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टूट चुका है गांधी परिवार का तिलिस्म!

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लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व का संकट गहराता जा रहा है. पार्टी में कई ऐसे विरोध के स्वर फूटे जिसने वर्तमान नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठाया. स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि एक कांग्रेसी जगमीत बराड़ ने तो यहां तक कह दिया कि सोनिया और राहुल को राजनीति […]

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लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व का संकट गहराता जा रहा है. पार्टी में कई ऐसे विरोध के स्वर फूटे जिसने वर्तमान नेतृत्व की क्षमता पर सवाल उठाया. स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि एक कांग्रेसी जगमीत बराड़ ने तो यहां तक कह दिया कि सोनिया और राहुल को राजनीति से दो साल की छुट्टी ले लेनी चाहिए.

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अगर बात सोनिया गांधी की करें, तो वे अभी अपने राजनीतिक कैरियर के सबसे चुनौती भरे दिनों का वे सामना कर रही हैं. उनपर चारों ओर से हमले हो रहे हैं.उनकी राजनीतिक समझ, छवि और विश्वसनीयता पर भी प्रश्न खड़े किये जा रहे हैं.ऐसी विपरीत परिस्थिति में नेशनल हेराल्ड का मामला प्रकाश में आया है, जो उनकी परेशानी को और बढ़ा रहा है.

कभी कांग्रेस के लिए तारणहार बनीं थीं सोनिया

राहुल गांधी की हत्या के बाद सोनिया एक तरह से एकांतवास में चली गयीं थीं. उन्होंने राजनीति से कोई सरोकार नहीं रखा था. लेकिन जब कांग्रेस में नेतृत्व का घोर संकट उभरा था, तब सोनिया ने 1997 में पार्टी की कमान संभाली और पार्टी को संकटों से उबारा था. जब से सोनिया ने पार्टी की कमान संभाली तब से लेकर यूपीए-2 तक सोनिया ने कांग्रेस का उत्थान किया. वर्ष 2004 में पार्टी को अद्भुत जीत दिलायी, लेकिन खुद प्रधानमंत्री नहीं बनीं. उस वक्त इसे सोनिया का त्याग बताया गया था और सोनिया का कद लोगों की नजर में बढ़ गया था.लेकिन आज उसी सोनिया को कांग्रेसी शक की नजर से देख रहे हैं. यहां तक कहा जा रहा है कि गांधी परिवार का तिलिस्म अब टूट चुका है.

नटवर सिंह की आत्मकथा से खुला सोनिया के त्याग का राज

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी आत्मकथा में सोनिया के बलिदान का राज खोला है. उन्होंने लिखा है कि राहुल खौफजदा थे कि जिस प्रकार उनकी दादी और पिता का खून कर दिया गया है, उसी तरह उनकी मां की भी हत्या हो जायेगी. इसलिए सोनिया ने पीएम बनने से मना कर दिया.

कांग्रेस की फजीहत के बाद नेतृत्व का संकट

लोकसभा चुनाव में हार के बाद देश की सबसे प्रतिष्ठित पार्टी मात्र 44 सीट पर सिमट गयी है. इसके लिए राहुल और सोनिया को जिम्मेदार बताया जा रहा है. कांग्रेस पार्टी ने यह चुनाव इन्हीं दोनों के नेतृत्व में लड़ा था. एक तरह से यह चुनाव राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी था. लेकिन राहुल गांधी कहीं से भी नरेंद्र मोदी को टक्कर नहीं दे सके. पार्टी की हार की आशंका से ग्रसित कई बड़े नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ा. पी चिदंबरम उनमें से ही एक नाम है.

प्रियंका गांधी का नाम आ रहा है सामने

लोकसभा चुनाव के पहले और बाद में भी पार्टी को नेतृत्व देने के लिए प्रियंका गांधी का नाम सामने लाया गया है. आज फिर पार्टी के वरिष्ठ नेता ऑस्कर फर्नांडिज ने प्रियंका को कमान देने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि पार्टी को संकटों से निकालने के लिए प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में आना चाहिए. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि अगर प्रियंका गांधी राजनीति में आ जायेंगी, तो राहुल गांधी क्या करेंगे.

क्या टलेगा नेतृत्व का संकट?

नेतृत्व संकट से जूझती पार्टी के लिए अभी कोई राहत वाली खबर नजर नहीं आ रही है. नेशनल हेराल्ड केस में फंसे सोनिया और राहुल अभी पार्टी के लिए संकटमोचक बनेंगे इसकी संभावना कम नजर आ रही है. ऐसे में पार्टी नेतृत्व का क्या होगा कहना अभी मुश्किल है.

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