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अफ्रीकी अनुभव : जानने-सीखने के लिए

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-अफ्रीका यात्रा से हरिवंश- अफ्रीका में मौका है, अवसर है. दुनिया के लिए भी. अफ्रीका के लिए भी. यह ऐतिहासिक अवसर है, जब वह अपनी गरीबी की हजारों वर्ष पुरानी जंजीरें तोड़ फेंके. जैसे जीवन बिना ‘परमार्थ’ और ‘स्वार्थ’ के नहीं चलता, वैसे ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों का समीकरण है. एक-दूसरे के हित साधने ही पड़ते […]

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-अफ्रीका यात्रा से हरिवंश-
अफ्रीका में मौका है, अवसर है. दुनिया के लिए भी. अफ्रीका के लिए भी. यह ऐतिहासिक अवसर है, जब वह अपनी गरीबी की हजारों वर्ष पुरानी जंजीरें तोड़ फेंके. जैसे जीवन बिना ‘परमार्थ’ और ‘स्वार्थ’ के नहीं चलता, वैसे ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों का समीकरण है. एक-दूसरे के हित साधने ही पड़ते हैं. आपसी सहयोग के बिना प्रगति संभव नहीं. यही स्थिति अफ्रीका की है.
बहुत पहले एक अनुभवी नौकरशाह से सुना, यह मुहावरा, अफ्रीका संदर्भ में ही, बात हो रही थी. झारखंड की. उन्होंने बताया कुछेक अर्थशास्त्री मानते हैं कि ‘रिसोर्स इज कर्स’ (प्राकृतिक संसाधन अभिशाप है). इस संदर्भ में उन्होंने अफ्रीका का हवाला दिया. प्रचुर प्राकृतिक संपदा के बावजूद, दुर्भिक्ष, भयावह गरीबी (जिसे देखकर ही समझा जा सकता है. यहां गरीबी देख कर भारत की गरीबी अमीरी की पहली सीढ़ी लगती है).
दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों से वंचित मुल्क हैं, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, भारत में गुजरात जैसे राज्य, जो अपनी कर्मठता, उद्यमिता, कौशल और साहस से शीर्ष पर हैं. पर अब अफ्रीकी अपनी प्राकृतिक संपदा का अर्थ समझ गये हैं. वे इस संपदा का उपयोग कर रहे हैं. अपने हितों को साधते हुए.
अफ्रीकन यूनियन
इस ‘ पैन अफ्रीकन यूनिटी'(अखिल अफ्रीका एकता) आंदोलन की शुरुआत का श्रेय घाना के नक्रूमा और तंजानिया के जूलियस न्येरेरे को है. वे ‘यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अफ्रीका’ का गठन चाहते थे.
वह नहीं हुआ. पर ‘ओएयू’ (आर्गेनाइजेशन ऑफ अफ्रीकन यूनिटी) बन गया. 1963 में, 90 के दशकों में दक्षिण अफ्रीका के नेता थाबो म्बकेई, नाइजीरिया के राष्ट्रपति ओबांसाजो, अल्जीरिया के राष्ट्रपति बाउटक्लेका, सेनेगल के राष्ट्रपति ओब्दुल वाडे, मिस्र के राष्ट्रपति होसनी मुबारक की पहल पर यह सपना आगे बढ़ा. गद्दाफी (लीबिया) की भी इस अफ्रीकी एकता संगठन में भूमिका रही. 1999 में ओएयू समूह के राष्ट्राध्यक्षों ने अफ्रीकन यूनियन का गठन किया. लोम शिखर वार्ता (2000) और लुसाका शिखर वार्ता (2001) ने अफ्रीकन यूनियन गठन का रोडमैप साफ किया. इस तरह ओएयू के सार्वभौम सिद्धांतों को एयू ने मान लिया.
अब यह संगठन मजबूत अफ्रीका, संयुक्त अफ्रीका के साझा विजन को लेकर सक्रिय है. 25 मई इस संगठन द्वारा अफ्रीका दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष यहां भी अफ्रीका दिवस ‘युवा सशक्तीकरण और सस्टेनेबुल डेवलपमेंट’ के नाम समर्पित है. इस अफ्रीका की राजनयिक राजधानी है, इथियोपिया (भारत के प्रधानमंत्री के शब्दों में). यहां अफ्रीकन यूनियन मुख्यालय तो है ही, अफ्रीका के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग का हेडर्क्वाटर भी यहीं है.
अफ्रीकन यूनियन कमीशन
यह आयोग धुरी बन रहा है, दुनिया के कोने-कोने से पूंजी, संसाधन, अवसर अफ्रीका लाने में. इस आयोग में कार्यरत लोगों के प्रोफाइल देखकर, चीन, सिंगापुर वगैरह याद आये. साथ ही झारखंड व भारत भी. चीन-सिंगापुर यात्रा में वहां के तत्कालीन शासकों का प्रोफाइल देखा था.
एक दशक पहले. दुनिया के श्रेष्ठ संस्थानों से पढ़े लोग, जिनके पास विश्व दृष्टि-विकास दृष्टि थी. झारखंड समेत भारत में, प्रतिभा, बेहतर शिक्षा से राजनीति का सरोकार नहीं है. आज अफ्रीका करवट ले रहा है, तो उसने अफ्रीकन यूनियन में वैसे ही शिक्षित लोगों को अवसर दिया है, जो बदलती दुनिया की रीति-नीति और बारगेन (मोल-तोल) को अच्छी तर समझते हैं. किसी एक खूंटे या ताकत के साथ नहीं बंधकर वे पश्चिम, चीन या भारत या अन्य देशों से अपनी जरूरत के अनुसार आर्थिक संबंध कायम कर रहे हैं.
अफ्रीकन यूनियन के चेयरपर्सन हैं, डॉ ज्यां पिंग. गाबोनीज राष्ट्रीयता है. पढ़ाई है, पेरिस के सोरबोन विश्वविद्यालय से पीएचडी. मास्को-चीन की मशहूर संस्थाओं में दीक्षित. डिप्टी चेयर पर्सन हैं, कीनिया के जार्नलेंसी ओ नकुंडी. कनाडा से अर्थशास्त्र में एमए. राजनीतिक मामलों की कमिश्नर हैं, गांबिया की जूलिया डाली.
फ्रांस, ब्रिटेन वगैरह से कई डिग्री प्राप्त. संगठन की सामाजिक मुद्दों की कमिश्नर हैं नामीबिया की बिएंस फिलोमिना, ब्रिटेन से वकालत से लेकर अन्य डिग्री प्राप्त. इसी तरह व्यापार और उद्योग की कमिश्नर हैं, कैमरूनियन श्रीमती एलिजाबेथ तनेकू, पेरिस विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में सर्वोच्च डिग्री प्राप्त.
आर्थिक मामलों के आयुक्त हैं, माली के डॉ मेक्सवेल. अमेरिका-ब्रिटेन की श्रेष्ठ संस्थाओं से कानून-अर्थशास्त्र में डिग्री प्राप्त. शांति और सुरक्षा के आयुक्त हैं, श्री रामतन लामाम्रा. अल्जीरिया से श्रेष्ठ डिग्री. दुनिया में अनेक महत्व के पदों पर काम के अनुभव. इसी तरह इन्फ्रास्ट्रक्चर और इनर्जी की कमिश्नर हैं, इजिप्ट की श्रीमती डॉ इलहाम महमूद इब्राहीम.
इलेक्ट्रानिक्स में पीएचडी. इसी तरह मानव संसाधन, विज्ञान और टेक्नालॉजी के आयुक्त हैं, डॉ जीन पेयरे (बेनइनओइस के रहनेवाले). फ्रांस के श्रेष्ठ विश्व विद्यालय से गणित विज्ञान में पीएचडी. इसी तरह यूगांडा की श्रीमती रोडा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि की आयुक्त. ब्रिटेन से ग्रामीण विकास, योजना, प्रबंधन में विशेषज्ञता व अर्थशास्त्र में एमए. इटली व अन्य जगहों से महिला विकास में विशेष डिग्री.
इस तरह अफ्रीकन यूनियन की इस दस टॉप टीम का प्रोफाइल पढ़ें, तब बदलते अफ्रीका की तसवीर साफ होगी. दुनिया के श्रेष्ठ संस्थानों से प्रशिक्षित लोगों को इस फोरम में जगह दी गयी है, जिनकी समझ, विजन, अनुभव और योग्यता से पीछे छूटा अफ्रीका लाभ लेकर दुनिया में मुकाबला (कंपटीशन) के लिए तैयार हो रहा है. यह है, प्रतिभा और योग्यता की कद्र.
भारत में…? खासतौर से हिंदी इलाकों में. किसी भी धर्म, जाति, समूह या क्षेत्र की बात करने वाली सामाजिक ताकतें भी, अपने बीच के ही प्रतिभाशाली लोगों को आगे लाने को तैयार नहीं. जो समाज प्रतिभा, योग्यता और क्षमता को गला घोंट कर महत्वपूर्ण और भविष्य तय करनेवाले पदों पर नाकारा लोगों को बैठाये, वह कैसे विकास करेगा? झारखंड में ही झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन समेत सभी संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के चेहरे, योग्यता और उनके कारनामे- काम देख लीजिये.
बात साफ हो जायेगी कि हजारों वर्ष से पीछे छूटा अफ्रीका क्यों तेज गति से बढ़ रहा है, पर हमारी हालत ऐसी क्यों? जिस दिन आदिस अबाबा में भारत-अफ्रीकन देशों की वार्ता चल रही थी, उसी दिन, शहर आदिस अबाबा की ‘सिटी गवर्नमेंट'(शहर सरकार) और सेंट पीट्सबर्ग (रूस) के मेयरों के बीच अलग समझौता चल रहा था कि इस शहर को सुंदर बनाने में मिलकर काम करने हैं. उसी दिन अफ्रीकन यूनियन (शांति और सुरक्षा परिषद) और यूरोपियन यूनियन (राजनीतिक और सुरक्षा समिति) की चौथी संयुक्त वार्षिक कमिटी की बैठक हो रही थी. तुर्की के इस्तांबुल में चौथी संयुक्त राष्ट्र कांफ्रेंस (कम विकसित देश) हो रही थी. अफ्रीकन यूनियन न्यूज बुलेटिन देखा. लगभग दुनिया के देशों से आपसी सहयोग-विकास के समझौते.
कुछ ही दिनों पहले आदिस अबाबा में अंतरराष्ट्रीय अफ्रीकी लेखक संघ की कांफ्रेंस हुई. विषय था ‘ महाद्वीप की आजादी से दिमाग की मुक्ति तक’ समापन में उनका नारा था ‘ अफ्रीका तुम देश नहीं, एक विचार हो. हमारे अलग-अलग भय के सांचे में बने-पले, हमारे अलग-अलग सपनों में बढ़े-बने’. इस लेखक संघ की बातों से पढ़कर लगा कि आज के अवसर को अपने हित में साधते हुए, वे अफ्रीका का कल (भविष्य) संवारना चाहते हैं. अतीत के संस्कारों -मूल्यों को बचाते हुए. अपनी पहचान रखते हुए. विकसित क्षेत्रों में शामिल होने को तैयार.
यह बड़ा बदलाव है. पश्चिम के साम्राज्यवादी रवैये को भूल कर उससे भी सहयोग लेने को तैयार. इस तरह अपने संसाधनों को अब अभिशाप नहीं रहने देना चाहता अफ्रीका. भारत में जहां संसाधन हैं (झारखंड जैसे राज्य), वहां आज तक ‘प्राकृतिक संसाधनों’ को लेकर कोई दृष्टि ही नहीं बन सकी है. उदारीकरण, ग्लोबलाइजेशन, बाजार व्यवस्था यानी उभरती नयी दुनिया को अफ्रीकन देशों ने मान लिया है, और इसी दौड़ में वे अपनी राह बनाने में लग गये हैं.
इस तरह भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने इथियोपिया की यात्रा की. 26 मई को इथियोपियन संसद के संयुक्त संबोधन में, शुरू से अंत तक 12 बार तालियों से उनकी बातों का स्वागत किया गया.
इसके बाद प्रधानमंत्री डॉ सिंह तंजानिया की यात्रा (मई 26-27) पर राजधानी दार-अस-सलाम पहुंचे. भारतीय समूह के बीच शाम को भाषण दिया. प्रधानमंत्री के रूप में तंजानिया की उनकी पहली यात्रा है. अत्यंत शानदार तरीके से डॉ सिंह का स्वागत हुआ.
यह सब देखकर लगता है कि भारत को, आज भी अफ्रीकी देश एक नये संदर्भ में देखते हैं. अतीत को जोड़कर. पर उदारीकरण और बाजार व्यवस्था से बन रहे नये संसार ने ‘स्वार्थ-हित’ को पहला एजेंडा बना दिया है.
एक जानकार मित्र बताते हैं कि चीन का सबसे बड़ा वर्चस्व, अफ्रीका में बन रहा है. माइनिंग से लेकर ऊर्जा के क्षेत्र में. अफ्रीकन तेल का वह सबसे बड़ा खरीदार है. पर, वह न कहीं प्रेस कांफ्रेंस करता है, न जानकारी देता है. अपना काम अपनी शर्तों पर, अपने तरीके से. इस जगह भारत-चीन और पश्चिमी ताकतें अपने-अपने तरीके अफ्रीका में सक्रिय हैं. पर अफ्रीकन समूह के देश भी सतर्क हैं, अपने हितों के लिए.
दिनांक : 28.05.2011

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