नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी याचिकाओं पर मंगलवार को महत्वपूर्ण सुनवाई शुरू कर दी. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर , न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता और समलैंगिक संबंधों को अपनाने वाले समुदाय के मौलिक अधिकारों पर विचार करेगी.
शीर्ष अदालत ने वर्ष 2013 में अपने फैसले में समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने संबंधी दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया था. हाई कोर्ट ने दो समलैंगिक व्यक्तियों द्वारा परस्पर सहमति से यौन संबंध स्थापित करने को दंडनीय अपराध बनाने वाली धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया था. धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध दंडनीय अपराध है और इसके लिये दोषी व्यक्ति को उम्र कैद , या एक निश्चित अवधि के लिये , जो दस साल तक हो सकती है , सजा हो सकती है और उसे इस कृत्य के लिये जुर्माना भी देना होगा.
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इस मामले में सुनवाई शुरू होते समय गैर सरकारी संगठन नाज फाउण्डेशन के एक वकील ने हस्तक्षेप की अनुमति मांगी. इसी संगठन ने साल 2001 में सबसे पहले हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. पीठ ने कहा कि इस मामले में दायर सुधारात्मक याचिका का सीमित दायरा है और कोई अन्य पीठ को इसकी सुनवाई करनी होगी. संविधान पीठ के समक्ष आज एक नृत्यांगना नवतेज जौहर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि लैंगिक स्वतंत्रता के अधिकार को नौ सदस्यीय संविधान पीठ के 24 अगस्त , 2017 के फैसले के आलोक में परखा जाना चाहिए. इस फैसले में संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताते हुए कहा था कि एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को निजता के अधिकार से सिर्फ इस वजह से वंचित नहीं किया जा सकता कि उनका गैरपारंपरिक यौन रूझान है और भारत की एक करोड़ 32 लाख की आबादी में उनकी संख्या बहुत ही कम है.
पीठ ने रोहतगी की इस दलील से सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वह जीवन के मौलिक अधिकार और लैंगिक स्वतंत्रता के पहलू पर विचार करेगी. इन याचिकाओं में भी शीर्ष अदालत के वर्ष 2013 के फैसले को चुनौती दी गयी है जिसमे समलैंगिक रिश्तों को अपराध करार दिया था. केंद्र ने कल इन याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिये कुछ समय देने का अनुरोध करते हुए सुनवाई स्थगित करने का आग्रह किया था. परंतु शीर्ष अदालत ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया था. इस प्रकरण में शीर्ष अदालत के वर्ष 2013 के फैसले पर पुनर्विचार के लिये दायर याचिकायें खारिज होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुधारात्मक याचिका का सहारा लिया. साथ ही इन याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई का अनुरोध भी किया गया.
शीर्ष अदालत ने इस पर सहमति व्यक्त की और इसी के बाद धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये कई याचिकायें दायर की गयीं. न्यायालय में धारा 377 के खिलाफ याचिका दायर करने वालों में पत्रकार सुनील मेहरा , शेफ रितु डालमिया , होटल मालिक अमन नाथ और आयशा कपूर शामिल हैं.
इधर धारा 377 को खत्म करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई से पहले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि यह सामान्य बात नहीं है. हम इसका जश्न नहीं मना सकते. यह हिंदुत्व के खिलाफ है. अगर यह ठीक हो सकता है तो हमें मेडिकल रिसर्च में निवेश करना चाहिए. सरकार को 7 या 9 न्यायाधीशों की बेंच रखने पर विचार करना चाहिए.
दुनिया के 72 देशों में अब भी अपराध है समलैंगिक संबंध
एक ओर दुनिया के करीब 25 देशों में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता प्रदान की गयी है, तो करीब 72 देश अथवा क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां इसे अब भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है. इनमें करीब 45 ऐसे भी देश हैं, जहां स्त्रियों के बीच आपसी यौन संबंधों को गैर-कानूनी करार दिया गया है. इंटरनेशनल लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांस एंड इंटरसेक्स एसोसिएशन (आईएलजीए) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया आठ देश ऐसे हैं, जहां समलैंगिकता की सजा मौत है. इन देशों में ईरान, सूडान, सऊदी अरब, यमन, सोमालिया, नाइजीरिया, इराक और सीरिया शामिल हैं. इसके अलावा, दुनिया के दर्जनों देशों में समलैंगिक गतिविधियों पर जेल की सजा संभव है.
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छत्तीसगढ़ में भारत का पहला समलैंगिक विवाह
भारत के कई हिस्सों में भी समलैंगिक रिश्ते और विवाह की खबरें आती रहती हैं. छत्तीसगढ़ संभवतः भारत का पहला ऐसा राज्य है, जहां गैर-कानूनी तरीके से समलैंगिक विवाह किया गा था. सूबे के सरगुजा के जिला अस्पताल की नर्स तनूजा चौहान और जया वर्मा ने 27 मार्च, 2001 को वैदिक रीति से विवाह किया था. इसके साथ ही, छत्तीसगढ़ के ही दुर्ग जिले में डॉक्टर नीरा रजक और नर्स अंजनी निषाद ने समलैंगिक विवाह के लिए जिला प्रशासन को आवेदन भी दिया था, लेकिन ज़िला प्रशासन ने उनके आवेदन को ठुकरा दिया था. इसी राज्य में रायगढ़ से 40 किलोमीटर दूर एक गांव में रहने वाली 20 साल की रासमति और 13 साल की रुक्मणी ने भी शादी की थी, लेकिन गांव में उनके इस विवाह को लेकर काफी हंगामा खड़ा हो गया था. आखिर में दोनों को अलग-अलग रहने के लिए बाध्य कर दिया गया.
भारत में अंग्रेजों ने ही समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी रखकर बनाया था धारा 377
पूरी दुनिया के विकसित देशों में भले ही समलैंगिकता को मान्यता दे दी गयी हो, लेकिन भारत में अंग्रेजों ने ही इसे गैर-कानूनी घोषित कर दिया था. इस देश में अंग्रेजों ने 1857 के सिपाही विद्रोह के करीब पांच साल बाद 1862 में इसे अपराध की श्रेणी में डालने के लिए धारा 377 लागू कर दिया था. इस कानून के तहत अप्राकृतिक यौन संबंध को गैर-कानूनी ठहराया गया है. अगर कोई स्त्री-पुरुष आपसी सहमति से भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाते हैं, तो इस धारा के तहत 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है. इसके साथ ही, किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है. सहमति से अगर दो पुरुषों या स्त्रियों के बीच यौन संबंध भी इस कानून के दायरे में आते हैं.
2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को किया था अपराध की श्रेणी से बाहर
इससे पहले, वर्ष 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला सुनाया था, लेकिन 2013 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जीएस सिंघवी और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने हाई कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया था. हालांकि, अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को ज्यादा बड़ी पीठ को सौंपने की बात कही है.