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लाख मुश्किलें नहीं तोड़ पाई प्रांजल पाटिल का हौसला, बनीं देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस ऑफिसर

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नयी दिल्ली: कामयाबी उन्हें मिलती है जिन्होंने धैर्यपूर्वक सालों मेहनत की आग में खुद को जलाया होता है. जो विकट परिस्थितियों से घबराए बिना जिंदगी का अपना लक्ष्य नहीं भूलते सफलता उनके कदम चूमती है. हमें इन बातों से प्रेरणा लेने के लिए किसी मोटिवेशनल स्पीकर या दार्शनिक की जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमारे […]

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नयी दिल्ली: कामयाबी उन्हें मिलती है जिन्होंने धैर्यपूर्वक सालों मेहनत की आग में खुद को जलाया होता है. जो विकट परिस्थितियों से घबराए बिना जिंदगी का अपना लक्ष्य नहीं भूलते सफलता उनके कदम चूमती है. हमें इन बातों से प्रेरणा लेने के लिए किसी मोटिवेशनल स्पीकर या दार्शनिक की जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमारे आसपास ही ऐसी शख्सियतें मौजूद हैं जिन्होंने अपने काम और कामयाबी से नया इतिहास रच दिया है और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बने हैं.

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कहानी प्रांजल लेहनसिंह पाटिल की

आज कहानी जानेंगे अपने कर्मों से भाग्य की रेखा गढ़ने वाली प्रांजल लेहनसिंह पाटिल की जिन्होंने देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अधिकारी बनने का गौरव हासिल किया है. महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली 28 वर्षीय प्रांजल ने हाल ही में केरल के तिरूवनंंतपुरम में सब-कलेक्टर के रूप में पदभार संभाल लिया है. आईए जानते हैं कि कैसा रहा प्रांजल पाटिल का पूरा सफरनामा…

08 साल की उम्र में हो गयीं नेत्रहीन

प्रांजल पाटिल की दृष्टि जन्म से ही काफी कमजोर थी और जब वो केवल छह साल की थीं तभी एक दुर्घटना घटी. इस दुर्घटना में प्रांजल की आंखों में चोट लग गयी और धीरे-धीरे उनको पूरी तरह से दिखाई देना बंद हो गया. हालांकि प्रांजल अभी भी एक आंख से देख सकती थी लेकिन डॉक्टर्स ने आशंका जता दी थी कि भविष्य में प्रांजल के दोनों आंखों की रोशनी जा सकती है. उनकी आशंका सही साबित हुई. प्रांजल पाटिल जब केवल 08 साल की थीं तभी उनकी दूसरी आंखों की रोशनी भी चली गयी.

माता-पिता ने कभी हिम्मत नहीं हारी

हालांकि इस घटना के बावजूद ना तो प्रांजल के माता-पिता हिम्मत हारे और ना ही प्रांजल को टूटने दिया. मुंबई के एक नेत्रहीन स्कूल से पढ़ाई करते हुए पहले 10वीं और फिर 12वीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की. 12वीं में तो कला संकाय में प्रांजल ने पूरे कॉलेज में पहला स्थान हासिल किया. इसके बाद उन्होंने मुंबई के संत जेवियर कॉलेज में बीए में दाखिला लिया. यहां प्रांजल ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई करती थीं. ग्रेजुएशन के दौरान ही प्रांजल और उनकी एक दोस्त ने आईएएस प्रशासन के बारे में एक लेख पढ़ा था. तब पहली बार उन्हें इसके बारे में पता चला था.

इसके बाद से ही उन्होंने संबंधित विषय के बारे में जानकारियां जुटाईं और तय कर लिया कि उन्हें तो यही बनना है. ग्रेजुएशन खत्म करने के बाद प्रांजल ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नयी दिल्ली से एमए किया.

जॉब एक्सेस विद स्पीच की ली मदद

साल 2015 में एमफिल करते हुए प्रांजल ने यूपीएससी की तैयारी शुरू की. इसी दौरान उन्होंने आंखों से अक्षम लोगों के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर ‘जॉब एक्सेस विद स्पीच (जेएडब्ल्यूएस)’ की मदद ली. इसकी मदद से वे पहले किताब को स्कैन करतीं थीं, क्योंकि जेएडब्ल्यूएस पर सिर्फ प्रिंटेड किताबें ही पढ़ी जा सकती थीं. प्रांजल की अगली चुनौती थी ऐसे व्यक्ति को ढूंढना जो उनकी गति के हिसाब से लिख सके. विदुषी इसके लिए सबसे बेहतर साबित हुईं. यूपीएससी के मुख्य परीक्षा में लिखने के लिए 3 घंटे मिलते हैं और वैसे दिव्यांग व्यक्ति, जिनके लिए कोई और लिख रहा हो उन्हें 4 घंटे मिलते हैं. प्रांजल कहती हैं कि उनकी राइटर विदुषी के साथ ट्यूनिंग अच्छी थी. प्रांजल जो भी शब्द बोलतीं विदुषी शीघ्र ही उसे लिख डालतीं.

अपने दूसरे प्रयास में आईएएस बन गयीं

अपने पहले ही प्रयास में (2016 में) उन्होंने 773वीं रैंकिंग के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास की, लेकिन इंडियन रेलवे अकाउंट्स सर्विस ने उन्हें पद देने से मना कर दिया. इसके बाद प्रांजल ने बिना समय बर्बाद किये अगले साल फिर से परीक्षा दी. साल 2017 में प्रांजल ने 124वें रैंक के साथ फिर से यूपीएससी परीक्षा पास की और देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अधिकारी बनने का गौरव हासिल किया. प्रांजल अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता, पति व दोस्तों को देती हैं.

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