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धर्मनिरपेक्ष शब्द के बगैर संविधान के विज्ञापन को लेकर विवाद

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नयी दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गणतंत्र दिवस विज्ञापन को लेकर आज विवाद उत्पन्न हो गया जिसमें 42वें संविधान संशोधन से पहले वाले संविधान की प्रस्तावना छपी हुई है जिसमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द नहीं हैं. कांग्रेस नेता और पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर केंद्र पर हमला करते […]

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नयी दिल्ली: सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गणतंत्र दिवस विज्ञापन को लेकर आज विवाद उत्पन्न हो गया जिसमें 42वें संविधान संशोधन से पहले वाले संविधान की प्रस्तावना छपी हुई है जिसमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द नहीं हैं.

कांग्रेस नेता और पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने इस मुद्दे पर केंद्र पर हमला करते हुए दावा किया कि सरकार के विज्ञापन में दो शब्द ‘‘हटा दिए गए’’.
बहरहाल सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनके मंत्रालय ने प्रस्तावना के ‘‘मूल’’ चित्र का प्रयोग किया जो संशोधन के पहले का है ताकि पहली प्रस्तावना का ‘‘सम्मान’’ किया जा सके.
केंद्रीय मंत्री ने दावा किया कि यही तस्वीर सूचना..प्रसारण मंत्रालय ने अप्रैल 2014 के विज्ञापन में छापी थी. उस वक्त तिवारी इस विभाग के मंत्री थे. विज्ञापन में प्रस्तावना की तस्वीर बैकग्राउंड में है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बयान एवं कुछ नागरिकों के चित्र इसके अग्र हिस्से में हैं.
तिवारी ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘ संविधान भारत संप्रभु धर्मनिरपेक्ष समाजवादी लोकतांत्रिक गणराज्य. सरकारी विज्ञापन में से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों को हटा लिया गया है.’’ राठौर ने इस पर कहा कि कुछ लोग विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मंत्रालय ने प्रस्तावना की केवल उसी तस्वीर को इस्तेमाल किया है जो संविधान को पहले अंगीकार किए जाने के समय की है.
उन्होंने कहा कि दो शब्द , समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के बाद शामिल किए गए थे. राठौर ने सवाल किया, ‘‘ क्या हम यह कहें कि 1976 से पहले की सरकारें धर्मनिरपेक्ष नहीं थीं ? यह बात नहीं है. हम धर्मनिरपेक्ष हैं और हमेशा धर्मनिरपेक्ष रहेंगे. हम पहली प्रस्तावना का सम्मान कर रहे हैं इसलिए विज्ञापन के लिए यह तस्वीर ली गयी है.

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