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Road Accident: रफ्तार का शिकार हो रहा भारत, हर साल सड़क दुर्घटना में इतने लाख लोगों की होती है मौत

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सड़क दुर्घटना की चपेट में सबसे अधिक वही लोग आते हैं, जो अपने देश के श्रमबल का प्रमुख हिस्सा होते हैं. तो आइए जानतें हैं सड़क दुर्घटना का देश-दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ता है, क्यों दिनों-दिन बढ़ रहे हैं हादसे और किस तरह इनसे बचा जा सकता है...

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आरती श्रीवास्तव

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कामकाजी जनसंख्या के बल पर ही कोई देश विश्व व्यवस्था में अग्रणी बन पाता है, लेकिन इसी आयु वर्ग के लोग हादसों का शिकार होने लग जाएं, तो चिंतित होना स्वाभाविक है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि सड़क दुर्घटना की चपेट में सबसे अधिक वही लोग आते हैं, जो अपने देश के श्रमबल का प्रमुख हिस्सा होते हैं. आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं. वैश्विक स्तर पर, प्रतिवर्ष सड़क हादसों में जहां 13 लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है, वहीं पांच करोड़ लोग घायल या अपंग हो जाते हैं. इस कारण देश की जीडीपी भी प्रभावित होती है. सड़क दुर्घटना का देश-दुनिया पर क्या प्रभाव पड़ता है, क्यों दिनों-दिन बढ़ रहे हैं हादसे और किस तरह इनसे बचा जा सकता है? इन्हीं तथ्यों की पड़ताल के साथ प्रस्तुत है इस बार का इन दिनों पेज…

मुंबई से 120 किलोमीटर दूर अहमदाबाद-मुंबई राजमार्ग पर टाटा संस के पूर्व अध्यक्ष साइसर मिस्त्री की कार दुर्घटना में हुई मृत्यु ने एक बार फिर से सड़क दुर्घटना और खतरनाक सड़कों को लेकर बहस छेड़ दी है. पूर्व में भी अनेक मोटर चालक सड़क के डिजाइन, उचित संकेतों की कमी और खराब परिवहन अनुशासन को लेकर शिकायत कर चुके हैं. इन चालकों की मानें, तो उपरोक्त कारणों से राजमार्ग दुर्घटनाओं के लिए संवेदनशील जगह बनता जा रहा है. केवल इसी राजमार्ग को लेकर नहीं, बल्कि देशभर के अनेक सड़कों को दुर्घटना के लिए संवेदनशील मानते हुए इसी तरह की शिकायतें सुनने में आती रही हैं. देश में केवल कार ही नहीं, बल्कि बाइक और अन्य वाहनों से भी दुर्घटना होती है और दिनों-दिन इसमें वृद्धि होती जा रही है, जो बहुत चिंता का विषय है.

सर्वाधिक घातक दुर्घटनाएं भारत में

सेव लाइफ फाउंडेशन के आंकड़ों की मानें, तो 2021 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं की गंभीरता 38.6 रही (प्रति सौ दुर्घटनाओं में मृत्यु), जबकि 2020 में यह आंकड़ा 37.5 था. दुर्घटना की गंभीरता सड़क दुर्घटना के घातक होने के जोखिम को इंगित करती है. कहने का अर्थ है कि सड़क दुर्घटना जितनी गंभीर होगी, उसमें मृत्यु होने का जोखिम भी उतना ही अधिक होगा.

  • 400 से अधिक लोग प्रतिदिन मरते हैं भारत में सड़क हादसों में. सड़क दुर्घटना से होनेवाली मौतों में हमारा देश शीर्ष पर है (डब्ल्यूएचओ 2018).

  • 11 प्रतिशत मृत्यु भारत में होती है सड़क दुर्घटना में होनेवाली कुल मृत्यु का और कुल सड़क हादसों के छह प्रतिशत का गवाह भारत बनता है, जबकि दुनिया के वाहन का महज एक प्रतिशत ही हमारे यहां है (सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय 2018).

  • 13 लाख लोग मारे गये और 50 लाख घायल हुए भारत में, सड़क हादसों में केवल बीते दशक में.

घायलों से ज्यादा संख्या मरने वालों की

  • आम तौर पर सड़क हादसों में घायलों की संख्या मृतकों से ज्यादा होती है. लेकिन बीते वर्ष मिजोरम, पंजाब, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मृतकों की संख्या घायलों से अधिक रही.

  • मिजोरम में कुल 64 सड़क हादसे हुए जिनमें 64 लोगों की मौत हो गयी और 28 लोग घायल हो गये.

  • पंजाब में 6,097 सड़क हादसों में 4,516 लोग मारे गये और 3,034 घायल हुए.

  • झारखंड में 4,728 हादसों में 3,513 लोगों की मौत हो गयी, जबकि 3,227 लोग घायल हुए.

  • उत्तर प्रदेश में 33,711 सड़क दुर्घटना में 21,792 लोगों की जान चली गयी और 19,813 लोग चोटिल हो गये

बीते वर्ष चार लाख से अधिक सड़क दुर्घटना

एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में देश में कुल 4,03,116 सड़क हादसे हुए, जो 2020 में हुए 3,54,796 सड़क हादसों से 48,320 अधिक हैं. वहीं मृतकों की संख्या 2020 के 1,33,201 की तुलना में 1,55,622 पर पहुंच गयी. अर्थात 2021 में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या 2020 की तुलना में 16.8 प्रतिशत बढ़ गयी.

सड़क हादसे, जख्मी व मरने वालों का ब्योरा

वर्ष सड़क हादसे जख्मी हुए मारे गये

2017 4,45,730 4,56,240 1,50,093

2018 4,45,514 4,46,518 1,52,780

2019 4,37,396 4,39,262 1,54,732

2020 3,54,796 3,35,050 1,33,201

2021 4,03,116 3,71,884 1,55,622

मौत के मामले में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर

बीते वर्ष सड़क दुर्घटना में सबसे अधिक जानें 21,792 उत्तर प्रदेश में गयीं जो सड़क हादसे में हुई कुल मौतों का 14 प्रतिशत है. इसके बाद तमिलनाडु में 15,384 (9.9 प्रतिशत), महाराष्ट्र में 13,911 (8.9 प्रतिशत), मध्य प्रदेश में 12,480 (8.0 प्रतिशत), कर्नाटक में 10,038 (6.5 प्रतिशत) और राजस्थान में 10,043 (6.5 प्रतिशत) लोगों ने अपनी जान गंवायी.

दोपहिया वाहनों से हादसे

बीते वर्ष सबसे अधिक सड़क हादसे दोपहिया वाहनों के कारण हुए, जिनमें 69,240 जानें गयीं, जो सड़क हादसों में जान गंवाने वालों का 44.5 प्रतिशत रहा. दोपहिया के बाद कार हादसों ने 23,531 लोगों और ट्रक/लॉरी से हुई दुर्घटना ने 14,622 जिंदगियां छीन लीं और इन दोनों का प्रतिशत क्रमशः 15.1 और 9.4 रहा. दोपहिया से होनेवाली सबसे अधिक मौतें तमिलनाडु (8,259) और उत्तर प्रदेश (7,429) में दर्ज हुईं. वहीं एसयूवी/कार/जीप से होनेवाली मौतों में उत्तर प्रदेश (4,039) और ट्रक/लॉरी/मिनी ट्रक दुर्घटना से होनेवाली मौतों में मध्य प्रदेश (1,337) शीर्ष पर रहा.

30 प्रतिशत से अधिक हादसे राष्ट्रीय राजमार्ग पर

सड़कों के आधार पर यदि सड़क दुर्घटना को देखा जाये, तो राष्ट्रीय राजमार्ग सर्वाधिक घातक साबित हुए हैं. बीते वर्ष हुए कुल सड़क हादसों के 30.3 प्रतिशत के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग जिम्मेदार रहे हैं. वहीं राज्य राजमार्गों पर 23.9 प्रतिशत दुर्घटना दर्ज हुई. जबकि 45.8 प्रतिशत हादसे अन्य सड़कों पर हुए. एक्सप्रेसवे पर कुल 1,899 हादसे हुए, जिसमें 1,214 लोग घायल हो गये और 1,356 लोग अपनी जान गंवा बैठे. मृत्यु के मामले में भी राष्ट्रीय राजमार्ग अग्रणी रहे हैं, यहां बीते वर्ष सड़क दुर्घटना में कुल 53,615 मौतें हुईं जो कुल मौतों का 34.5 प्रतिशत है. इसके बाद राज्य राजमार्ग का स्थान है, जहां बीते वर्ष 39,040 लोगों (25.1 प्रतिशत) ने अपनी जान गंवायी.

ओवर स्पीडिंग बना प्रमुख कारण

  • कुल सड़क दुर्घटनाओं के 59.7 प्रतिशत (4,03,116 में से 2,40,828) का कारण ओवर स्पीडिंग बना, जिस कारण 2,28,274 लोग घायल हो गये और 87,050 लोगों (सड़क हादसों में कुल मौत का 55.9 प्रतिशत) की जान चली गयी.

  • खतरनाक/लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग से 1,03,629 सड़क हादसे हुए (कुल हादसों का 25.7 प्रतिशत) जिसमें 91,893 लोग घायल हो गये और 42,853 लोगों (सड़क हादसे में हुए कुल मौतों का 27.5 प्रतिशत) की मौत हो गयी.

  • ओवर स्पीडिंग के कारण सबसे अधिक जान तमिलनाडु (11,419) और उसके बाद कर्नाटक (8,797) में गयी.

  • खतरनाक/लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग के कारण उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक (11,479) लोगों की जान गयी. इसके बाद राजस्थान का स्थान रहा जहां 4,299 लोगों ने इन कारणों से अपनी जानें गंवायीं.

सड़क दुर्घटना से जीडीपी को नुकसान

विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना सकल घरेलू उत्पाद के पांच से सात प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ता है. क्योंकि देश में सड़क दुर्घटना में मारे जाने वाले व्यक्तियों में से लगभग 84 प्रतिशत 18 से 60 वर्ष के कामकाजी लोग होते हैं. इतना ही नहीं, देश में होनेवाले सड़क हादसों का बहुत अधिक बोझ गरीब परिवारों पर पड़ता है, क्योंकि हताहत होने वाले 70 प्रतिशत से अधिक लोग इन्हीं परिवारों से आते हैं. आय के खत्म हो जाने और इलाज में अत्यधिक खर्च आने के कारण इन परिवारों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति बहुत प्रभावित होती है.

चाेटिल होना मौत की आठवीं बड़ी वजह

सड़क दुर्घटना में चोटिल होकर दुनियाभर में लाखों लोग हर वर्ष अपनी जान गंवा रहे हैं. यह वजह वैश्विक स्तर पर मृत्यु के प्रमुख कारणों में शुमार हो चुकी है.

  • 13.5 लाख लोग प्रतिवर्ष वैश्विक स्तर पर अपनी जान गंवा बैठते हैं सड़क दुर्घटना में घायल होकर.

  • 8वां प्रमुख कारण है मृत्यु का दुनियाभर में, सड़क दुर्घटना में चोटिल होना. जबकि 5-29 आयु वर्ग के बच्चों और युवाओं की मौत की यह प्रमुख वजह है.

  • 50 प्रतिशत से अधिक सड़क हादसों में जान गंवाने वाले साइकिल चालक, मोटरसाइकिल चालक या पैदल यात्री होते हैं.

  • 5 करोड़ लोग प्रतिवर्ष घायल या विकलांग हो जाते हैं सड़क हादसों के कारण.

निम्न-मध्यम आय वाले देश सबसे ज्यादा प्रभावित

सड़क हादसों में घायल होने का सर्वाधिक प्रभाव निम्न व मध्यम आय वाले देशों पर पड़ता है. ऐसे में ट्रॉमा केयर को बेहतर बनाकर इस तरह की मौतों में वैश्विक स्तर पर कमी लायी जा सकती है.

  • 93 प्रतिशत मृत्यु अकेले निम्न व मध्यम आय वाले देशों में होती है सड़क हादसों में घायल होने के कारण, दुनियाभर में.

  • 90 प्रतिशत लोगों की मौत 24 घंटे के भीतर हो जाती है, घायल होने के बाद.

  • 60 प्रतिशत लोग घायल होने के एक घंटे के भीतर ही अपनी जान गंवा बैठते हैं.

  • 30 प्रतिशत लोगों की जान चोटिल होने के 1-24 घंटे के भीतर चली जाती है.

  • 10 प्रतिशत लोगों की मृत्यु होती है निम्न-मध्यम आय वाले देशों में, दुर्घटना में घायल होने के 24 घंटे के बाद.

ट्रॉमा सेंटर के लाभ

  • ट्रॉमा सिस्टम को तैयार करके और उसका सुचारु तरीके से उपयोग करके निम्न-मध्यम आय वाले देशों में दुर्घटना से होनेवाली मौतों में कमी लायी जा सकती है.

  • सभी निम्न-मध्यम आय वाले देशों में पूरी तरह व्यवस्थित ट्रॉमा सिस्टम के संचालन से दो लाख से अधिक लोगों की जान बचायी जा सकती है.

  • सभी निम्न-मध्यम आय देशों के सड़क हादसे में घायल 50 प्रतिशत लोगों को ट्रॉमा सेंटर की सुविधा उपलब्ध कराकर 75,000 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है.

  • सभी निम्न-मध्यम आय देशों के सड़क हादसे में घायल 50 प्रतिशत लोगों को ट्रॉमा टीम की सुविधा यदि उपलब्ध करा दी जाये, तो 60,000 लोगों का जीवन बच सकता है.

ऐसे कम हो सकता है मौत का जोखिम

वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटना के प्रमुख कारकों में शराब पीकर गाड़ी चलाना, हेलमेट न पहनना या खराब गुणवत्ता वाला हेलमेट पहनना, तेज गति से गाड़ी चलाया और सीट बेल्ट न लगाना शामिल है. इन लापरवाही भरी आदतों के कारण दुनियाभर में सड़क दुर्घटना में चोटिल होने और मृत्यु का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा है. उपरोक्त आदतों को बदल कर सड़क दुर्घटना में प्रतिवर्ष दुनियाभर में होनेवाली लाखों मौतों को 25 से 40 प्रतिशत तक टाला जा सकता है.

  • 16,304 लोगों की जान बचायी जा सकती है प्रतिवर्ष शराब पीकर गाड़ी चलाने पर रोक लगाकर, वैश्विक स्तर पर.

  • 3,47,258 लोगों की जान बच सकती है निर्धारित गति सीमा में गाड़ी चलाने से दुनियाभर में प्रतिवर्ष.

  • 51,698 लोगों की जान बच सकती है अगर दुनियाभर में हर साल, यदि वे अच्छे गुणवत्ता वाले हेलमेट पहनकर ड्राइविंग करें.

  • 1,21,083 लोगों की जान बच सकती है वैश्विक स्तर पर हर साल सीट बेल्ट पहनें.

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