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नयी दिल्ली : भारत रत्न हजारिका

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नयी दिल्ली : 25 जनवरी (भाषा) पारंपरिक असमी संगीत का जादू बिखेरने वाले और "दिल हूम हूम करे" और "ओ गंगा बहती हो" जैसे कई शानदार गीत गाने वाले भूपेन हजारिका ने अपनी मधुर आवाज के जरिये से कई पीढ़ियों के लाखों लोगों को प्रेरित किया. "ब्रह्मपुत्र के कवि" को शुक्रवार को भारत रत्न देने […]

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नयी दिल्ली : 25 जनवरी (भाषा) पारंपरिक असमी संगीत का जादू बिखेरने वाले और "दिल हूम हूम करे" और "ओ गंगा बहती हो" जैसे कई शानदार गीत गाने वाले भूपेन हजारिका ने अपनी मधुर आवाज के जरिये से कई पीढ़ियों के लाखों लोगों को प्रेरित किया.

"ब्रह्मपुत्र के कवि" को शुक्रवार को भारत रत्न देने की घोषणा की गई। कवि, संगीतकार, गायक, अभिनेता, पत्रकार, लेखक और फिल्मकार भूपेन हजारिका ने असम की समृद्ध लोक विरासत को अपने गीतों के माध्यम से दुनिया को परिचित कराया। सादिया में एक शिक्षक परिवार में 1926 में जन्मे हजारिका ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गुवाहाटी से 1942 में पूरी की.
उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से 1944 में स्नातक और 1946 में परास्नातक (राजनीति विज्ञान) किया. उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से जनसंचार में पीएचडी की. शिकागो विश्वविद्यालय ने उन्हें सिनेमा के माध्यम से शैक्षिक परियोजना के विकास के उपयोग के अध्ययन के लिए लेस्ले फैलोशिप प्रदान की. अमेरिका में उनकी प्रख्यात अश्वेत गायक पाल राबिनसन से मुलाकात हुई. राबिनसन के प्रसिद्ध गीत ओल्ड मैन रिवर को परिवर्तित कर उन्होंने "बिस्तर नो परोरे" (हिंदी में—ओ गंगा बहती हो) गाया जो बेहद लोकप्रिय हुआ.
हजारिका ने एक बार बताया था कि " मैं जनजातीय संगीत सुनते हुए बड़ा हुआ जिसकी लय ने मेरा गायन के प्रति रुझान विकसित किया. शायद, गायन का कौशल मुझे अपनी मां से विरासत में मिला जो मेरे लिये लोरिया गाती थी. वास्तव में मैने फिल्म रुदाली में अपनी मां की एक लोरी का प्रयोग किया है." भूपेन ने 12 वर्ष की उम्र में 1939 में अपना पहला गीत बिस्व निजोय नोजवान गाया.
यह असम की दूसरी फिल्म इंद्रमालती का एक गीत था. अपनी मातृभाषा असमी के अलावा हजारिका ने 1930 से 1990 के बीच कई दशकों तक हिंदी और बंगाली के लिए भी कई गीत लिखे और गाये. हजारिका असम के अग्रणी लेखक और कवि में भी शुमार किये जाते हैं. उन्होंने एक हजार से ज्यादा गीत, लघु कहानियों पर कई किताबें, निबंध, यात्रा वृतांत, कविताएं और बच्चों के लिए कई कविताएं लिखीं.
उन्होंने असमी में कई फिल्मों का निर्माण, निर्देशन करने और इनमें संगीत देने के साथ-साथ गीत भी गाये. इनमें इरा बातार सुर, शकुंतला, प्रतिध्वनि, चिक मिक बिजली, सिराज आदि शामिल हैं. उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध हिंदी फिल्मों में रुदाली, एक पल, दरम्यिान, दम और क्यों शामिल हैं. इसके अलावा साईं परांजपे की पापा और साज, मिल गई मंजिल मुझे और एमएफ हुसैन की गजगामिनी शामिल है.
उन्हें फिल्म चमेली मेमसाब के लिए 1976 में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार और उनकी फ़िल्में शकुंतला (1960), प्रतिध्वनि (1964) और लोटीघोटी (1967) के लिए उन्हें राष्ट्रपति पदक मिला. वह 1967-72 तक असम विधानसभा के सदस्य भी रहे. 1997 में उन्हें पद्मश्री प्रदान किया गया. 1987 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार दिया गया. हजारिका 1999-2004 तक संगीत नाटक अकादमी के चेयरमैन भी रहे.

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