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बच्चों से यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई तेज करने के लिए उच्च न्यायालयों को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

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नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पोक्सो कानून के तहत बच्चों से यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई तेज करने और इनकी निगरानी के लिए मंगलवारको अनेक निर्देश जारी किये. शीर्ष अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों से कहा कि वे ऐसे मामलों की निगरानी के लिए तीन न्यायाधीशों की समिति गठित करें. प्रधान न्यायाधीश दीपक […]

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नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पोक्सो कानून के तहत बच्चों से यौन हिंसा के मामलों की सुनवाई तेज करने और इनकी निगरानी के लिए मंगलवारको अनेक निर्देश जारी किये. शीर्ष अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों से कहा कि वे ऐसे मामलों की निगरानी के लिए तीन न्यायाधीशों की समिति गठित करें.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा पेश रिपोर्ट पर विचार किया और कहा कि पोक्सो कानून के तहत उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में क्रमश: 30,884, 16,099 और 10,117 मुकदमें विभिन्न चरणों में लंबित हैं. पीठ ने कहा कि पोक्सो कानून के तहत लंबित मामलों की सही मायने में तेजी से जांच और फिर मुकदमे की कार्यवाही पूरी करने के बारे में निर्देश देने की आवश्यकता है. पीठ ने कहा, ‘उच्च न्यायालय पोक्सो कानून के तहत मुकदमों की सुनवाई को नियंत्रित करने के लिए तीन न्यायाधीशों की समिति गठित कर सकते हैं. सभी राज्यों के उच्च न्यायालय यह देखेंगे कि पोक्सा कानून के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई कानून के प्रावधान के अनुसार विशेष अदालतें ही करें. सिर्फ इस तरह के मुकदमों की सुनवाई के लिए इन अदालतों को जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है.’

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों से कहा कि विशेष अदालतों को यह निर्देश दिया जायें कि वे बाल यौन हिंसा से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के दौरान स्थगन नहीं दें. शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पुलिस महानिरीक्षक या इसी रैंक के पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पोक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों की जांच तेजी से पूरी हो और गवाहों को अपने बयान दर्ज कराने के लिए अदालतों में पेश किया जाये. पीठ ने उच्च न्यायालयों को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि विशेष अदालतों में ऐसे सभी मामलों की कार्यवाही ‘बच्चों के अनुकूल माहौल’ में की जाये. न्यायालय ने इन निर्देशों के साथ अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव की जनहित याचिका का निबटारा कर दिया.

श्रीवास्तव ने राजधानी के नेताजी सुभाष पार्क के निकट एक बस्ती में 28 वर्षीय रिश्तेदार द्वारा आठ महीने की बच्ची से कथित बलात्कार के मामले में इस साल जनवरी में याचिका दायर की थी. पीठ ने केंद्र को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि इस बच्ची की सही तरीके से चिकित्सीय देखभाल की जाये और आवश्यक हो तो भविष्य में भी ऐसा किया जाये. इस बच्ची की अब तक दो बार सर्जरी हो चुकी है. सरकार ने 20 अप्रैल को ही न्यायालय को सूचित किया था कि वह दंड कानून में संशोधन कर 12 साल तक की बच्चियों से यौन हिंसा के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान करने पर गंभीरता से विचार कर रही है. नवजात शिशुओं और नाबालिग बच्चियों से बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 21 अप्रैल को ऐसे अपराधों के कानून में कठोर प्रावधान करते हुए एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी. इसमें 12 साल से कम आयु की बच्चियों से बलात्कार के अपराध में मौत की सजा का भी प्रावधान किया गया है.

श्रीवास्तव ने भी अपनी याचिका में इस तरह के अपराध के लिए मौत की सजा का प्रावधान करने और ऐसे अपराधों की जांच छह महीने के भीतर पूरी करने के लिए दिशा निर्देश बनाने का अनुरोध किया था. दिल्ली के मामले में पुलिस ने दावा था कि आरोपी ने शराब के नशे में बच्ची से बलात्कार करना कबूल किया है. इस बच्ची के माता-पिता अपनी बच्ची को अपनी एक रिश्तेदार के पास छोड़कर काम पर जाते थे. एक रविवार जब उस रिश्तेदार का बेटा घर पर अकेला था तो उसने कथित रूप से बच्ची से दुष्कर्म किया. काम से जब मां घर लौटी तो उसने पीड़ित के कपड़ों पर खून के निशान देखे और उसने अपने पति को सूचित किया और वे बच्ची को अस्पताल ले गये जहां उसके साथ यौन हिंसा किये जाने का पता चला.

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