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निर्भयाकांड से पहले रेप और मर्डर के इन मामलों में हुई थी फांसी, जानें कौन था मुजरिम…

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निर्भया के दोषियों को अगर 22 जनवरी को फांसी होती है, तो यह रेप के बाद हत्या का दूसरा ऐसा मामला होगा, जिसमें दोषियों को फांसी पर चढ़ाया जायेगा. इससे पहले अब तक रेप और उसके बाद हत्या के मुकदमे में सिर्फ एक व्यक्ति धनंजय चटर्जी को फांसी पर चढ़ाया गया है. निर्भया मामले की […]

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निर्भया के दोषियों को अगर 22 जनवरी को फांसी होती है, तो यह रेप के बाद हत्या का दूसरा ऐसा मामला होगा, जिसमें दोषियों को फांसी पर चढ़ाया जायेगा. इससे पहले अब तक रेप और उसके बाद हत्या के मुकदमे में सिर्फ एक व्यक्ति धनंजय चटर्जी को फांसी पर चढ़ाया गया है. निर्भया मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि रेप के ऐसे मामले जो ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ हों, उनमें फांसी का प्रावधान होना चाहिए. निर्भया मामले में छह लोग दोषी करार दिये गये थे, जिनमें से एक नाबालिग था. इसलिए उसे तीन साल की सजा हुई. दोषियों में से एक राम सिंह ने सुनवाई के दौरान आत्महत्या कर ली, जबकि चार लोगों को 22 जनवरी को फांसी होना है.

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कौन था धनंजय चटर्जी जिसे हुई थी फांसी

धनंजय चटर्जी कोलकाता के एक अपार्टमेंट में सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी करता था. उस अपार्टमेंट के एक फ्लैट में रहने वाली 14 साल की स्कूली छात्रा हेतल पारेख के साथ उसने बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी. घटना के दिन छात्रा परीक्षा देकर घर लौटी थी. घटना के वक्त बच्ची घर पर अकेली थी और उसकी मां पूजा करने मंदिर गयी थी. जब वह घर लौटी तो घर का दरवाजा नहीं खुला. काफी खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, तो दरवाजा तोड़ा गया और हेतल की लहूलुहान लाश वहां मिली. यह केस 14 साल तक चला और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन धनंजय चटर्जी को माफी नहीं मिली. 14 अगस्त, 2004 को धनंजय चटर्जी को कोलकाता की अलीपुर जेल में फांसी दे दी गयी.

धनंजय की सजा माफ करने के लिए दायर हुई थी जनहित याचिका

धनंजय को माफी देने के लिए मानवाधिकार संगठन ने जनहित याचिका दायर की गयी थी. इस याचिका में इस बात की वकालत की गयी थी कि सभ्य समाजों से सज़ा-ए-मौत ख़त्म हो गयी है. इसलिए भारत को भी इसे ख़त्म कर देना चाहिए, लेकिन कोलकाता हाईकोर्ट ने यह कहा था कि धनंजय को जो सजा मिली, उसमें जनहित का कोई प्रश्न नहीं है, इसलिए उसकी सजा कम नहीं होगी.

रंगा बिल्ला को रेप और मर्डर के मामले में 1982 में हुई थी फांसी

26 अगस्त, 1978 को दिल्ली के धौलाकुआं इलाके से दो बच्चे संजय चोपड़ा और गीता चोपड़ा का अपहरण किया गया था. गीता 16 साल की थी और संजय 14 साल का. रंगा और बिल्ला नाम के अपराधियों ने इनका अपहरण फिरौती के लिए किया था. तीन दिन बाद इनका शव बरामद हुआ. चार साल की सुनवाई के बाद 1982 में उन्हें फांसी दी गयी. यह मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया, क्योंकि बच्चों के साथ उस दौर में इस तरह का जघन्य अपराध ना के बराबर होता था. इन्हीं बच्चों के नाम पर हर साल देश में वीरता का पुरस्कार दिया जाता है. बिल्ला का असली नाम जसबीर सिंह था, जबकि रंगा का असली नाम था कुलजीत सिंह था.

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