रिषिकेश : बीना देवी और राजेश्वरी बरसों से खेती और दिहाडी मजदूरी करके पेट पालती आयी हैं लेकिन अब ये उन 25 चुनिंदा महिलाओं में से है जिन्होंने सामाजिक वर्जनाओं को तोड़कर शौचालय बनाने का प्रशिक्षण लिया और अब आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए मिसाल बन गयी हैं.
उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के लाल ढांग मीठीबेरी ग्राम पंचायत और आसपास के आठ गांवों की करीब 25 महिलाओं का चयन पेयजल और स्वच्छता के लिए काम कर रहे ग्लोबल इंटरफेथ वाश अलायंस ( जीवा ) ने महिलाओं को स्वच्छता की मुहिम से जोड़ने की दिशा में किया है. पहले इन्हें बायो टायलेट बनाने का प्रशिक्षण दिया गया और अब इसे आजीविका के रूप में अपनाकर ये अपने परिवार का जीवन स्तर बेहतर करने की कोशिश में जुटी हैं. लाल ढांग की रहने वाली एक्रीडेटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट ( आशा ) बीना देवी ने बताया , हमने दूर दराज गांवों में शौचालय नहीं होने से आने वाली परेशानियां देखी है लिहाजा जब हमें इस प्रोजेक्ट के लिए चुना गया तो हमने तुरंत हां कर दी.
काफी विरोध भी झेलना पड़ा लेकिन हमें खुशी है कि हमने न सिर्फ कमाई का जरिया तलाशा बल्कि एक अच्छे काम के लिये लोगों को प्रेरित भी कर रहे हैं. वहीं मंगोलपुरा की राजेश्वरी देवी ने कहा , गांव की महिलाओं के लिए इस तरह बाहर निकलकर आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं है. हमें तरह तरह की बातें भी सुननी पड़ी लेकिन सभी को अनदेखा करके हमने सीखने पर जोर दिया. हमें खुशी है कि अब हम अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं. ये महिलायें अभी तक खेती में बुवाई कटाई के वक्त मिलने वाली मजदूरी पर निर्भर रहती आई हैं लेकिन अब जीवा के जरिये इन्हें बायो टायलेट बनाने के पैसे भी अच्छे मिल रहे हैं. रिषिकेश के वीरपुर में हाल ही में इन्होंने चार बायो टायलेट बनाये जिसके बाद यह गांव खुले में शौच मुक्त हो गया है और पिछले सप्ताह ही केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री नरेंद्र तोमर ने इसे गंगा ग्राम का दर्जा दिया.
इन महिलाओं को जनवरी में रिषिकेश स्थित विश्व टायलेट कालेज में लखनऊ से आये विशेषज्ञों ने प्रशिक्षण देना शुरू किया और इस महीने की शुरुआत में पहली बार इन्होंने वीरपुर में ट्विन पिट पोर फ्लश टायलेट माडल बनाये. जीवा के सह संस्थापक और सह अध्यक्ष चिदानंद सरस्वती सैमुअल ने बताया कि अब अगले कदम के तहत इन महिलाओं को बायो डाइजेस्टर बनाना सिखाया जायेगा और इनके गांवों के स्कूल में ही इसका पहला प्रयोग किया जायेगा. उन्होंने कहा , डेढ़ दो हजार घरों में सर्वे करने के बाद इन महिलाओं का चयन किया जिनमें ज्यादातर मजदूर हैं और इनकी कोई निश्चित आय नहीं है.
इन्होंने टायलेट बिल्डिंग कोर्स किया और अब गांव- गांव में टायलेट बना सकती हैं.. अगला कदम इन्हें बायो डाइजेस्टर श्रेणी के टायलेट बनाने का प्रशिक्षण देना होगा. इसके बाद इनके ब्रोशर्स तैयार करके इन्हें नियमित रोजगार दिलाया जायेगा. उन्होंने कहा कि उनकी अन्य राज्यों की सरकारों से भी बात हुई है और अब यह प्रोजेक्ट जल्दी ही वहां शुरु होगा. उन्होंने कहा , शुरुआत उत्तराखंड से हुई है और अब बिहार तथा उत्तर प्रदेश सरकारों से भी बात चल रही है. यह कार्यक्रम जल्दी ही वहां शुरु किया जायेगा ताकि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ स्वच्छता को लेकर जागरुकता भी पैदा की जा सके. जमीनी स्तर से शुरुआत करके ही किसी मुहिम को कामयाब बनाया जा सकता है और उसी दिशा में यह जीवा का प्रयास है.