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निजता आपका अधिकार है, मोदी सरकार पर भड़कीं सोनिया, जानें फैसले से जुड़ी हर बात

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नयी दिल्ली : निजता का अधिकार पिछले कुछ महीनों से एक व्यापक विमर्श का विषय था और अब भी है. आज सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों वाली बड़ी संविधान पीठ ने सुनवाई करते हुएकहाकि निजता नागिरक का मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद राजनीतिक दलों में क्रेडिट लेने और दूसरे […]

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नयी दिल्ली : निजता का अधिकार पिछले कुछ महीनों से एक व्यापक विमर्श का विषय था और अब भी है. आज सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों वाली बड़ी संविधान पीठ ने सुनवाई करते हुएकहाकि निजता नागिरक का मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद राजनीतिक दलों में क्रेडिट लेने और दूसरे को कोसने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी है. सरकार की ओर से केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार ने आधार विधेयक पेश करते हुए संसद में जो कुछ कहा था, उच्चतम न्यायालय ने उसकी पुष्टि की है. उन्होंने कहा कि निजता तर्कसंगठ पाबंदियों के साथ मौलिक अधिकार होना चाहिए. वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस फैसले के बाद मोदी सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा निजता के अधिकार पर उच्चतम उच्चतम न्यायालय का निर्णय आम आदमी के जीवन में सरकार और उसकी एजेंसियों द्वारा ‘ ‘निरंकुश हस्तक्षेप एवं निगरानी ‘ ‘ पर प्रहार है. सोनिया ने कहा कि कांग्रेस एवं विपक्षी दलों ने निजता के अधिकार को समाप्त करने के भाजपा सरकार के ‘ ‘अहंकारी ‘ ‘ प्रयासों के खिलाफ मिलकर बोला है. वहीं, माकपा ने एक प्रेस बयान जारी कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि कारपोरेट्स के प्रभुत्व वाली दुनिया में निजी डेटाकेदुरुपयोगसे बचाएगा.माकपा ने एक वक्तव्य में कहा, पोलित ब्यूरो उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता है. यह ऐतिहासिक फैसलाकाॅरपोरेट के प्रभुत्व वाली और आधुनिक तकनीकों वाली दुनिया में निजी डेटा के दुरुपयोग और लोगों की निजता के उल्लंघन से बचाने की राह प्रशस्त करेगा.

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संक्षेप में जानिए क्या हैकोर्ट का फैसला?

उच्चतम न्यायालय ने देश के प्रत्येक नागरिक को प्रभावित करने वाले अपने आज के ऐतिहासिक फैसले में निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया. प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसले में कहा कि ‘ ‘निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पूरे भाग तीन का स्वाभाविक अंग है. ‘ ‘ पीठ के सभी नौ सदस्यों ने एक स्वर में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया.

किस संदर्भ में आया फैसला?

इस बेहद संवेदनशील मुद्दे पर आया यह फैसला विभिन्न जन-कल्याण कार्यक्रमों का लाभ उठाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा आधार कार्ड को अनिवार्य करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं से जुड़ा हुआ है. कुछ याचिकाओं में कहा गया था कि आधार को अनिवार्य बनाना उनकी निजता के अधिकार का हनन है.

कौन-कौन थे संविधान पीठ में?

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति एएम सप्रे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं और उन्होंने भी समान विचार व्यक्त किए.

तीन सप्ताह में छह दिन हुई सुनवाई

इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस सवाल पर तीन सप्ताह के दौरान करीब छह दिन तक सुनवायी की थी कि क्या निजता के अधिकार को संविधान में प्रदत्त एक मौलिक अधिकार माना जा सकता है. यह सुनवायी दो अगस्त को पूरी हुई थी. सुनवायी के दौरान निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार में शामिल करने के पक्ष और विरोध में दलीलें दी गयीं.


दिग्गज वकीलों ने रखा अपना पक्ष

इस मुद्दे पर सुनवायी के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल, अतिरक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दातार, कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमणियम , श्याम दीवान, आनंद ग्रोवर, सीए सुन्दरम और राकेश द्विवेदी ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने या नही किये जाने के बारे में दलीलें दीं और अनेक न्यायिक व्यवस्थाओं का हवाला दिया था.


अदालत में कैसे उठा मामला?

निजता के अधिकार का मुद्दा केंद्र सरकार की तमाम समाज कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने केलिए आधार को अनिवार्य करने संबंधी केंद्र सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवायी के दौरान उठा था. शुरू में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने सात जुलाई को कहा था कि आधार से जुड़े सारे मुद्दों पर वृहद पीठ को ही निर्णय करना चाहिए और प्रधान न्यायाधीश इस संबंध में संविधान पीठ गठित करने के लिये कदम उठायेंगे.

सुनवाई करने वाली पीठ क्यों बड़ी हो गयी?

इसके बाद, प्रधान न्यायाधीश के समक्ष इसका उल्लेख किया गया तो उन्होंने इस मामले में सुनवायी केलिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ गठित की थी. हालांकि, पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 जुलाई को कहा कि इस मुद्दे पर फैसला करने केलिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ विचार करेगी. संविधान पीठ के समक्ष विचारणीय सवाल था कि क्या निजता के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया जा सकता है.

न्यायालय ने शीर्ष अदालत की छह और आठ सदस्यीय पीठ द्वारा क्रमश: खड़क सिंह और एमपी शर्मा प्रकरण में दी गयी व्यवस्थाओं के सही होने की विवेचना केलिए नौ सदस्यीय संविधान पीठ गठित करने का निर्णय किया था. इन फैसलों में कहा गया था कि यह मौलिक अधिकार नहीं है. खड़क सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एमपी शर्मा प्रकरण में 1950 में फैसला सुनाया था.

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने दो अगस्त को फैसला सुरक्षित रखतेहुए सार्वजनिक दायरे में आयी निजी सूचना के संभावित दुरुपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा ‘एक हारी हुयी लड़ाई ‘ है.

अदालत ने कहा था : निजता का अधिकार मुकम्मल नहीं हो सकता

इससे पहले, 19 जुलाई को सुनवायी के दौरान पीठ ने टिप्पणी की थी कि निजता का अधिकार मुक्म्मल नहीं हो सकता और सरकार के पास इस पर उचित प्रतिबंध लगाने के कुछ अधिकार हो सकते हैं. अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों के दायरे में नहीं आ सकता क्योंकि वृहद पीठ के फैसले हैं कि यह सिर्फ न्यायिक व्यवस्थाओं के माध्यम से विकसित एक सामान्य कानूनी अधिकार है.

केंद्र ने कहा था : निजता अनिश्चित व अविकसित अधिकार

केंद्र ने भी निजता को एक अनिश्चित और अविकसित अधिकार बताया था, गरीब लोगों को जिसे जीवन, भोजन और आवास के उनके अधिकार से वंचित करने के लिए प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है. इस दौरान न्यायालय ने भी सभी सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों से निजी सूचनाओं को साझा करने के डिजिटल युग के दौर में निजता के अधिकार से जुड़े अनेक सवाल पूछे.

इस बीच, याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि निजता का अधिकार सबसे अधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार जीने की स्वतंत्रता में ही समाहित है. उनका यह भी कहना था कि स्वतंत्रता के अधिकार में ही निजता का अधिकार शामिल है.

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