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अपनों से दूर करते स्मार्टफोन

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बच्चों के बदलते व्यवहार और पर्सनल स्पेस की बात करना अटपटा लगता है. 7 साल के गौरव को अपना डिनर और ब्रेकफास्ट अपने रूम में चाहिए. वो बाहर खेलने नहीं जाता बल्कि अपने कमरे में ही फोन लेकर घंटों अकेला बैठा रहना पसंद करता है. पेरेंट्स के कहने पर उसे गुस्सा आता है और वो […]

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बच्चों के बदलते व्यवहार और पर्सनल स्पेस की बात करना अटपटा लगता है. 7 साल के गौरव को अपना डिनर और ब्रेकफास्ट अपने रूम में चाहिए. वो बाहर खेलने नहीं जाता बल्कि अपने कमरे में ही फोन लेकर घंटों अकेला बैठा रहना पसंद करता है. पेरेंट्स के कहने पर उसे गुस्सा आता है और वो अपने पर्सनल स्पेस की बात करता है.

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तेज़ी से बदलते समय में यह बात हैरान कर देती हैं कि आज के बच्चे अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बड़े हैं. जरूरतों का पुलिंदा ऐसा उनके सर बंधा हुआ है कि बच्चे सिर्फ और सिर्फ जरूरतों को पूरा करते हैं जिसके बाद उनमें भावनात्मक लगाव और बचपना बिलकुल नहीं रहा. आइए जाने क्या है इसका कारण.

पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी ने जिस तरह से तरक्की की है उसके बाद, बच्चों की भी पूरी साइकोलॉजी बदल गई है. इसका सबसे बड़ा कारण है बच्चों के हाथ में थमाए गए स्मार्टफोन.

पेरेंट्स ने कभी सुविधा और कभी शौक में बच्चों को स्मार्टफोन थमा तो दिए लेकिन इसके नुकसान और बच्चों की बदलती आदतों को देखना भूल गए.

क्या आपने कभी बच्चों को स्मार्टफोन को इस्तेमाल करते हुए नोटिस किया है? क्या आप जानते हैं कि बच्चे स्मार्टफोन के कारण अपने रिश्तों से दूर हो रहन हैं? क्या आपको नहीं महसूस हो रहा कि आपका 7 साल का गौरव 18 साल के नौजवान की तरह पेश आने लगा है?

यदि नहीं….तो इस लेख को ध्यान से पढ़े.

आपके बच्चे दिन में 150 बार फोन की स्क्रीन देखते हैं

एक अध्ययन के अनुसार 11 से 12 साल के 70% बच्चे स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं औऱ ये 90% तक पहुंच जाता है जब 14 के उम्र तक के बच्चों को इस स्टडी में शामिल किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ ये बात भी नोटिस की गई कि 10-13 साल के बच्चों के पास अपना स्मार्टफोन होता है. इनमें से अधिकतर बच्चे कम से कम 150 बार दिनभर में फोनस्क्रीन देखते हैं. इस फोन की वजह से बच्चों का गार्डेन, बास्केटबॉल और खिलौनों से मन उब गया है और अब सुबह उठने के बाद बच्चे बैग संभलाने की तैयारी के जगह स्मार्टफोन चेक करते हैं.

साइकोलॉजी से जुडा है स्मार्टफोन

पिछले कई अध्ययनों से यह साफ हुआ है कि बच्चे टेक्नॉलॉजी के गुलाम होते जा रहें हैं. जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है वे अपने दोस्तों की देखा-देखी अपने अभिभावकों से स्मार्टफोन मांग रहे हैं जो न केवल बच्चों में जलन की भावना को जन्म देता है बल्कि बच्चे फोन के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं.

रिश्तों की जगह फोन

स्मार्टफोन और इंटरनेट ने बच्चों की दुनिया को बदल के रख दिया है. बच्चों में फोन को ले कर इतना क्रेज़ है कि इसके लियें उन्होंने अच्छा कम्यूनिकेशन स्कील डेवेलप किया है लेकिन यहीं पर बच्चों ने अपने रिश्तों को हल्के में लेना शुरू कर दिया है. स्मार्टफोन के उपयोग से बच्चे मॉ़डर्न और स्मार्ट तो बन रहे हैं लेकिन खुद उनके अभिभावको से उनका कनेक्शन कम हो रहा है. उनके लिए आभासी दुनिया, वास्तविक दुनिया से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है.

रेडिएशन से बच्चों को है खतरा

स्मार्टफोन से निकलने वाली रेडिएशन रेंज शरीर के लिए खतरनाक हो सकती है, जिसका सबसे ज्यादा असर दिमाग पर पड़ता है. कुछ पेरेंट्स का मानना है कि इस टेक्नोलॉजी के द्वारा उन्हें बच्चों की सुरक्षा से थोड़ी राहत मिली है. लेकिन वह यह नही जानते कि यही राहत उन्हें बच्चों से दूर करती जा रही है.

इमोशन सिर्फ स्टीकर में

विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे व्यवहारिक कम और वर्चुअल ज्यादा हो गये हैं. बच्चों का व्यवहारिक ज्ञान न के बराबर हो गया है. फोन में मौजूदा स्टीकर ही उनके इमोशन शो करने का तरीका हो गया है.

स्मार्टफोन बच्चों को समय से पहले ही दुनियादारी सीखा रहा है जो आपसी रिश्तों के लिए दुविधाओं का कारण बन सकता है. बेहतर होगा कि बच्चों को एक उम्र के बाद ही फोन की लत लगाई जाए.

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