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क्या वाकई टूजी प्रकरण चतुर लोगों की कलाकारी थी?

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क्यों है अंतर सुप्रीम कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों में? गुरुवार को टूजी मामले में फैसला देते हुए जज ओपी सैनी ने कहा कि हर कोई अफवाहों, गप्पों और कयासबाजी पर भरोसा कर रहा था. कुछ चतुर लोगों ने अपनी सुविधानुसार चुनिंदा तथ्यों को बहुत कलाकारी से प्रस्तुत किया और फिर उसे ईरान से […]

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क्यों है अंतर सुप्रीम कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों में?

गुरुवार को टूजी मामले में फैसला देते हुए जज ओपी सैनी ने कहा कि हर कोई अफवाहों, गप्पों और कयासबाजी पर भरोसा कर रहा था. कुछ चतुर लोगों ने अपनी सुविधानुसार चुनिंदा तथ्यों को बहुत कलाकारी से प्रस्तुत किया और फिर उसे ईरान से तूरान तक खींचा. अब सबके दिमाग में सवाल यह है कि फिर सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में122 लाइसेंस क्यों निरस्त किये थे? वित्तमंत्री अरुण जेटली सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का बहुत मजबूती से हवाला दे रहे हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल विशेष अदालत के फैसले को अपनी जीरो लॉस थ्योरी पर मुहर मान रहे हैं.

आइये देखें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में लाइसेंस क्यों निरस्त किये थे. टूजी प्रकरण उठने के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट में कई एक्टिविस्टों ने जनहित याचिकाएं दायर कीं. इन याचिकाओं में पूछा गया था कि सरकार को प्राकृतिक संसाधनों को भेदभावपूर्ण व गैरपारदर्शी तरीके से बांटने का अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई में टूजी स्पेक्ट्रम बांटने की प्रक्रिया की जांच की. इसके अलावा उसने एक और स्पेसिफिक सवाल की बारीक जांच कोर्ट ने की. यह सवाल था कि क्या तत्कालीन आईटी मंत्री ए राजा ने कुछ आवेदनकर्ताओं का फेवर किया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि कोर्ट के सामने जो दस्तावेज प्रस्तुत किये गये, उनसे प्रतीत होता है किसंचार मंत्री ए राजा कुछ कंपनियों को फायदा पहुंचाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने महत्वपूर्ण राष्ट्रीय संसाधन को कौड़ियों के भाव उनको एक तरह से उपहारस्वरूप दे दिया. यह बात इससे भी स्पष्ट होती है कि लाइसेंस पाने के तुरंत बाद इक्विटी ट्रांसफर व नये फंड उगाहने के नाम पर कुछ कंपनियों की हिस्सेदारी बेचीगयी. इससे बड़ा मुनाफा कमाया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहले आओ-पहले पाओ की नीति संदेहपूर्ण है और नीलामी की प्रक्रिया ही आवंटन का तर्कसंगत तरीका है. कोर्ट ने कहा था – हमें कोई संदेह नहीं है कि यदि लाइसेंस आवंटन के लिए नीलामी का तरीका अपनाया गया होता तो राजकोष में कई हजार करोड़ की रकम आती. सुप्रीम कोर्ट ने उन कंपनियों पर जुर्माना किया और लाइसेंस रद कर दिये जिन्होंने आवंटन के तुरंत बाद स्टेक्स बेचे और करोड़ों का मुनाफा कमाया. कोर्ट ने सरकार की पहले आओ-पहले पाओ नीति और कट-अॉफ तिथि तय किये की कड़ी आलोचना की. एक मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा – This arbitrary action of the Minister of C&IT though appears to be innocuous, actually benefitted some of the real estate companies who did not have any experience in dealing with telecom services and who had made applications only on 24.9.2007, i.e., one day before the cut off date fixed by the Minister of C&IT on his own.

ठीक उलट विशेष अदालत

गुरुवार को आया विशेष अदालत का फैसले की लाइन अलग दिखाई दे रही है. उसने कहा – There is no evidence on the record produced before the court indicating any criminality in the acts allegedly committed by the accused persons relating to fixation of cutoff date, manipulation of first-come-first-served policy, allocation of spectrum to dual technology applicants, ignoring ineligibility of STPL (Swan Telecom Pvt. Ltd.) and Unitech group companies, non­revision of entry fee and transfer of Rs 200 crore to Kalaignar TV (P) Limited as illegal gratification.”

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता का कहना है कि दोनों फैसले अपनी जगह सही हैं. इन दोनों के बीच कोई विरोधाभास नहीं हैं. उनका कहना है कि सिविल और आपराधिक मामलों के पैरामीटर अलग-अलग होते हैं.2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने सामने प्रस्तुत किये गये मैटीरियल के आधार पर फैसला दिया जबकि ट्रायल कोर्ट व्यापक रूप से साक्ष्यों को देख रहा था.

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