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नागौर में जाट राजनीति पर वर्चस्व की लड़ाई, भाजपा-कांग्रेस में सीधी टक्‍कर, इस सीट से 11 बार जीती कांग्रेस

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नागौर से अंजनी कुमार सिंह एनडीए के लिए जीत दोहराने की चुनौती भाजपा ने गठबंधन के तहत यह सीट रालोपा को दी नागौर जाट राजनीति का अहम केंद्र माना जाता है. नागौर का नाम आते ही क्षेत्र की राजनीति पर पकड़ रखने वाले मिर्धा परिवार की यादें जेहन में आ जाती हैं. इस सीट से […]

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नागौर से अंजनी कुमार सिंह
एनडीए के लिए जीत दोहराने की चुनौती
भाजपा ने गठबंधन के तहत यह सीट रालोपा को दी
नागौर जाट राजनीति का अहम केंद्र माना जाता है. नागौर का नाम आते ही क्षेत्र की राजनीति पर पकड़ रखने वाले मिर्धा परिवार की यादें जेहन में आ जाती हैं. इस सीट से नाथूराम मिर्धा छह बार कांग्रेस के सांसद रहे. उनकी केंद्र और राज्य की राजनीति में अच्छी पकड़ थी.
अब मिर्धा परिवार की तीसरी पीढ़ी कांग्रेस के टिकट पर विरासत बचाने के लिए चुनावी मैदान में है. वह पहले भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी है, लेकिन मोदी लहर में 2014 में भाजपा के आरआर चौधरी से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. भाजपा ने गठबंधन के तहत राज्य की इस सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के युवा जाट नेता हनुमान बेनीवाल को मैदान में उतारा है. बेनीवाल युवाओं में काफी लोकप्रिय है. इस बार नागौर की लड़ाई जाट वोटों के वर्चस्व को लेकर भी है.
कांग्रेस प्रत्याशी : लोग बता रहे बाहरी
नागौर की लड़ाई में स्थानीयता और बाहरी भी एक मुद्दा बनता जा रहा है. कांग्रेस उम्मीदवार ज्योति मिर्धा को कई लोग बाहरी बता रहे हैं. खींवसर के किशोर चौधरी कहते हैं कि मिर्धा 2004 के चुनाव में दिखी थीं. फिर 2009 में.
अब पांच साल बाद. पिछले लोस चुनाव में हारने के बाद पांच साल तक क्षेत्र से कोई संपर्क नहीं रहा. अब चुनाव में वोट मांगने आयी है. उनसे मिलने के लिए हरियाणा या दिल्ली जाना पड़ता है, जबकि बेनीवाल हमेशा क्षेत्र में रहते हैं और लोगों के दुख-दर्द में शामिल होते हैं. वहीं, डीडवाना के रज्जाक मोहम्मद मिर्धा को बाहरी बताने को विरोधियों की साजिश करार देते हुए कहते हैं कि वह नागौर की बेटी हैं.
एनडीए उम्मीदवार : किसानों पर बड़ा भरोसा
एनडीए उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल के घर पर समर्थकों की भीड़ है. उनके भाई शंकर बेनीवाल बताते हैं, हमारी जीत पक्की है. जीत के अंतर को बढ़ाने को लेकर काम कर रहे हैं. किसान गहलोत सरकार द्वारा कर्ज माफ नहीं किये जाने से नाराज हैं. इसका फयदा बेनिवाल को मिलता दिख रहा है.
वह अपने चुनावी भाषण में इसको भुना रहे है और केंद्र की ओर से मिले दो हजार रुपये की याद कराते हुए कहते हैं, मोदी जी वही घोषणा करते हैं, जिसे पूरा किया जा सके. नागौर खींवसर, जयल में हनुमान को लोग पसंद कर रहे हैं, वहीं डीडवाना, मकराना, नावा में मिर्धा के प्रति सहानुभूति दिख रही है. कई लोगों का कहना है कि अगर बेनीवाल जीतते हैं, तो वह राज्य के बड़े जाट नेता के तौर पर स्थापित हो जायेंगे.
2014 के लोकसभा चुनाव का परिणाम
उम्मीदवार/पार्टी वोट वोट%
सीआर चौधरी, भाजपा 414791 41.25%
डॉ ज्योति मिर्धा, कांग्रेस 339573 33.77%
अब्दुल अजीज, बसपा 11239 1.12%
अयूब खान, सपा 7300 0.73%
कौन कितनी बार इस सीट से जीता
निर्दलीय : 1 बार : 1952
कांग्रेस : 11 बार : 1957, 1962, 1971, 1977, 1980, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2007
स्वतंत्र पार्टी : 1 बार : 1967
जनता दल : 2 बार : 1989, 2004
भाजपा : 1997, 2014
पिछले चुनावों के विजेता दलों के वोट प्रतिशत
1999
कांग्रेस
38.02%
2004
बसपा
45.08%
2009
कांग्रेस
54.64%
2014
भाजपा
41.31%
एससी-मुस्लिम ज्यादा संख्या में
भौगोलिक दृष्टिकोण से नागौर जिला बीकानेर और जोधपुर के मध्य में स्थित राजस्थान का पांचवां सबसे बड़ा जिला है. जाट बहुल नागौर में जाटों के अलावा राजपूत, खास तौर पर रावड़ा राजपूत का भी प्रभाव है. वहीं अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्ग और मुस्लिमों की संख्या भी अच्छी है.
गठबंधन और मोदी फैक्टर अहम
विस की 10 में छह सीटों पर कांग्रेस, दो पर भाजपा और एक पर हनुमान बेनीवाल का कब्जा है. भाजपा और बेनीवाल के बीच गठबंधन और मोदी फैक्टर इस चुनाव में अहम है, जिससे बेनीवाल कांग्रेस प्रत्याशी से आगे दिख रहे हैं. हालांकि स्थानीय मुद्दे भी कम नहीं हैं.

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