16.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 12:43 am
16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

ब्रेन एवीएम से लड़ने की नयी तकनीक

Advertisement

ब्रेन एवीएम एक ऐसी समस्या है, जिससे दिमाग में नसों के गुच्छे बन जाते हैं. इसी का दुष्परिणाम ब्रेन हैमरेज के रूप में हमारे सामने आता है. अब एम्स, दिल्ली ने पांच वर्षों के गहन अध्ययन व कई प्रयोगों के बाद इसके उपचार के लिए पहले से कहीं ज्यादा उन्नत तकनीक विकसित कर ली है, […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

ब्रेन एवीएम एक ऐसी समस्या है, जिससे दिमाग में नसों के गुच्छे बन जाते हैं. इसी का दुष्परिणाम ब्रेन हैमरेज के रूप में हमारे सामने आता है. अब एम्स, दिल्ली ने पांच वर्षों के गहन अध्ययन व कई प्रयोगों के बाद इसके उपचार के लिए पहले से कहीं ज्यादा उन्नत तकनीक विकसित कर ली है, जिसे ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर कहते हैं. इस तकनीक को विकसित करनेवाली टीम के मुख्य न्यूरोसर्जनडॉ दीपक अग्रवाल दे रहें हैं विशेष जानकारी.
ब्रेन एवीएम यानी ब्रेन आर्टरियोवेनस मेलफॉर्मेशन रोग मस्तिष्क में आर्टरी और वेन्स के बीच नसों का गुच्छा बन जाना है. इससे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर नकारात्मक असर पड़ता है.
आर्टरी आॅक्सीजन युक्त खून की सप्लाइ करती है, जबकि वेन्स दूषित खून या डीआॅक्सीजेनेटेड ब्लड को वापस हार्ट तक लाने का कार्य करती हैं. आर्टरी और वेन्स नसों के बीच में गुच्छे बन जाने से मस्तिष्क में खून की सप्लाइ बाधित होती है. हालांकि, यह समस्या शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है, पर आमतौर पर यह ब्रेन और स्पाइन के क्षेत्र में पनपती है.
ब्रेन एवीएम के कारण व लक्षण
हालांकि, चिकित्सा विज्ञान अभी तक ब्रेन एवीएम के ठोस कारणों का पता नहीं लगा पाया है, लेकिन विभिन्न केसों के अध्ययन के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि यह अनियमित दिनचर्या, गलत खान-पान और कई बार आनुवंशिक कारणों से भी हो सकता है.
कई बार इस रोग के लक्षण लंबे समय तक नजर नहीं आते हैं. लक्षण तब नजर आते हैं, जब मस्तिष्क में ब्लीडिंग शुरू हो जाती है, अर्थात् ब्रेन हैमरेज के बाद ही पता चलता है. रोग की पुष्टि सीटी स्कैन से होती है. ब्रेन एवीएम किसी भी उम्र में और किसी को भी हो सकता है. शुरुआत में निम्न लक्षण नजर आ सकते हैं :
-अकसर सिरदर्द रहना -दिमाग के एक हिस्से का सुन्न हो जाना -आकस्मिक याददाश्त कमजोर हो जाना -मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होना -सोचने-समझने में परेशानी होना -कई बार चाहते हुए भी न बोल पाना आदि. -मरीज में मिरगी के लक्षण भी दिख सकते हैं.
बचाती है ब्रेन हैमरेज से
ब्रेन एवीएम एक ऐसी समस्या है, जिसमें दिमाग में नसों के गुच्छे बन जाते हैं. इस रोग के उपचार के लिए अभी गामा नाइफ सर्जरी का प्रयोग किया जाता है. इससे कई बार ब्रेन एडेमा और ब्रेन हैमरेज का भी खतरा होता है. एम्स की नयी तकनीक इसके मुकाबले कहीं ज्यादा कारगर है. नयी सर्जरी में ब्रेन हैमरेज का खतरा एक फीसदी से भी कम रह जाता है. जानिए क्या है यह तकनीक.
एम्स की नयी तकनीक
एम्स, दिल्ली में गामा नाइफ प्रक्रिया में सुधार कर के अन्य तकनीक ईजाद की गयी है, जिसमें गामा नाइफ सर्जरी के बाद उसके साइड इफेक्ट से होनेवाली समस्याएं बिल्कुल भी नहीं रहती हैं. एम्स ने इस तकनीक को ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर नाम दिया है. इस तकनीक से इलाज के बाद साइड इफेक्ट के रूप में ब्रेन एडेमा होने की आशंका एक प्रतिशत रह जाती है.
इस प्रक्रिया में ब्रेन की ड्रेनिंग वेन यानी मस्तिष्क से हार्ट तक वापस दूषित खून ले जानेवाली नसों को बचा लिया जाता है, जिससे खून का बहाव लगातार बना रहता है और दूषित खून मस्तिष्क से बाहर आते रहते हैं. ऐसा करने से गामा नाइफ सर्जरी सीधे तौर पर नसों के गुच्छों को सुखाती है. ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर में नसों के गुच्छे के पांच प्रतिशत हिस्से को छोड़ दिया जाता है, जिन्हें बाद में रेडियोथेरेपी से सुखा दिया जाता है. इस तकनीक से ट्रीटमेंट होने के बाद ब्रेन हैमरेज होने का खतरा न के बराबर होता है.
ब्रेन हैमरेज के कई अन्य कारण
ब्रेन हैमरेज भी एक प्रकार का स्ट्रोक है. आर्टरी में ब्लॉकेज के कारण रक्त के बहाव में अवरोध उत्पन्न होने से यह समस्या होती है. इसके कारण आर्टरी फट जाती है और ब्रेन में रक्त का बहाव शुरू हो जाता है. ब्रेन हैमरेज से होनेवाले ब्लीडिंग के कारण ब्रेन के सेल्स भी डेड होने लगते हैं. आमतौर पर 13% स्ट्रोक के मामलों में ब्रेन हैमरेज का खतरा होता है. इस समस्या के बाद मरीज पर पड़नेवाला प्रभाव हैमरेज की अवस्था पर निर्भर करता है. कभी-कभी रोगी की म‍‍ृत्यु हो जाती है, तो कभी मरीज पूरी तरह स्वस्थ भी हो सकता है.
यह समस्या कई अन्य रोगों के कारण भी हो सकती है
हेड इंज्यूरी : 50 वर्ष से अधिक उम्र में सिर में चोट लगने के कारण भी ब्रेन हैमरेज हो सकता है. सिर में चोट लगना इस समस्या का मुख्य कारण है.
हाइ ब्लड प्रेशर : इस रोग के कारण पूरे शरीर की नसें प्रभावित होती हैं. लंबे समय तक यह समस्या रहने पर नसों की दीवार कमजोर हो जाती है. इस अवस्था में कभी-कभी बीपी बढ़ने पर ब्रेन हैमरेज हो जाता है. यह भी ब्रेन हैमरेज के होने का एक बड़ा कारण है.
एन्यूरिज्म : इस रोग से ग्रसित रोगियों में देखा जाता है कि व्यक्ति के मस्तिष्क के खून की नली में गुब्बारे जैसी संरचना बन जाती है, जो कुछ समय बाद फट जाती है. यदि इस नली को समय रहते सर्जरी द्वारा क्लैम्प लगा कर बंद कर दिया जाये, तब तो हालात काबू में आ जाते हैं, लेकिन कई बार व्यक्ति को इसका पता ही नहीं चलता है, जिस कारण ब्रेन हैमरेज हो जाता है.
ब्लड रिलेटेड डिजीज : हीमोफीलिया और सिकल सेल एनिमिया में भी ब्रेन हैमरेज का खतरा होता है.
ब्रेन ट्यूमर : यह भी इस समस्या का एक कारण हो सकता है. यह दो प्रकार का होता है कैंसरस और नॉन कैंसरस. दोनों प्रकार में ट्यूमर के बढ़ने के बाद ब्रेन हैमरेज का खतरा बढ़ जाता है.
प्रस्तुति : अजय कुमार
अभी होता है गामा नाइफ सर्जरी से इसका इलाज
अभी इस रोग का उपचार गामा नाइफ तकनीक से होता है. इसमें ब्रेन में मौजूद नसों के गुच्छे को बिजली के शॉक से या गामा किरणों से नष्ट किया जाता है. इस सर्जरी के कई साइड इफेक्ट भी देखे गये हैं. इस तकनीक से इलाज कराने पर मरीज में कुछ समस्याएं देखी जाती हैं, जैसे-प्रभावित नसों के साथ ही दिमाग की अन्य सही नसों का भी नष्ट हो जाना, मस्तिष्क में सूजन आ जाना, जिससे ब्रेन हैमरेज होने का खतरा बना रहता है. वहीं इस तकनीक में रिकवरी में भी समय अधिक लगता है.
गंभीर अवस्था में समस्याएं
– ब्रेन हैमरेज : लंबे समय तक रोग रहने पर नसों के गुच्छों में मौजूद नसें कमजोर होने लगती हैं. यदि समय पर इलाज न कराया जाये, तो इनके फटने का खतरा बन जाता है. नस फटने को ही ब्रेन हैमरेज कहते हैं और यह एवीएम के अधिकांश मामलों में होता है.
– दिमाग को नहीं मिलता आॅक्सीजन : मरीज के मस्तिष्क में आॅक्सीजन की सप्लाइ पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाती. आॅक्सीजन की कमी की वजह से मस्तिष्क अपना कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर पाता. आॅक्सीजन की कमी के कारण कई बार सेल्स भी डेड होने लगते हैं. इससे कई अन्य मस्तिष्क रोगों के होने की भी आशंका बढ़ जाती है.
– बाधित होता है विकास : यदि यह रोग बच्चे को हो जाये, तो समय के साथ बच्चे का शरीर बढ़ेगा, लेकिन दिमाग विकसित नहीं हो पायेगा. इस अवस्था मेें ब्रेन डैमेज होने का खतरा भी बढ़ जाता है. हालांकि समय पर ट्रीटमेंट कराने से इन समस्याओं से बचा जा सकता है.
इलाज का अन्य विकल्प ओपन सर्जरी
यदि एवीएम किसी ऐसे हिस्से में है, जहां तक आसानी से सर्जरी के उपकरण पहुंच सकते हैं, तब इसकी ओपन सर्जरी भी की जा सकती है. इसके लिए खोपड़ी में एवीएम तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाया जाता है. उसके बाद गुच्छों को सर्जरी कर निकाल दिया जाता है. इसे निकालते समय काफी ध्यान रखना पड़ता है कि अन्य टिश्यू को क्षति न पहुंचे.
पांच साल चली एम्स की स्टडी
इस तकनीक को विकसित करने के लिए पांच साल तक अध्ययन किया गया. 2009 से 2014 के बीच 185 मरीजों पर अध्ययन किया गया. इन मरीजों की गामा नाइफ थेरेपी चल रही थी. 185 मरीजों को दो ग्रुप में बांटा गया.
इनमें एक ग्रुप को ड्रेनिंग वेन शील्डिंग में शामिल किया गया और दूसरे ग्रुप में सीधे गामा नाइफ थेरेपी से ट्रीटमेंट शुरू किया गया. ड्रेनिंग वेन शील्डिंग एक प्रक्रिया है, जिसमें गामा किरणों को कंप्यूटर से कंट्रोल कर ब्रेन से खून ले जानेवाली नस को बचाया जाता है. दोनों ग्रुप का हर जरूरी टेस्ट, डेमोग्राफिक्स, ट्रीटमेंट, रेडिएशन डोज सही से किया गया था. ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर से जिस ग्रुप का ट्रीटमेंट किया गया, उनका हर छह माह में चिकित्सकों द्वारा फोलोअप किया गया. इस अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि इस नयी तकनीक से उपचार करने पर साइड इफेक्ट न के बराबर थे.
सभी एम्स में होगी यह तकनीक
इस तकनीक से होनेवाले सभी आॅपरेशन अब तक सफल हुए हैं. अब देश के अन्य एम्स अस्पतालों में भी इस तकनीक के अंतर्गत आॅपरेशन करने के लिए ओटी (आॅपरेशन थिएटर) बनाये जा रहे हैं. इस साल के अंत तक सभी एम्स में यह प्रक्रिया शुरू होने की संभावना है.
कुछ कमियां भी हैं
ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर से ट्रीटमेंट रोग के बढ़ जाने पर या बड़े गुच्छे में नहीं किया जा सकता, क्योंकि नसों के गुच्छे बड़े हो जाने के बाद वेन्स को बचाने की संभावना बहुत कम रह जाती है. इसलिए डॉक्टर पहले मरीज का डायग्नोज करके यह तय कर लेते हैं कि ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर से वेन्स को बचाया जा सकता है या नहीं. सीटी स्कैन आिद के मदद से यह आसानी से पता चल जाता है. अत: यदि बेहतर उपचार चािहए, तो सर्जरी जितनी जल्दी हो जाये, उतना बेहतर है, क्योंकि समय के साथ-साथ नसों का गुच्छा भी बढ़ जाता है.
नसों का गुच्छा बढ़ने से दिमाग के आस-पास के हिस्सों पर दबाव पड़ने लगता है, जिससे मरीज में मिरगी का दौरा भी पड़ सकता है. यह समस्या इस रोग के मरीजों में आमतौर पर देखी जाती है. ऐसे में ट्रीटमेंट में बहुत सारी समस्याएं आने लगती हैं, साथ ही ट्रीटमेंट के बाद साइड इफेक्ट होने की आशंका भी बढ़ जाती है. इसलिए ब्रेन एवीएम की पुष्टि होते ही तुरंत सर्जरी की तैयारी शुरू कर देना चाहिए.
बातचीत व आलेख : कुलदीप तोमर, िदल्ली
कितना आता है खर्च
ड्रेनिंग वेन शील्डिंग प्रोसीजर और गामा नाइफ दोनों प्रक्रिया से ट्रीटमेंट कराने के लिए एम्स में तकरीबन 75 हजार रुपये का खर्च आता है. एम्स में गरीब मरीजों के लिए यह इलाज पूरी तरह से नि:शुल्क है. वहीं ब्रेन एवीएम का ट्रीटमेंट नेब्यूलाइजेशन के जरिये

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें