नयी दिल्ली : बालगृह के सुरक्षा गार्ड पर एचआईवी पीड़ित बच्चे से बार-बार अप्राकृतिक दुष्कर्म का आरोप लगा था. जिसमें निचली अदालत ने गार्ड को 10 वर्ष की सजा सुनायी थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को इस मामले में सुरक्षा गार्ड को सभी आरोपों से बरी कर दिया और कहा कि स्थिति एक ‘‘अनसुलझी पहेली रही.” न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया जिसमें उसने व्यक्ति को 10 वर्ष की सजा सुनायी थी. अदालत ने कहा कि उसे ऐसे ‘‘अनसुलझे” अपराध के लिए दोषी ठहराना ‘‘न्याय को उपहास का विषय बनाना” होगा.
उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ व्यक्ति की अपील मंजूर करते हुए कहा, ‘‘..इस अदालत का विचार है कि वर्तमान मामले में अभियोजन द्वारा पेश सबूत, जिस पर अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भरोसा किया वह अपीलकर्ता के खिलाफ यह दोष साबित करने के लिए अपर्याप्त है कि उसने बच्चे का यौन उत्पीड़न किया.” उच्च न्यायालय ने अपने 69 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि बच्चा एचआईवी संक्रमित था और झारखंड का रहने वाले आरोपी अमरदीप कुजूर की एचआईवी जांच नकारात्मक आयी. अदालत ने निचली अदालत के इस रूख से असहमति जतायी कि यह जरूरी नहीं कि एचआईवी वायरस यौन सम्पर्क के प्रत्येक मामले में एक साथी से दूसरे में जाए.
बच्चे ने आरोप लगाया था कि बालगृह में उसका कई बार यौन उत्पीड़न किया गया. बच्चे का पिता जेल में था और उसकी मां की मृत्यु एचआईवी से हो गई थी. उसकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं था इसलिए उसे बाल गृह भेज दिया गया था. व्यक्ति ने दावा किया था कि उसने पीड़ित का यौन उत्पीड़न नहीं किया.