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आयुर्वेद अपना कर दूर भगाएं अनिद्रा

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भागदौड़ और तनाव भरी दिनचर्या से नींद न आने की समस्या आम है, मगर इसे अनदेखा करना ठीक नहीं है. उम्र बढ़ने के बाद यह समस्या और बढ़ जाती है. कई बार नींद न आने की समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि यह हमारी मानसिक सेहत को प्रभावित कर देती है. आयुर्वेद के अनुसार […]

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भागदौड़ और तनाव भरी दिनचर्या से नींद न आने की समस्या आम है, मगर इसे अनदेखा करना ठीक नहीं है. उम्र बढ़ने के बाद यह समस्या और बढ़ जाती है. कई बार नींद न आने की समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि यह हमारी मानसिक सेहत को प्रभावित कर देती है.

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आयुर्वेद के अनुसार वात और पित्त बढ़ जाने से अनिद्रा होती है. वात-पित्त मानसिक तनाव के कारण बढ़ता है. तीन हफ्तों तक जारी रहनेवाली अनिद्रा को ट्रांजियेंट इनसोम्निया कहा जाता है. इसका मुख्य कारण मानसिक संघर्ष, अपरिचित या नया वातावरण, सदमा, प्रियजनों की मृत्यु, तलाक या नौकरी में बदलाव आदि हो सकते हैं. नींद न आने का प्रमुख कारण मानसिक तनाव है. शोर-शराबेवाली जीवन शैली, अनियमित दिनचर्या, शारीरिक व्यायाम व मेहनत की कमी, ज्यादा शराब सेवन करने से भी नींद नहीं आती है. एक रिसर्च के अनुसार इस तरह की समस्याओं का कारण हमारी बदलती जीवनशैली भी है. फिजिकल एक्टिविटी में कमी होना और बैठ कर काम अधिक करने से आजकल ऐसे मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है.

इन बातों का रखें ध्यान

दवा सही मात्रा में लेना जरूरी है. मानसिक उत्तेजना व उन्माद शांत करने के लिए यह जरूरी है. दवा की अधिक मात्रा लेना हानिकारक हो सकता है. अच्छी नींद के लिए सोने से पहले हाथ-पैर साफ करें और तलवों की मालिश करें. इससे रक्त प्रवाह सही रहता है और थकान दूर होती है. सुबह घूमने जाएं व योग करें. अनुलोम-विलोम एवं कपालभाती प्राणायाम करने से भी काफी लाभ होता है.

ध्यान देने योग्य बातें

सोने का समय तय करें, भले ही आपका रूटीन कितना भी व्यस्त क्यों न हो. इससे शरीर के सोने और उठने का चक्र संतुलित हो जाता है. शुरुआत में भले ही आपको दिक्कत होगी लेकिन नियमित निर्धारित समय पर सोने की कोशिश करेंगे, तो यह दिनचर्या में शामिल हो जायेगा और आपका शरीर उसके अनुसार ढल जायेगा. सोने का कमरा स्वच्छ रखें. इससे मन शांत रहेगा और नींद आसानी से आयेगी. बेडरूम में हल्का इंस्ट्रूमेंटल म्यूजिक चला सकते हैं, जिससे मानसिक शांति मिलेगी और नींद जल्दी आयेगी.

बातचीत : विनीता झा, दिल्ली

अनिद्रा के आयुर्वेदिक व घरेलू उपचार

अनिद्रा के उपचार के लिए आमतौर पर निम्न उपाय अपनाये जाते हैं- – शंखपुष्पी सिरप : दो चम्मच सुबह-शाम लें. ने

– अनिद्रा रोग में दूध का सेवन बहुत लाभकारी होता है. रात को सोने से पहले एक गिलास दूध में तीन ग्राम अश्वगंधा चूर्ण मिला कर नियमित पीएं.

– सर्पगंधा की जड़ भी इसके उपचार में बहुत ही उपयोगी मानी जाती है. इसे दो ग्राम मात्रा में सोने से घंटे भर पहले ठंडे पानी के साथ लेना चाहिए.

– हालांकि इन दवाओं को लेने से पहले चिकित्सक से सलाह जरूर लें एवं उनके निर्देशानुसार दवा लें.

– प्याज को भून कर व पीस कर रस निकाल लें. दो बड़े चम्मच रस नियमित पीएं, इससे नींद न आने की शिकायत दूर हो जाती है.

– सौंफ, मिश्री एवं दूध का ठंडा शरबत पीने से अथवा भैंस का दूध पीकर सोने से भी नींद अच्छी आती है.

– 200 एमएल दूध में एक से पांच ग्राम पीपरामूल मिला कर पीने से नींद आ जाती है.

ये फूड बढ़ा सकते हैं बीमारियां

सुबह नाश्ते में लोग आमतौर पर बिस्कुट या अन्य पैकेज्ड फूड खाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं. इनके कारण डायबिटीज रोगियों का ब्लड शूगर भी काफी बढ़ सकता है. इसमें मौजूद प्रीजर्वेटिव्स व अन्य केमिकल भी स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचाते हैं.

सुबह उठने के बाद अकसर लोग दूध या चाय के साथ बिस्कुट खाते हैं. लोग इसे हेल्दी समझते हैं. लेकिन उनमें कई प्रकार के केमिकल्स होते हैं और उनमें पोषक तत्व न के बराबर होते हैं. इसके अलावा रेडी-टू-इट फूड में भी कई प्रीजर्वेटिव्स होते हैं.

बिस्कुट : बिस्कुट में शूगर, रिफाइंड आॅयल, मैदा, नमक और दूध का प्रयोग होता है. मैदा के कारण ब्लड शूगर लेवल तेजी से बढ़ता है. इसके अलावा बिस्कुट और कुकी में प्रयोग किये जानेवाले वेजीटेबल आॅयल भी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं. कुकीज में इन्वर्ट सिरप का प्रयोग होता है, जो ग्लूकोज और फ्रक्टोज का मिश्रण होता है. डायबिटीज के रोगियों को इससे दूर ही रहना चाहिए.

पैक फलों और ड्राइ फ्रूट्स का मिश्रण (म्यूजली) : इसके लेबल पर यह लिखा होता है कि इसमें अलग से शूगर नहीं मिला होता है, लेकिन इसमें पहले से ही काफी शूगर होता है. यदि आपका ब्लड शूगर लेवल घटता या बढ़ता है, तो इसके लिए आप इस मिश्रण को भी जिम्मेदार मान सकते हैं.

रेडी टू इट फूड : अधिकतर रेडी-टू-इट फूड में ऐसी सब्जियों का प्रयोग होता है, जिनमें से पानी को पूरी तरह से हटा दिया जाता है. इसी कारण इनमें पोषक तत्व न के बराबर होते हैं. दोबारा गरम करने पर बचे-खुचे मैक्रोन्यूट्रिएंट भी नष्ट हो जाते हैं. इनमें कई प्रकार के प्रीजर्वेटिव्स भी होते हैं. इनके बिना ऐसे फूड को 12 महीने तक सुरक्षित रख पाना संभव नहीं है. यदि आप नियमित रूप से ऐसे फूड खाते हैं, तो ये लिवर और किडनी को भी डैमेज कर सकते हैं.

पैकेज्ड सूप : इसमें भारी मात्रा में कलरिंग एजेंट का प्रयोग होता है, जो जहरीले होते हैं और शरीर इन्हें पचा नहीं पाता है. ये लिवर और किडनी को प्रभावित करते हैं. इन तत्वों को बाहर निकालने के िलए लिवर को अधिक काम करना पड़ता है. इसमें मौजूद हाइड्रोलाइज्ड वेजिटेबल प्रोटीन सिर दर्द, तेज धड़कन और मितली के लिए भी जिम्मेवार होते हैं.

इनकी जगह क्या करें प्रयोग

इनकी जगह सुबह नाश्ते में ओटमील का प्रयोग कर सकते हैं. ये आसानी से उपलब्ध होते हैं और सेहत से भी भरपूर होते हैं. बिस्कुट लेने के बजाय नाश्ते में फल लेना भी अच्छा आॅप्शन हो सकता है. इससे शरीर को अनेक प्रकार से लाभ पहुंचता है. इसके अलावा अंकुरित अनाज भी एक आॅप्शन है. इससे भी शरीर को काफी मात्रा में फाइबर मिलता है, जो कब्ज आदि की समस्या को दूर करता है और पेट के क्रिया-कलापों को सुचारू बनाये रखता है.

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