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मून मैन मइलस्वामी : बस टिकट के लिए भी पैसे नहीं होते, 10 गुना कम कीमत में बनाया मंगलयान

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2014 में दुनिया के शीर्ष 100 विचारकाें में किये गये शामिलअपनी स्कूल ड्रेस ऐसे पहनते कि फटे नहीं, ताकि छोटे पहनें पैतृक गांव में ही मून मैन अन्नादुरई ने की थी शुरुआती पढ़ाईइस महीने होंगे रिटायर, 1982 में इसरो में हुए थे शामिल नयी दिल्ली : अंतरिक्ष और चांद सितारों की खबर रखने वालों में […]

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2014 में दुनिया के शीर्ष 100 विचारकाें में किये गये शामिल
अपनी स्कूल ड्रेस ऐसे पहनते कि फटे नहीं, ताकि छोटे पहनें
पैतृक गांव में ही मून मैन अन्नादुरई ने की थी शुरुआती पढ़ाई
इस महीने होंगे रिटायर, 1982 में इसरो में हुए थे शामिल

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नयी दिल्ली : अंतरिक्ष और चांद सितारों की खबर रखने वालों में ‘मून मैन’ के नाम से मशहूर मइलस्वामी जब छोटे थे तो पिता ताकीद करते थे कि स्कूल की वर्दी और किताबें सहेजकर इस्तेमाल करें ताकि उनके पांच छोटे भाई बहन भी उन्हें इस्तेमाल कर सकें. बड़े हुए तो किफायत बरतने की यह आदत ऐसी काम आयी कि भारत के लिए नासा के मुकाबले दस गुना कम कीमत में मंगलयान बना डाला. इसरो से इसी महीने सेवानिवृत्त होने जा रहे अंतरिक्ष वैज्ञानिक मइलस्वामी अन्नादुरई भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं और बेंगलुरु स्थित इसरो के सेटेलाइट केंद्र के निदेशक हैं. उनकी विद्वता और अपने क्षेत्र में उत्कृष्टता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2014 में उन्हें विश्व के 100 शीर्ष विचारकों में शामिल किया गया और नवाचारियों की सूची में वह प्रथम स्थान पर रहे.

महान लोगों के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को मालूम हो और देश के नौनिहाल उनके बारे में जान सकें इसलिए अन्नादुराई की उपलब्धियों को तमिलनाडु में 10वीं कक्षा की विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में स्थान दिया गया है. दो जुलाई 1958 को तमिलनाडु के कोयंबटूर से 25 किलोमीटर दूर कोधावड़ी गांव में जन्मे अन्नादुरई की स्कूली शिक्षा उनके पैतृक गांव में ही हुई. अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़े अन्नादुरई स्कूल में पढ़ते थे. तब उनके पिता का वेतन था 120 रुपए. ऐसे में उन पर यह दबाव रहता था कि स्कूल कीवर्दी और किताबों को एहतियात से इस्तेमाल करें ताकि उनके छोटे भाई बहनों तक पहुंचने से पहले वह फटने नहीं पाएं.

बड़े होने पर आगे की पढ़ाई के लिए कोयंबटूर जाने लगे तो बस का किराया भरने की समस्या आन खड़ी हुई. उस समय बस का एक तरफ का किराया छह पैसे हुआ करता था. अन्नादुरई पहले जाकर खड़े हो जाते थे और बस में अपने पांच छह साथियों के लिए सीट घेर लेते थे. इसके बदले में उनके दोस्त उनकी टिकट के पैसे भर दिया करते थे. किफायत बरतने की बचपन की यह आदत अन्नादुरई के खूब कामआयी. इसरो में काम करने के दौरान उन्होंने मंगल पर अंतरिक्ष यान भेजने की पूरी परियोजना का संचालन किया और नासा ने मंगल पर भेजे जाने वाले यान मावेन के निर्माण और प्रक्षेपण पर जितनी रकम खर्च की इसरो ने उससे दस गुना कम कीमत में मंगलयान बना डाला. उन्होंने दूसरे देशों के उपग्रहों को भी बेहद कम कीमत में अंतरिक्ष में भेजने की व्यवस्था की, जिससे कई देशों ने इस काम के लिए इसरो का चयन किया.

चंद्रयान एक और चंद्रयान दो का नेतृत्व भी अन्नादुरई ने ही किया और उसके बाद उन्हें मून मैन का नाम दिया गया. वर्ष 2004 से 2008 के दौरान वह इसरो की चंद्रयान परियोजना के निदेशक रहे और इसरो के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के दल के साथ उन्होंने परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करके दुनियाभर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया. चंद्रयान एक परियोजना को देश विदेश के बहुत से अवार्ड मिले. इनमें 2009 में अमेरिका के फ्लोरिडा में अंतरिक्ष विकास पर 28वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए दिया गया प्रतिष्ठित पुरस्कार स्पेस पायनियर शामिल है. अन्नादुरई ने तमिलनाडु के कोयंबटूर में ही अपनी शिक्षा पूरी की और 1982 में इनसैट परियोजनाओं के मिशन डायरेक्टर के तौर पर इसरो में शामिल हुए.

इसरो के साथ उनके काम और उनकी उपलब्धियों को देखकर लगता है जैसे वह इसरो के लिए ही बने थे. इनसेट प्रणाली के रखरखाव में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया. इसरो में ढेरों अन्य जिम्मेदारियां निभाने वाले पद्मश्री से सम्मानित अन्नादुरई इसी माह इसरो से सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने अंतरिक्ष के क्षेत्र में देश को पूरी दुनिया में सबसे आगे लाकर खड़ा कर दिया है और उनके नेतृत्व में काम करने वाली टीम आगे भी उनके दिखाए रास्ते पर चलते हुए देश को चांद सितारों की दुनिया में सबसे रौशन मुकाम पर बनाए रखेगी.

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