नयी दिल्ली: लोकसभा में आज भ्रष्ट जजों की नियुक्ति के मामले पर काफी हंगामा हुआ. अन्नाद्रमुक इस मामले पर चर्चा कराने की मांग कर रहा है. वहीं मामले पर जवाब देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 2006 में यह नियुक्ति पीएमओं के आदेश पर हुई थी. पिछले मामले में ज्यादा कुछ किया नहीं जा सकता, लेकिन आगे से ऐसा ना हो इसके लिए सरकार जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग बनायेगी. इस आयोग की सिफारिश पर ही कहीं भी जजो की नियुक्ति की जायेगी.
कानून मंत्री के जवाब से विपक्ष काफी संतुष्ट तो नहीं दिखा, लेकिन हंगामा थोडा कम जरुर हुआ. विपक्ष ने कानून मंत्री को कई बार रोकने का प्रयास किया और इसपर चर्चा कराने की मांग की. इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को हस्तक्षेप करना पडा. उन्होंने कहा कि पहले जवाब सुन ले उसके बाद किसी भी प्रकार की चर्चा पर विचार किया जायेगा.
क्या है मामला
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कन्डेय काटजू ने संप्रग सरकार के कार्यकाल में कथित रुप से मद्रास उच्च न्यायालय के एक भ्रष्ट न्यायाधीश की पदोन्नती का आरोप लगाया है. काटजू ने यूपीए सरकार को लेकर खुलासा करते हुए कहा है कि यूपीए सरकार को बचाने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त मद्रास हाईकोर्ट के जज को प्रमोशन दिया गया था. काटजू की लेख एक अंग्रेजी अखबार में छपी है. इस लेख के हवाले से काटजू ने खुलासा किया है कि किस तरह केंद्र सरकार के दबाव में एक भ्रष्टाचारी जज को प्रमोशन दिया गया.
काटजू ने आरोप लगाया कि तीन पूर्व प्रधान न्यायाधीशों आरसी लाहोटी, वाईके सभरवाल और केजी बालकृष्णन को यूपीए सरकार ने सेवा में बने रहने की अनुमती प्रदान की थी. जबकि ये तीनों न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप थे.
काटजू ने कहा कि उन्हें बहुत सी ऐसी रिपोर्ट मिलीं हैं जिसमें कई न्यायाधीश कथित तौर पर भ्रष्टाचार में लिप्त थे और उन्होंने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश लाहोटी से संबंधित न्यायाधीश के बारे में खुफिया ब्यूरो से गोपनीय जांच कराए जाने का आग्रह किया था.
जस्टिस काटजू का आरोप है कि भ्रष्टाचार के आरोपी जज को इसलिए प्रमोशन दिया गया क्योंकि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट जज रहते हुए तमिलनाडु के एक बड़े नेता को जमानत दी थी. काटजू का दावा है कि यूपीए सरकार ने ऐसा तमिलनाडु की एक प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी के दबाव में किया, जिस पार्टी का सपोर्ट यूपीए सरकार के अस्तित्व के लिए जरूरी था.