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अपने बच्चों में न बोएं भेदभाव के बीज

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वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार ‘‘ईश्वर ने हमें कच्ची मिट्टी सौंपी है, जिसे हम मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं. योग्यता किसी धनवान का ही घर नहीं खोजती. आजकल तो हमें अक्सर पढ़ने को मिलता हैं कि रिक्शाचालक का बेटा आइएएस बना. फोर्थ क्लास एम्प्लॉइ की बेटी ने टॉप किया. जब विद्या ऊंच-नीच नहीं देखती, […]

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वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार
‘‘ईश्वर ने हमें कच्ची मिट्टी सौंपी है, जिसे हम मनचाहे आकार में ढाल सकते हैं. योग्यता किसी धनवान का ही घर नहीं खोजती. आजकल तो हमें अक्सर पढ़ने को मिलता हैं कि रिक्शाचालक का बेटा आइएएस बना. फोर्थ क्लास एम्प्लॉइ की बेटी ने टॉप किया. जब विद्या ऊंच-नीच नहीं देखती, तो बच्चों में इस तरह के भेदभाव पनपने नहीं देने चाहिए. ये बातें एक दिन में बच्चे नहीं सीखते.’’
आप सब जानते हैं कि हर बच्चे में कुछ-न-कुछ खूबी होती है, कोई विशेषता होती है.
जरूरत इस बात की है कि हम उसे पहचानें. आजकल कैरियर के बहुत सारे ऑप्शंस हैं. अपने बच्चे की रु चि पहचानें और वह क्या कर सकता है, उसमें कितनी क्षमता है, इस बात को भी ध्यान में रखें. आप यह कर सकते हैं कि उसकी क्षमता और रु चि के अनुसार सामने आनेवाले विकल्पों में से किसी एक को चुनने में मदद कर सकते हैं.
उसके फायदे-नुकसान या भविष्य में वो कितना कारगर रहेगा, उसको मेन स्ट्रीम में ले या फिर साइड स्ट्रीम ही रखे, इन सारी बातों से आप आगाह करा सकते हैं. आजकल इस ग्लैमर की दुनिया में उसे हकीकत से सामना करवाना पेरेंट्स का ही काम है. जो माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं या बिल्कुल नहीं पढ़े, उनके बच्चे अपने शिक्षक से मदद ले सकते हैं. वे उनको सही सलाह देंगे और मार्गदर्शन करेंगे.
एक मेल है, वह टीनएजर नहीं है, बल्कि25 वर्ष का नवयुवक है और अपने भाई-बहन में सबसे छोटा भी. उसने कुछ बताया है और इसे शेयर करने को कहा है. उसकी मां बचपन में ही नहीं रही. पिता ने बच्चों की खातिर दूसरी शादी नहीं की. वे फलों का ठेला लगाते थे. जब बड़ा बेटा थोड़ा बड़ा हुआ तो वह पिता को इतना काम करते नहीं देख सका और वह पढ़ाई छोड़ कर एक जनरल स्टोर पर काम करने लगा ताकि उसकी बहन और भाई पढ़ सकें. उसकी बहन भी बीएड करके स्कूल में पढ़ाने लगी.
उसने लिखा है- सब मिल कर मुङो पढ़ाना चाहते थे. इसलिए मैं पढ़ पाया. मैं आज इंजीनियर हूं. मैं आपसे केवल यही कहना चाहता हूं कि टैलेंट, योग्यता ढूंढ़-ढूंढ़ कर किसी धनवान के घर ही नहीं जाती, एक फल बेचनेवाले के घर के बच्चे भी पढ़ने में तेज हो सकते हैं. सभी मां-पिता अपने बच्चों को बेहतर जीवन देना चाहते हैं. अपना तन-मन-धन लगा कर काम करते हैं ताकि उनके बच्चे पढ़ सकें. इसलिए बच्चों को माता-पिता की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए. उनके परिश्रम से ज्यादा खुद परिश्रम करके उनकी मेहनत को सफल बनाना चाहिए. मैंने अपने बल पर आज सब कुछ हासिल किया मगर बहुत जिल्लत ङोली.
स्कूल में बच्चे मुझसे दोस्ती नहीं करते थे. मेरे साथ डेस्क पर बैठने को तैयार नहीं होते थे. मैंने टेंथ तक अकेले ही लंच किया. जब कोई साथ नहीं बैठता था, तो मेरा टिफिन कैसे खाता? मुङो कभी किसी बच्चे ने अपनी बर्थ डे पार्टी में नहीं बुलाया, क्योंकि मैं फल बेचनेवाले का बेटा था.
मेरे भाई-पापा ने इज्जत और सम्मान के साथ मुङो पढ़ाया, कोई चोरी-डकैती नहीं की. मुङो गर्व है अपने पापा, भइया और दीदी पर. उन्होंने मुङो हमेशा यही सिखाया कि कोई भी कितना गलत क्यों न करे, तुम कोई भी गलत काम मत करना. कोई भेदभाव मत करना. उनके संस्कार हैं मुझमें. परिवार शायद इसी को कहते हैं और ऐसे ही संस्कारों की चेन चलती है. जो माता-पिता बच्चों में छोटे-बड़े, अमीर-गरीब का फर्क डालते हैं, उनसे कहिए कि वे बच्चों में भेदभाव के बीज न बोएं. यह मेरी आपबीती है. हो सकता है कुछ लोग सबक ले सकें. आज मेरी शादी के लिए बड़े-बड़े घरों से रिश्ते आ रहे हैं. आज कोई नहीं पूछता कि मेरे पिता फल बेचते थे और सब यही कहते हैं कि रमेश ने फल बेच कर भी अपने बेटे को इंजीनियर बनाया.
इसमें मेरे बड़े भाई का भी योगदान है, जिनको मैं पितातुल्य ही मानता हूं. मुङो टेंथ तक जो तिरस्कार ङोलना पड़ा, उसने मुङो मजबूत बनाया. हां, कभी-कभी बहुत निराश होता था, तब भइया एक ही बात कहते थे कि जब तुम्हारा रिजल्ट आयेगा तब देखना सब तुम्हें कितना मानेंगे. जो आज तुम्हारे साथ नहीं बैठते, वहीं तुमसे दोस्ती करेंगे. जब टेंथ में मैंने, स्कूल में टॉप किया तो भइया की बात सच हो गयी. उसके बाद दूसरे बच्चे भी दोस्ती करने लगे. मुङो वह सम्मान मिला, जिसका मैं हकदार था मगर वह सम्मान पाने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की और धैर्य के साथ इंतजार किया. भेदभाव के बीज कहीं-न-कहीं माता-पिता ही बच्चों में डालते हैं. किसी भी तरह की आदतें हों, बच्चे घर से ही सीखते हैं.
घर के संस्कारों का, रहन-सहन, बातचीत के ढंग का, तौर-तरीकों का बच्चों पर बहुत गहरा असर पड़ता है. अपने बच्चों में भेदभाव का बीज बोकर कहीं-न-कहीं आप अपने बच्चों के आनेवाले जीवन में कलेश और अशांति का माहौल तैयार कर रहे हैं. दूसरों की खामियां खोजने से बेहतर है कि आप उसे स्वयं का मूल्यांकन करना सिखाएं. समाज में अगर हम किसी एक व्यक्ति में भी सुधार लाते हैं, तो अपना जीवन धन्य समझना चाहिए. लेकिन बच्चे तो अपने ही हैं. ईश्वर ने हमें कच्ची मिट्टी सौंपी है, जिसे हम मनचाहा आकार देकर एक सुगठित ठांचे में ढाल सकते हैं. योग्यता किसी धनवान का घर नहीं खोजती.
आजकल तो हमें अक्सर पढ़ने को मिलता हैं कि रिक्शा चालक का बेटा आइएएस बना. फोर्थ क्लास एम्प्लॉइ की बेटी ने टॉप किया. जब विद्या ऊंच-नीच नहीं देखती, तो बच्चों में इस तरह के भेदभाव पनपने नहीं देने चाहिए. ये बातें एक दिन में बच्चे नहीं सीख सकते. जैसे कुम्हार मिट्टी को चाक पर चढ़ा कर उसे मनचाहे आकार में ढालने के बाद ही उतारता है, उसी तरह माता-पिता को बचपन से ही बच्चों में अच्छी आदतें डालने का प्रयास करना चाहिए. हम सब चाहेंगे तभी एक अच्छा समाज बन सकता है.
ऐसे बच्चों और माता-पिता का समाज में सम्मान होना चाहिए, जो अभावों के बाद भी स्वयं को स्थापित करते हैं और खुद कितना भी खटें, लेकिन बच्चों का भविष्य गढ़ने में अहम भूमिका निभाते हैं. उन सभी माता-पिता को दिल से सलाम.
(क्रमश:)

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