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गुजरात : किसानों की नाराजगी का फायदा उठाने की जुगत में लगी है कांग्रेस, जानें किसानों का रुझान किसकी ओर

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राजकोट से अंजनी कुमार सिंह पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार भाजपा गुजरात की सभी 26 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. पांच साल बाद एक बार फिर से भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर पुरानी जीत को दोहराना चाह रही है, लेकिन इस बार पहले के मुकाबले हालात बदले हुए हैं. […]

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राजकोट से अंजनी कुमार सिंह
पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार भाजपा गुजरात की सभी 26 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. पांच साल बाद एक बार फिर से भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर पुरानी जीत को दोहराना चाह रही है, लेकिन इस बार पहले के मुकाबले हालात बदले हुए हैं. कभी भाजपा का गढ़ रहे सौराष्ट्र में आज कांग्रेस पानी के मुद्दे पर चुनाव जीतने का दावा कर रही है.
सौराष्ट्र में पानी की समस्या किसानों के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है. सुरेंद्रनगर और अमरेली लोकसभा के अंतर्गत आने वाले लिंमडी-चाेटिया के किसान कहते हें, ‘इस इलाके को गुजरात नहीं सौराष्ट्र कहिए. यदि यह गुजरात का हिस्सा होता, तो इन इलाकों की चमक भी अहमदाबाद और सूरत की तरह होती’. किसानों के बातों में तल्खी दिखती है.उनका मानना है कि गुजरात का विकास तो हुआ है लेकिन इसमें सौराष्ट्र पीछे छूट गया है.
सौराष्ट्र में सूखा पड़ा है. इन इलाकों के गांवों में जीवन-यापन का मुख्य पेशा खेती है, लेकिन किसानों की एक बड़ी आबादी पानी की समस्या, फसल की बर्बादी और बीमा कंपनियों द्वारा मुआवजा न मिलने से परेशान है. वहीं वारिश न होने की वजह से सभी किसानों के खेतों में पानी पहुंचाना सरकार के लिए भी एक चुनौती है. दूसरी ओर, कांग्रेस इस मुद्दे को हवा दे रही है और उसे उम्मीद है कि लोकसभा चुनाव में उसे किसानों की नाराजगी का फायदा मिलेगा.
राज्य कांग्रेस कमेटी के महामंत्री डॉ हिमांशु भाई पटेल कहते हैं, जिन किसानों और मध्य वर्ग के बल पर भाजपा सत्ता में आयी है, उन्हीं किसानों की नाराजगी के कारण वह सत्ता से बाहर होगी. भाजपा जिस गुजरात मॉडल की बात कर रही है, वह मॉडल यही है कि राज्य के खेरू (किसान) पानी के अभाव में मरे और झूढे वायदा करने वाले राज करे.
20 फीसदी पाटीदार मतदाता
गुजरात में करीब 20 फीसदी पाटीदार मतदाता हैं, जो प्रदेश की 26 में से 10 लोकसभा सीटों पर मजबूत असर रखते हैं. इनमें ज्यादा किसान हैं. पाटीदार दो वर्गे में बंटे हुए हैं. कड़वा पटेल 60 फीसदी और लेउवा पटेल 40 फीसदी हैं. कड़वा पटेल समुदाय के लोग उत्तर गुजरात के मेहसाणा, अहमदाबाद, कड़ी-कलोल इलाके की सीटों पर असर रखते हैं, जबकि लेउवा पटेल ज़्यादातर सौराष्ट्र-कच्छ इलाके के राजकोट, जामनगर, भावनगर, अमरेली, जूनागढ़, पोरबंदर, सुरेंद्रनगर जिलों में अपना प्रभाव रखते हैं.
देखना यह है, किसानों का रुझान किसकी ओर
राजकोट : सीएम विजय रुपानी का गृह जिला है राजकोट. पहली बार पीएमद्र मोदी ने विस का चुनाव राजकोट से ही लड़ा था. यह भाजपा का गढ़ है. भाजपा ने मोहन कुंडारिया को फिर मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस से ललित कगथरा मैदान में हैं. यहां की जनता पीएम नरेंद्र मोदी व सीएम विजय रूपाणी के काम से संतुष्ट नजर आ रहे हैं.
जामनगर : यहां ढाई लाख पाटीदार, सवा दो लाख मुस्लिम, पौने दो लाख अहिर और क्षत्रिय है. भाजपा ने मौजूदा सांसद पूनम माडम को दोबारा मौका दिया है. कांग्रेस से मुलुभाई कंडोरिया मैदान में हैं. दोनों अहिर जाति के हैं.
जूनागढ़ : इस सीट पर कांग्रेस को जीत की उम्मीद है. भाजपा ने राजेश चूड़ासमा को दोबारा टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस की ओर से ऊना के विधायक पुंजा वंश चुनाव मैदान में हैं.
अमरेली : पाटीदार आंदोलन का सबसे अधिक प्रभाव यहीं देखा गया था. कांग्रेस ने विस में प्रतिपक्ष के नेता परेश धानाणी को मैदान में उतारा है. भाजपा से मौजूदा सांसद नारायण कछाडिया मैदान में है.
पोरबंदर : चार लाख पाटीदार मतों वाली इस सीट पर भाजपा ने रमेश धडुक और कांग्रेस ने ललित वसोया को उतारा है. ललित हार्दिक पटेल के करीबी हैं. पाटीदार नेता रेशमा पटेल मैदान में निर्दलीय हैं.

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