नयी दिल्ली : इसरो के नये संचार उपग्रह जीसैट-19 और जीसैट-11 भारत के संचार क्षेत्र की दशा और दिशा बदल सकते हैं. इनसे ऐसी इंटरनेट सेवाएं मिलेंगी, जैसे कि पहले कभी नहीं मिलीं. नयी पीढ़ी का सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क – तीन जी सैट 19 को धरती की कक्षा में स्थापित करेगा. उल्टी गिनती शुरू हो गयी है और सोमवार की शाम 5:28 बजे श्रीहरिकोटा से इसका प्रक्षेपण होगा.
पहले भेजे गये उपग्रहों का प्रभावी डाटा जहां प्रति सेकेंड एक गीगाबाइट है, वहीं जी सैट- 19 से प्रति सेकेंड चार गीगाबाइट डाटा मिलेगा. इसरो चेयरमैन ए एस किरण कुमार ने कहा कि सभी नये यान और सभी नये उपग्रहों के साथ यह एक बड़ा प्रयोग है.
* जी सैट 19 : तीन टन से ज्यादा वजन. अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद में निर्मित. भारत में बना और प्रक्षेपित होने वाला सबसे विशाल व भारी उपग्रह. स्वदेश निर्मित लीथियम आयन बैटरियों से संचालित होगा. जियोस्टेशनरी रेडिएशन स्पेक्टोमीटर अंतरिक्ष उपकरण ले जायेगा, जिससे आवेशित कणों की प्रकृति तथा उपग्रहों और उनके इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर अंतरिक्ष विकिरणों के प्रभाव की निगरानी तथा अध्ययन होगा. नये तरीके के मल्टीपल फ्रीक्वेंसी बीम के इस्तेमाल से इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जायेगी.
* जीएसएलवी एमके-तीन से प्रक्षेपण
पूरी तरह से भरे बोइंग जंबो विमान या 200 हाथियों के बराबर इसका वजन. यह भविष्य के भारत का रॉकेट है, जो ‘गैगानॉट्स या व्योमैनॉट्स’ संभावित नाम के भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जायेगा. इसरो के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन के मुताबिक यह प्रक्षेपण ‘बड़ा मील का पत्थर’ है, क्योंकि इसरो प्रक्षेपण उपग्रह की क्षमता 2.2-2.3 टन से करीब दोगुना करके 3.5- 4 टन कर रहा है.
* जीएसएलवी मार्क 3 से जुड़ी खास बातें
- 640 टन का पूर्णतः स्वदेशी राॅकेट भारत का सबसे वजनी रॉकेट है
- इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे
- रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है
- 04 टन तक के उपग्रह लॉन्च करने में सक्षम
- अपनी पहली उड़ान में 3,136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचायेगा
- इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है
* ऐसे काम करता है जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट
- पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं
- दूसरे चरण में विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है
- ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं
- अब बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती है
- अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है
- फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है
- अब क्रायोजेनिक इंजन अलग हो जाता है
- संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है
* अगला कदम : जीसैट-11
वजन 5.8 टन. आगामी कुछ महीनों में प्रक्षेपण किया जायेगा. ताकतवर संचार प्लेटफॉर्म. चूंकि भारत के पास इतना विशाल उपग्रह अंतरिक्ष की कक्षा में भेजने के लिए साधन नहीं है तो इसे दक्षिण अमेरिका में कोरोउ से एरियन-5 रॉकेट के इस्तेमाल से भेजा जायेगा. इससे उपग्रह आधारित इंटरनेट स्टरीमिंग पूरी तरह से साकार हो जायेगी.