमी होती गयी और इसका असर सभी क्षेत्रों पर दिखाई देने लगा. पैसे की कमी के कारण कई रेल कोच निर्माण कंपनियों का काम रुका पड़ा है. आज रेल डिब्बों की मांग के मुताबिक उत्पादन नहीं हो पा रहा है.

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रेल बजट में सबसे पहले इंफ्रास्ट्रर को मजबूत करने के लिए कदम उठाना चाहिए. ऐसा किये बगैर सुरक्षा और सेवा अच्छी नहीं होगी. रेल बजट में हर साल बिना सोचे-समङो सैकड़ों गाड़ियां चला दी जाती हैं, जबकि ट्रैक के रखरखाव का काम भी उसी गति से होना चाहिए. हर रेल बजट में पीपीपी मॉडल के आधार पर योजनाओं को लागू करने की बात की जाती है, लेकिन अब तक इसका नया सिस्टम नहीं बन पाया है. जहां तक एफडीआइ की बात है, रेलवे में यह संभव नहीं है. बिना फायदे के कोई पूंजी नहीं लगायेगा. ऐसे में एफडीआइ के भरोसे रेलवे का आधुनिकीकरण नहीं हो पायेगा. वैसे भी किसी देश में रेलवे में एफडीआइ नहीं है, तो फिर भारत में यह कैसे संभव होगा? रेलवे की दिक्कत है कि वह लोगों की उम्मीद और राजनीति के बीच उलझ गया है. रेलवे की खस्ता हालत के लिए राजनीतिक दल और लोग दोनों जिम्मेवार हैं. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे स्टेशनों पर इतनी भीड़ होती है कि इसे एयरपोर्ट जैसा साफ-सुथरा रखना मुश्किल है. यह तभी संभव है, जब लोग भी साफ-सफाई का ख्याल रखें.

ऐसी स्थिति में बुलेट ट्रेन चलाना संभव नहीं है. इसके लिए रेलवे को पहले अपना इंफ्रास्ट्रर बेहतर करना होगा. राजधानी और शताब्दी गाड़ियों की रफ्तार बढ़ाने पर जोर देना होगा. मेरा मानना है कि जब तक देश में औद्योगिक विकास शुरू नहीं होगा, माल ढुलाई नहीं बढ़ पायेगी. फंड जुटाने के लिए रेलवे को हर साल 10 फीसदी माल ढुलाई बढ़ाना होगा. देश की आर्थिक विकास दर 9-10 फीसदी हो जाये तो माल ढुलाई भी सालाना 10 फीसदी बढ़ सकती है. रेलवे की आय का मुख्य साधन यही है. लेकिन माल भाड़े में विसंगति दूर करनी होगा. अगर अभी ब्राजील से लौह अयस्क का आयात होता है और मध्य प्रदेश की खदानों से इसकी ढुलाई होती है, तो ब्राजील से आनेवाला लौह अयस्क सस्ता पड़ता है. यह कहना सही नहीं है कि रेलवे के मुकाबले सड़क मार्ग से सामान की ढुलाई बढ़ने का नुकसान रेलवे को हो रहा है. सड़क मार्ग से ढुलाई इसलिए भी बढ़ेगी, क्योंकि जैसे-जैसे लोगों की आय बढ़ रही है घरेलू सामान जैसे टीवी, फ्रिज, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स की खपत बढ़ रही है. इन सामानों की ढुलाई रेलवे से संभव नहीं है. रेलवे से कोयला, अनाज, उर्वरक, स्टील, तेल ही जा सकता है. देश में इंफ्रास्ट्रर के निर्माण में गति आयेगी तो रेलवे से माल ढुलाई भी बढ़ेगी.

जीडीपी बढ़ने से रेलवे की आय भी बढ़ती है. लेकिन हमारी अर्थव्यवस्था के समक्ष समस्या यह है कि इसमें सबसे अधिक सेवा क्षेत्र का योगदान है. सेवा क्षेत्र के बढ़ने से रेलवे को कोई फायदा नहीं है. रेलवे की आय बढ़ाने के लिए मैन्युफैरिंग क्षेत्र का मजबूत होना जरूरी है. राजनेता भी इस बात को समझते हैं, लेकिन इस दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहे हैं. मोदी सरकार ने मैन्युफरिंग को बढ़ाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ शुरू किया है. देखना है कि यह सिर्फ नारा रहता है या जमीन पर कुछ काम भी हो पाता है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी मैन्युफैरिंग क्षेत्र को बढ़ाने के लिए कदम उठाया था, लेकिन तब भाजपा के विरोध के कारण इस पर अमल नहीं हो पाया. अब भाजपा सरकार भी ऐसा ही काम करना चाहती है और कांग्रेस इसका विरोध कर रही है. यही रेलवे की दुर्दशा का कारण है.

रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए कदम उठाने होंगे. बजट में गैर-जरूरी घोषणाएं करने से बचना चाहिए. इस सरकार के साथ अच्छी बात यह है कि यह पूर्ण बहुमत की सरकार है और कड़े फैसले लेने की स्थिति में है. पहले गंठबंधन की सरकारों के दौर में राजनीतिक हितों को तवज्जो दिया जाता रहा है. डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के काम को पूरा करने पर जोर दिया जाना चाहिए. अब तक देखा गया है कि यात्रियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही संसाधनों का अधिक हिस्सा खर्च कर दिया जाता है. इससे फ्रेट कॉरिडोर का काम प्रभावित हुआ है. इसे तय समय सीमा में पूरा करने की कोशिश की जानी चाहिए.

सुरक्षा के लिए ट्रैक के रखरखाव के काम में तकनीक के प्रयोग पर जोर देने की भी जरूरत है. तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग कर रेलवे नुकसान को काफी हद तक कम कर सकता है और इससे दुर्घटना की संभावना भी काफी कम हो जायेगी. साथ ही रेलवे की सुरक्षा के लिए आरपीएफ के रिक्त पदों को तत्काल भरने की जरूरत है. महिला सुरक्षा के लिए भी कदम उठाये जाने चाहिए. बजट में रेलवे को गैर-जरूरी काम से दूर रखने की कोशिश हर संभव की जानी चाहिए. रेलवे का काम अस्पताल और स्कूल बनाना नहीं है. रेलवे के पास जमीन काफी है. इसका व्यावसायिक प्रयोग कर भी कमाई की जा सकती है. माल भाड़ा का समानीकरण सबसे प्राथमिकता में होनी चाहिए.

संभावना है कि रेल मंत्री रेलवे की माली हालत सुधारने के लिए गंभीर प्रयास करेंगे. अगर रेलवे की स्थिति बेहतर हो गयी तो देश आर्थिक तरक्की के रास्ते पर फिर आगे बढ़ चलेगा. इसके अलावा पुरानी योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी लाने और निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है. उम्मीद है कि देश की रेल एक बार फिर पटरी पर दौड़ने में सफल होगी.

(विनय तिवारी से बातचीत पर आधारित)

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