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हेंस क्रिश्चियन ग्राम: वो महान वैज्ञानिक जिनकी याद में Google ने Doodle बनाया

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नयी दिल्ली: आज महान जीव विज्ञानी हेंस क्रिश्चियन ग्राम की 166वीं जयंती है. इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उनको याद किया है. डेनमार्क के कलाकार मिकेल सोमर ने डूडल का चित्रण किया है जिसमें ग्राहम की जिंदगी के विभिन्न कामों को क्रम से दर्शाया गया है. इसमें इन सबके अलावा माइक्रोस्कोप, क्रिश्चियन ग्राम […]

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नयी दिल्ली: आज महान जीव विज्ञानी हेंस क्रिश्चियन ग्राम की 166वीं जयंती है. इस मौके पर गूगल ने डूडल बनाकर उनको याद किया है. डेनमार्क के कलाकार मिकेल सोमर ने डूडल का चित्रण किया है जिसमें ग्राहम की जिंदगी के विभिन्न कामों को क्रम से दर्शाया गया है. इसमें इन सबके अलावा माइक्रोस्कोप, क्रिश्चियन ग्राम का चेहरा और जीवाणु भी नजर आ रहा है.

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डेनमार्क में हुआ था क्रिश्चियन ग्राम का जन्म

महान जीव विज्ञानी क्रिश्चियन ग्राम का जन्म 13 सितंबर 1853 को हुआ था. वे मूलरूप से डेनमार्क के निवासी थे. ग्राम के पिता फ्रेडरिक टेरकेल जूलियस ग्राम न्यायशास्त्र के प्रोफेसर थे और लुइस क्रिश्चियन रौलेंड नामक संस्था में पढ़ाते थे. कहा जाता है कि क्रिश्चियन ग्राम की रूचि बचपन से ही जीव विज्ञान में थी. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोपेनहेगन मेट्रोपॉलिटन स्कूल से हासिल की.

कोपेनहेगेन से ही उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई की. इसी दौरान उन्होंने स्थानीय चिड़ियाघर में शोध सहायक के रूप में काम किया जिसकी वजह से चिकित्सा विज्ञान में भी उनकी रूचि बढ़ती चली गई. इसके बाद क्रिश्चियन ग्राम साल 1878 में कोपेनहेगेन विश्विविद्यालय से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की डिग्री हासिल करने के लिए गए.

चिकित्सा विज्ञान में उल्लेखनीय योगदान है

डिग्री हासिल करने के बाद ग्राम यूरोप गए और वहां जीवाणु विज्ञान तथा फामार्कोलॉजी का अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने इस विषय में नया शोध किया. उनकी खोज साल 1884 में एक प्रसिद्ध जर्नल में प्रकाशित हुई जिसमें पहली बार ग्राम पॉजीटिव और ग्राम निगेटिव जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था.

उल्लेखनीय है कि क्रिश्चियन ग्राम को बैक्टीरिया की प्रारंभिक पहचान ग्राम स्टोन के लिए जाना जाता है. दरअसल ग्राम स्टोन एक ऐसा तरीका है जिसकी सहायता से जीवाणु को अलग-अलग प्रजातियों में बांटा जा सकता है. उन्होंने जीवाणु को उनके भौतिक और रसायनिक गुणों के आधार पर ग्राम-पॉजीटिव और ग्राम निगेटिव वर्गों में बांट दिया.

ग्राम ने अपना शोध पत्र प्रकाशित होने के बाद कहा कि ये माइक्रोबायोलॉजी एक दिन हर स्कूल और विश्वविद्यालय में सौ साल बाद हर पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि जाहिर है कि मेरे शोध में कई खामियां होंगी लेकिन मैं जानता हूं कि इससे जांच में काफी मदद मिलेगी.

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