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येदियुरप्पा : दक्षिण भारत में बीजेपी का वह पहला सीएम, जो थोड़े ही सीटों चूक गया

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बेंगलुरू : एक सरकारी लिपिक की मामूली पृष्टभूमि से अपनी शुरूआत करने वाले बी एस येदियुरप्पा गुरूवार को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन केवल तीन दिन तक इस पद पर रहने के बाद आज उन्होंने सबसे कम समय तक कर्नाटक का मुख्यमंत्री रहने के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ दिया. 75 वर्षीय बूकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा […]

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बेंगलुरू : एक सरकारी लिपिक की मामूली पृष्टभूमि से अपनी शुरूआत करने वाले बी एस येदियुरप्पा गुरूवार को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे लेकिन केवल तीन दिन तक इस पद पर रहने के बाद आज उन्होंने सबसे कम समय तक कर्नाटक का मुख्यमंत्री रहने के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ दिया. 75 वर्षीय बूकानाकेरे सिद्धलिंगप्पा येदियुरप्पा को हालांकि राजनीति की लहरों में अनुभवी नाविक माना जाता है लेकिन इस बार तीव्र लहरों के बीच वह भाजपा की नौका को सुरक्षित ढंग से पार नहीं लगा पाये.

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भाजपा को प्राप्त हुई 104 सीटों में बहुमत के जादुई आकड़े को हासिल करने के लिए सात अतिरिक्त सीटों को जुटाने में विफल रहे येदियुरप्पा ने विधानसभा के पटल पर अपना इस्तीफा देने की घोषणा की और इस तरह उन्होंने 2007 में बनाये अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ दिया जब वह केवल सात दिन तक ही मुख्यमंत्री रहे थे. वह 2007 में मात्र सात दिनों तक 12 नवम्बर से 19 नवम्बर तक ही मुख्यमंत्री रहे थे. उस समय जद (एस) ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. आरएसएस के निष्ठावान स्वयंसेवक रहे येदियुरप्पा महज 15 साल की उम्र में दक्षिणपंथी हिंदूवादी संगठन में शामिल हुए. जनसंघ से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत कर वह अपने गृहनगर शिवमोगा जिले के शिकारीपुरा में भाजपा के अगुवा रहे. 1970 के दशक की शुरूआत में वह शिकारीपुरा तालुका से जनसंघ प्रमुख बने.वर्तमान में शिवमोगा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे येदियुरप्पा वर्ष 1983 में शिकारीपुरा विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गये. इसके बाद उन्होंने इस सीट का पांच बार प्रतिनिधित्व किया.

लिंगायत समुदाय के इस दिग्गज नेता को किसानों की आवाज उठाने के लिये जाना जाता है. अपने चुनावी भाषणों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसका बार – बार जिक्र भी कर चुके हैं. कला स्नातक येदियुरप्पा आपातकाल के दौरान जेल भी गये। उन्होंने समाज कल्याण विभाग में लिपिक की नौकरी करने के बाद अपने गृहनगर शिकारीपुरा में एक चावल मिल में भी इसी पद पर काम किया. इसके बाद शिवमोगा में उन्होंने हार्डवेयर की दुकान खोली. वर्ष 2004 में राज्य में भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बन सकते थे. लेकिन कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा की जद (एस) के गठजोड़ से यह संभव नहीं हो सका और तब राज्य की सरकार धरम सिंह के नेतृत्व में बनी. अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता के लिये पहचाने जाने वाले येदियुरप्पा ने कथित खनन घोटाले में लोकायुक्त द्वारा मुख्यमंत्री धरम सिंह पर अभियोग लगाये जाने के बाद वर्ष 2006 में एच डी देवगौड़ा के पुत्र एच डी कुमारस्वामी के साथ हाथ मिलाया और धरम सिंह की सरकार गिरा दी.
बारी – बारी से मुख्यमंत्री पद की व्यवस्था के तहत कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा उपमुख्यमंत्री बने. हालांकि 20 महीने बाद ही जद (एस) ने सत्ता साझा करने के समझौते को नकार कर दिया , जिसके चलते गठबंधन की यह सरकार भी गिर गयी और आगे के चुनावों का रास्ता साफ हुआ. येदुरिप्पा नवम्बर 2007 में पहली बार मुख्यमंत्री बने लेकिन वह केवल सात दिन ही मुख्यमंत्री रहे क्योंकि कुमारस्वामी ने सत्ता साझा करने के समझौते को नकार दिया था. मई 2008 के चुनावों में भाजपा के सत्ता में आने के बाद वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. लिंगायत समुदाय के दिग्गज नेता येदियुरप्पा के नेतृत्व में पार्टी ने जीत हासिल की और दक्षिण में पहली बार उनके नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी.
बहरहाल , येदियुरप्पा बेंगलुरु में जमीन आवंटन को लेकर अपने पुत्र के पक्ष में मुख्यमंत्री कार्यालय के कथित दुरुपयोग को लेकर विवादों में घिरे. अवैध खनन घोटाला मामले में लोकायुक्त के उन पर अभियोग लगाया और उनको 31 जुलाई 2011 को इस्तीफा देना पड़ा. कथित जमीन घोटाला के संबंध में अपने खिलाफ वारंट जारी होने के बाद उसी साल 15 अक्तूबर को उन्होंने लोकायुक्त अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया. एक सप्ताह वह जेल में रहे. इस घटनाक्रम को लेकर भाजपा से नाराज येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ दी और कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) का गठन किया. हालांकि में वह केजेपी को कर्नाटक की राजनीति में पहचान दिलाने में नाकाम रहे लेकिन वर्ष 2013 के चुनावों में उन्होंने छह सीटें और दस फीसदी वोट हासिल कर भाजपा को सत्ता में आने भी नहीं दिया. एक तरफ येदियुरप्पा अनिश्चित भविष्य के दौर से गुजर रहे थे तो वहीं भाजपा को भी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने अभियान को आगे बढ़ाने के लिये एक ताकतवर चेहरे की जरूरत थी.
इस तरह दोनों फिर से एक साथ आ गये. नौ जनवरी 2014 को येदियुरप्पा की केजेपी का भाजपा में विलय हो गया जिसके फलस्वरूप वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 28 में 19 सीटों पर जीत दर्ज की। अपने दामन पर भ्रष्टाचार के दाग के बावजूद भाजपा में येदियुरप्पा की प्रतिष्ठा और कद बढ़ता गया. 26 अक्तूबर 2016 को उन्हें उस वक्त बड़ी राहत मिली जब सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें , उनके दोनों बेटों और दामाद को 40 करोड़ रुपये के अवैध खनन मामले में बरी कर दिया। इसी मामले के चलते वर्ष 2011 में उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. जनवरी 2016 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने , भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत लोकायुक्त पुलिस की ओर से येदियुरप्पा के खिलाफ दर्ज सभी 15 प्राथमिकियों को रद्द कर दिया. उसी साल अप्रैल में येदियुरप्पा चौथी बार राज्य भाजपा के प्रमुख नियुक्त हुए. भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों और कांग्रेस के तंज को नजरअंदाज करते हुए भाजपा ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था.

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