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सावधान! बदलता मौसम और बढ़ता प्रदूषण ले सकता है आपकी जान

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हमारी शारीरिक प्रणाली जब कुछ खास पदार्थों को सहन नहीं कर पाती तो एलर्जी के तौर पर उनके प्रति अपना विरोध प्रकट करती है. ऐसी ही एक एलर्जी है अस्थमा.बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल्ली में अस्थमा के मरीज बढ़ते जा रहे हैं. अस्थमा दो तरह से मरीज को अपनी चपेट में लेता […]

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हमारी शारीरिक प्रणाली जब कुछ खास पदार्थों को सहन नहीं कर पाती तो एलर्जी के तौर पर उनके प्रति अपना विरोध प्रकट करती है. ऐसी ही एक एलर्जी है अस्थमा.बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण के कारण दिल्ली में अस्थमा के मरीज बढ़ते जा रहे हैं.

अस्थमा दो तरह से मरीज को अपनी चपेट में लेता है. पहला खांसी का दौरा पड़ने पर, जो अचानक शुरू हो जाता है और दूसरा श्वास प्रणाली में संक्रमण हो जाने पर, जो धीरे-धीरे मरीज को अपनी चपेट में ले लेता है.

अस्थमा का दौरा तेज होते ही मरीज के दिल की धड़कन और सांस लेने की उसकी रफ्तार बढ़ जाती है. ऐसे में वह खुद को बेचैन व थका हुआ महसूस करने लगता है. ऐसे समय में उसे खांसी आ सकती है, सीने में जकड़न महसूस हो सकती है, बहुत अधिक पसीना आ सकता है और उल्टी भी हो सकती है. अस्थमा के रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए, ज्यादा तकलीफ महसूस होती है.

दरअसल, अस्थमा होने पर मरीज की गले और नाक की भीतरी दीवार में सूजन होने पर नलिकाएं बेहद संवेदनशील हो जाती हैं और किसी भी स्पर्श से तीखी प्रतिक्रिया देने लगती हैं. इससे नलिकाओं में संकुचन होने लगता है, जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा तुलनात्मक रूप से कम पहुंचने लगती है.

अस्थमा की चपेट में आने के बाद मरीज को खांसी,नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह के समय सांस लेने में तकलीफ होती है. कई बार अस्थमा का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती. ऐसी हालत में मरीज की मौत भी हो सकती है.

अस्थमा के कारण

आंकड़े बताते हैं कि परिवार में यदि माता-पिता दोनों को अस्थमा हो तो 75 से 100% तक बच्चों में भी एलर्जी और अस्थमा होने के चांस बने रहते हैं.

श्वास नलिकाओं के संवेदनशील होने के कारण विशेषकर अस्थमा की समस्या देखने को मिलती है.

प्रदूषण भी इसका एक मुख्य कारण है. अनेक लोगों में यह एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थों, दवाओं, परफ्यूम जैसी खुशबू और कुछ अन्य प्रकार के पदार्थों से भी हो सकती है.

बदलते लाइफस्टाइल और दैनिक जीवन में बढ़ते तनाव या अवसाद भी अस्थमा का एक बड़ा कारण बन चुका है. लगातार कुछ समय तक तनाव में रहने से शरीर उसके प्रति भी प्रतिक्रिया देने लगता है, जो एलर्जी का रूप ले लेता है और अस्थमा का कारण बन जाता है.

कुछ लोग रुई के बारीक रेशों, कागज की धूल, कुछ फूलों के पराग, पशुओं के बाल, फफूंद और कॉक्रोच जैसे कीड़े के प्रति एलर्जिक होते हैं.

जिन खाद्य पदार्थों से आमतौर पर एलर्जी होती है, उनमें गेहूं, आटा, दूध, चॉकलेट, आलू और कुछ मांस शामिल हैं.

कई बार अस्थमा एलर्जी और गैर-एलर्जी वाली स्थितियों के मेल से भड़कता है, जिनमें भावनात्मक दबाव, वायु प्रदूषण, संक्रमण और आनुवंशिक कारण भी शामिल हैं.

सिगरेट का धुआं, ठंडी हवा या मौसमी बदलाव, पेंट या रसोई की तीखी गंध, मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना), तनाव, एस्पिरीन और अन्य दवाएं, विशेष रसायन या धूल जैसे अवयव, पारिवारिक इतिहास, भी अस्थमा का कारण बनते हैं.

स्मोकिंग और तंबाकू के धुएं से भरे माहौल में रहने वाले शिशुओं को अस्थमा होने का खतरा होता है. यदि गर्भावस्था के दौरान महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है तो उसके बच्चे को अस्थमा का खतरा रहता है.

कहीं ये आपको भी तो नहीं…..!

हर बार मौसम बदलने पर यदि आप नजला, जुकाम, छींक की परेशानियों से घिर जाते हैं तो सावधान हो जाएं, क्योंकि 80% तक आशंका है कि आप भी अस्थमा के शिकार हो रहे हैं. इसी तरह से यदि लगातार 10 वर्षो तक यह समस्या बनी रहे तो आप यह जान लें कि आप अस्थमा के मरीज है.

अस्थमा के लक्षण नजर आने पर इसे नजरअंदाज न करें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

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