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बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर: एक सौ बाइस वर्षों से होती है शक्ति की आराधना

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शारदीय नवरात्र को लेकर तैयारियां शुरू

थिरानी परिवार ने कराया था इस मंदिर का निर्माण

मिट्टी की हांडी में है प्रसाद चढ़ाने का रिवाज

आस्था का है बड़ा केंद्र

रामबाबू,किशनगंज.शहर

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शारदीय नवरात्र को लेकर तैयारियां शुरू

थिरानी परिवार ने कराया था इस मंदिर का निर्माण

मिट्टी की हांडी में है प्रसाद चढ़ाने का रिवाज

आस्था का है बड़ा केंद्र

रामबाबू,किशनगंज.शहर के बीचों-बीच गुदरी बाजार में 122 वर्ष पूर्व स्थापित दुर्गा मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है,नवरात्रा में पूरे विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है.आज भी यहां अष्टमी और महानवमी को श्रद्धालुओं के द्वारा हांडी के बरतन में प्रसाद चढ़ाने का रिवाज कायम है.साथ ही इस दिन बड़ी संख्या में महिलाएं मां दुर्गा की प्रतिमा के समक्ष डाली भरती हैं. बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर जिले के सर्वाधिक प्राचीनतम मंदिरों में से एक है.1903 में स्थापित मां दुर्गा की इस मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है.यहां जिले ही नहीं बल्कि पड़ोस के बंगाल से भी श्रद्धालु मां की पूजा अर्चना करते आते हैं. कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे व शुद्ध मन से मां दुर्गे से जो भी मन्नत मांगते हैं मां उनकी मुरादें पूरी करती हैं.

पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है यह प्राचीन मंदिर

मां दुर्गे की इस प्राचीनतम मंदिर की इतिहास भी काफी समृद्ध है.जानकर बताते हैं कि धार्मिक प्रवृत्ति के स्व जगन्नाथ थिरानी ने वर्ष 1903 में गुदरी बाजार स्थित बड़ी कोठी में मां दुर्गा की भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर की स्थापना के लिए थिरानी परिवार ने स्वयं जमीन देने के साथ मंदिर निर्माण के खर्च भी वहन किए थे. थिरानी परिवार वर्तमान में कोलकाता में रहते हैं.लेकिन आज भी थिरानी परिवार के लोग नवरात्रा में होने वाले सभी प्रकार के खर्च का वहन स्वयं करते हैं. तब से लेकर अब तक इस मंदिर में विधि-विधान पूर्वक मां दुर्गा की पूजा अर्चना हो रही है.

परंपरा आज भी कायम

इस मंदिर में नवरात्र के पहले दिन यानी कलश स्थापन को ही मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है. मंदिर परिसर में मां दुर्गा की पूजा अर्चना के दौरान मिट्टी के हांडी में प्रसाद चढ़ाने की परंपरा कायम है.

पूरा खर्च थिरानी परिवार ही करता है

बड़ी कोठी दुर्गा मंदिर में होने वाली पूजा अर्चना के लिए चंदा की वसूली नहीं की जाती है.वर्ष 1903 से लेकर अब तक इस मंदिर में रखरखाव और पूजा अर्चना के लिए जितनी राशि खर्च होती है.उस राशि का वहन थिरानी परिवार के सदस्य ही करते आ रहे हैं.नवरात्रा में मंदिर परिसर में भव्य मेला का आयोजन होता है.जहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.ऐसी मान्यता है की इस मंदिर में नियम-निष्ठा और सच्चे मन से पूजा अर्चना करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. दसवीं पूजा के दिन महाप्रसाद के रूप में खिचड़ी का वितरण किया जाता है. वहीं नवरात्र के उपरांत मूर्ति विसर्जन के दिन सबसे पहले मूर्ति यहीं से निकलती है यानी माता जब तक अपना स्थान नहीं छोड़ती है,तब तक शहर के अन्य मंदिरों से दुर्गा माता की मूर्ति नहीं निकलती है.नवरात्रि में नौ दिनों तक और विजय दशमी को माता का दरबार भक्तो से भरा रहता है.वहीं पश्चिम बंगाल से सटे होने के कारण किशनगंज का दुर्गा पूजा काफी प्रसिद्ध है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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