नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हिरासत में मौत के 30 साल पुराने एक मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों का परीक्षण करने का अनुरोध करने वाली बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट की याचिका पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया. भट इस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं. भट ने शीर्ष अदालत का रुख कर कहा था कि मामले में एक उचित और निष्पक्ष फैसले तक पहुंचने के लिए इन 11 गवाहों का परीक्षण जरूरी है.
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हालांकि, गुजरात पुलिस ने उनकी इस याचिका का सख्त विरोध करते हुए न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ से कहा कि यह मामले के फैसले में विलंब करने का एक हथकंडा है. गुजरात पुलिस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह और अधिवक्ता रजत नायर ने पीठ से कहा कि 1989 में हिरासत में मौत के इस मामले में अंतिम बहस पूरी हो चुकी है. निचली अदालत ने कहा है कि इस मामले में 20 जून को फैसला सुनाया जायेगा.
भारतीय पुलिस सेवा के बर्खास्त अधिकारी संजीव भट इस मामले में आरोपी हैं. इस घटना के वक्त वह गुजरात के जामनगर में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थे. भट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने दलील दी कि मामले में निष्पक्ष सुनवाई के लिए इन गवाहों का परीक्षण बहुत जरूरी है. इस पर, सिंह ने अदालत से कहा कि यह मामला करीब तीन दशक तक खींचा गया है और चूंकि शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ इस तरह की एक याचिका पर 24 मई को आदेश सुना चुकी है. इसलिए भट की याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए.
पीठ ने 24 मई के आदेश को देखने के बाद कहा कि वह तीन न्यायाधीशों की पीठ के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और भट की याचिका खारिज कर दी. सुनवाई के दौरान पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के 16 अप्रैल के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करने में हुई देर पर भी सवाल किया. पीठ ने खुर्शीद से कहा कि आप पहले ही अदालत में क्यों नहीं आए? जिस आदेश (गुजरात हाई कोर्ट का आदेश) को चुनौती दी गयी है, वह 16 अप्रैल का है. हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ इस अदालत ने 24 मई को आदेश दिया था.
अभियोजन के अनुसार, संजीव भट ने एक सांप्रदायिक दंगे के दौरान एक सौ से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया था. इन्हीं में से एक व्यक्ति की रिहाई होने के बाद अस्पताल में मौत हो गयी थी. संजीव भट को बगैर अनुमति के ड्यूटी से अनुपस्थित रहने और सरकारी वाहन का दुरुपयोग करने के आरोप में 2011 में निलंबित किया गया था. बाद में, अगस्त, 2015 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.
भट ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने हिरासत में मौत के मुकदमे की सुनवाई के दौरान पूछताछ के लिए अतिरिक्त गवाहों को बुलाने का संजीव भट का अनुरोध अस्वीकार कर दिया था. गुजरात सरकार ने भट के इस प्रयास को मुकदमे में विलंब करने का हथकंडा करार दिया.