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अटल से लेकर मोदी तक के प्रिय थे अनंत कुमार

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केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री और भाजपा नेता अनंत कुमार (59) का सोमवार तड़के बेंगलुरु के श्री शंकरा कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में निधन हो गया. निष्ठावान आरएसएस कार्यकर्ता और लंबे समय से भाजपा सदस्य रहे अनंत कुमार में अपार संगठन कौशल था. उन्होंने कर्नाटक और पार्टी को अपने कैरियर का दोहरा केंद्र बनाया. वे […]

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केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री और भाजपा नेता अनंत कुमार (59) का सोमवार तड़के बेंगलुरु के श्री शंकरा कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में निधन हो गया. निष्ठावान आरएसएस कार्यकर्ता और लंबे समय से भाजपा सदस्य रहे अनंत कुमार में अपार संगठन कौशल था.

उन्होंने कर्नाटक और पार्टी को अपने कैरियर का दोहरा केंद्र बनाया. वे अक्तूबर, 2012 में संयुक्त राष्ट्र में कन्नड़ में संबोधन करने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्हें अक्सर दिल्ली में कर्नाटक भाजपा का चेहरा समझा जाता था. कुमार दक्षिण बेंगलुरु से छह बार सांसद रहे हैं. वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के करीबी थे, चाहे वह अटल बिहारी वाजपेयी का जमाना हो या अब नरेंद्र मोदी का समय.

अनंत कुमार का जन्म बेंगलुरु में 22 जुलाई, 1959 को मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता नारायण शास्त्री एक रेलवे कर्मचारी थे और माता गिरिजा एन शास्त्री थीं. कला एवं कानून में स्नातक कुमार की सार्वजनिक जीवन में यात्रा संघ परिवार के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ने के साथ शुरू हुई.

* वाजपेयी कैबिनेट में सबसे युवा मंत्री थे

कुमार ने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के आपतकाल लागू करने के खिलाफ प्रदर्शन किया, जिसके लिए उन्हें करीब 30 दिन के लिए जेल भेजा गया. जहां उनकी राजनीतिक सूझ-बूझ का विकास हुआ. कुमार 1987 में भाजपा में शामिल हुए. कुमार 1996 में बेंगलुरु दक्षिण सीट से लोकसभा के लिए चुने गये. धीरे-धीरे उनका राजनीतिक कद बढ़ता गया. 1998 में वह वाजपेयी मंत्रिमंडल में शामिल हुए, उस वक्त वह महज 38 साल के थे और टीम में सबसे ‘युवा’ मंत्री भी.

* दक्षिण व उत्तर भारत की राजनीति के बीच एक सेतु थे : हरिवंश

केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार के असामयिक निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और तमाम बड़ी हस्तियों ने इसपर गहरी संवेदना जाहिर की है. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि अनंत कुमार का निधन देश की राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है. व्यवहार कुशलता और कार्य दक्षता उनकी पहचान थी. राज्यसभा में जाने के बाद उन्हें करीब से जाना और उनके काम-काज के तौर-तरीके को भी देखने-समझने का अवसर मिला.

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