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महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू, कांग्रेस-एनसीपी ने कहा, साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय होने तक अंतिम फैसला नहीं

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नयी दिल्ली/मुंबई : महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिरोध के बीच मंगलवार शाम राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मंगलवार को ही राष्ट्रपति को भेजी अपनी सिफारिश में कहा था कि उनके तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य में सरकार नहीं बन पा रही है, इसलिए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए. […]

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नयी दिल्ली/मुंबई : महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिरोध के बीच मंगलवार शाम राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मंगलवार को ही राष्ट्रपति को भेजी अपनी सिफारिश में कहा था कि उनके तमाम प्रयासों के बावजूद राज्य में सरकार नहीं बन पा रही है, इसलिए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाए. हालांकि, उनके इस फैसले की गैर-भाजपा दलों ने खुलकर आलोचना की है.

गौरतलब है कि सत्ता में साझेदारी को लेकर भाजपा-शिवसेना में मनमुटाव होने के बाद गठबंधन सहयोगी अलग हो गये हैं और शिवसेना ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का साथ छोड़ दिया है. साथ ही, शिवसेना का समर्थन करने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिलने मुंबई भेजे गये नेताओं के बीच अभी तक कोई अंतिम राय नहीं बनने के कारण भी ऐसी स्थिति आयी है.

कांग्रेस-एनसीपी की बैठक के बाद कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने कहा कि तीनों दलों के बीच साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय हुए बगैर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया जा सकता. उन्होंने राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की आलोचना करते हुए कहा कि कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका नहीं दिया गया. मंगलवार को दिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में राज्यपाल कोश्यारी की सिफारिश पर विचार करने के बाद उसे संस्तुति के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा गया.

कैबिनेट ने अपनी सिफारिश में कहा कि राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356 (1) के तहत महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा करें और राज्य विधानसभा को निलंबित अवस्था में रखें. अधिकारियों ने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उद्घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिये हैं. अपनी रिपोर्ट में राज्यपाल ने कहा था कि राज्य में ऐसे हालात पैदा हो गये हैं, जिनमें राज्य में स्थिर सरकार का गठन असंभव हो गया है.
राज्यपाल ने कहा है कि उन्होंने उन सभी दलों से संपर्क किया, जो अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर गठबंधन में सरकार बनाने की क्षमता रखते थे, लेकिन उनके सभी प्रयास विफल रहे. राज्यपाल कार्यालय ने ट्वीट किया है कि उन्हें विश्वास है कि संविधान के दायरे में रहते हुए अब सरकार बनाना संभव नहीं है? इसलिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों के तहत आज रिपोर्ट सौंप दी है.

गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा ने बहुमत नहीं होने का हवाला देते हुए सोमवार को सरकार बनाने का दावा पेश करने से इनकार कर दिया. उसके बाद राज्यपाल ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना को दावा पेश करने का न्योता दिया. हालांकि, शिवसेना ने राज्यपाल से मिलकर दावा किया कि उसे कांग्रेस और एनसीपी का सैद्धांतिक समर्थन मिल चुका है, लेकिन वह दोनों दलों का समर्थन पत्र पेश करने में नाकाम रही.

शिवसेना ने राज्यपाल से ऐसा करने के लिए तीन दिन का वक्त मांगा, लेकिन उसका अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया. इसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने तीसरी सबसे बड़ी पार्टी एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) को सरकार बनाने का दावा पेश करने का न्योता दिया. उन्होंने एनसीपी को मंगलवार रात साढ़े आठ बजे तक का समय दिया था. राज्यपाल ने केंद्र को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मंगलवार सुबह एनसीपी ने उन्हें संदेश भेजा कि पार्टी को उचित समर्थन जुटाने के लिए और तीन दिन का वक्त चाहिए.

अधिकारियों ने बताया कि राज्यपाल को लगा कि चुनाव परिणाम आये पहले ही 15 दिन गुजर गये हैं और वह ज्यादा वक्त देने की स्थिति में नहीं हैं. अधिकारियों ने कहा कि अगर राज्य में स्थिर सरकार के गठन के हालात बनते हैं, तो राष्ट्रपति शासन छह महीने से पहले ही हटाया जा सकता है. पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव में कुल 288 सदस्यीय सदन में से भाजपा के हिस्से में 105 सीटें आयी थीं, जबकि शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं.

सत्ता में साझेदारी को लेकर नाराज शिवसेना ने भाजपा के बिना एनसीपी-कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का प्रयास किया, लेकिन ऐसा नहीं होने पर पार्टी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी. शिवसेना ने अपनी अर्जी में राज्यपाल के फैसले को चुनौती देते हुए मामले की तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया. हालांकि, अदालत ने इस पर तत्काल सुनवाई से इनकार करते हुए पार्टी के वकीलों से कहा कि वे बुधवार की सुबह प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के सामने इस मुद्दे को रखें.

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