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नया साल… नये सपने… नयी उमंग !! एसिड पीड़िताओं की जिंदादिली

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आलेख: रचना प्रियदर्शिनीआगामी 10 जनवरी को मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘छपाक’ रिलीज हो रही है, जो कि एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जीवनयात्रा से प्रेरित है. इसका ट्रेलर आउट होने के साथ ही यह चर्चा में आ गयी थी और सप्ताह भर में ही इसे करीब 10 लाख लोगों ने देख लिया. कारण […]

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आलेख: रचना प्रियदर्शिनी
आगामी 10 जनवरी को मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित फिल्म ‘छपाक’ रिलीज हो रही है, जो कि एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की जीवनयात्रा से प्रेरित है. इसका ट्रेलर आउट होने के साथ ही यह चर्चा में आ गयी थी और सप्ताह भर में ही इसे करीब 10 लाख लोगों ने देख लिया. कारण यह फिल्म है सपनों की, हौसलों की, उम्मीदों की और अटूट इरादों की, जो दुनिया को ललकारती है और कहती है- ‘हम हारेंगे नहीं. हमें जीना है. आगे बढ़ना है. आसमान को छूना है.’ यह नववर्ष विशेषांक प्रेरित है ऐसी ही मजबूत इरादों वाली एसिड पीड़िताओं की जिंदादिली से.

सपना कुमारी (बोकारो थर्मल, झारखंड) ने बतायी आपबीती….

याद कीजिए कि अगर कभी खाना पकाते वक्त हमारे शरीर में तेल की एक बूंद छिटक कर पड़ जाती है, तो कितनी तेज जलन होती है. उसी शरीर पर अगर एसिड की पूरी बोतल उड़ेल दी जाये, तो कैसी तड़प होगी! इसका अंदाजा शायद हम या आप कभी नहीं लगा सकते. यहां तक कि इसके बारे में सोच कर ही हमारी रूह कांप उठती है, लेकिन पिछले 20 सालों से मैं यह दर्द झेल रही हूं. वर्ष 1999 की बात है, जब मेरे साथ-साथ पूरे परिवार पर एसिड अटैक हुआ. मेरे पापा सुनार थे. उन दिनों ऑफ सीजन की वजह से उनका व्यापार थोड़ा मंदा चल रहा था. हमलावर मेरे पिता का करीबी था. उसने पिता से कहा कि किसी ने आप पर टोना-टोटका कर दिया है, तभी व्यापार में मंदी है. पिताजी उसके झांसे में आ गये. उसने उपाय बताते हुए कहा कि वह किसी मौलाना को जानता है, जो मंत्र फूंक कर पानी देता है. फिर एक रोज उसने मेरे बड़े भाई को अपने घर बुला कर एक लोटा पानी दिया और कहा कि इसे तुम सारे परिवारवाले एक साथ बैठ कर पी लेना. तुम्हारी आर्थिक परेशानी दूर हो जायेगी. उस रात लाइट चली गयी थी, तो हम सब लोग छत पर बैठे थे. भाई ने सबको थोड़ा-थोड़ा पानी गिलास में ढाल कर पीने दिया. जैसे ही मेरे गले से वो पानी उतरा, गले में जलन होने लगी. मैं जोरों से चीखी. तब तक मेरे पिता, छोटा भाई और मंझली बहन उस पानी को पीकर उल्टियां करने लगे थे. मेरी चीख सुन कर मां, मेरी बड़ी बहन और एक अन्य भाई के हाथ से गिलास छूट कर नीचे गिर गया और वे लोग दौड़ कर हमें बचाने आये. तुरंत हॉस्पिटल लेकर गये. हमने थाने में केस दर्ज किया. सालों मुकदमा चला. आज अपराधी जेल में है. मेरी मंझली बहन, एक भाई और पिता की मौत हो चुकी है. मेरे गले की नली पूरी तरह डैमेज हो गयी है. इस वजह से मैं पिछले 20 वर्षों से लिक्विड डायट पर जिंदा हूं. उसे खाने से पहले भी हर दिन मुझे करीब डेढ़ मीटर लंबे पाइप को मुंह में डालना पड़ता है. यह बेहद दर्दनाक प्रक्रिया है. पूरे दिन में दो बार से ज्यादा ऐसे खाने की हिम्मत नहीं पड़ती. कई बार भूख लगती भी है, तो पानी पीकर काम चलाना पड़ता है, इसके लिए पाइप डालने की जरूरत नहीं होती. दिल्ली एम्स में डॉक्टर को दिखाया था, तो उन्होंने कहा कि कॉर्ड बदलना पड़ेगा, पर चार-पांच लाख रुपये का खर्च आयेगा. फिलहाल इतने पैसे हैं नहीं, तो इलाज संभव नहीं हो पा रहा. सरकार और समाज से मदद की उम्मीद है. फिलहाल मैं एक सरकारी ऑफिस में कार्यरत हूं. भाई पापा की दुकान संभालता है. उससे बस गुजर-बसर लायक आमदनी ही हो पाती है.

‘जब मैं गलत नहीं तो क्यों अपना चेहरा छिपाऊं’
अंशु राजपूत (बिजनौर, यूपी) ने बतायी आपबीती….
मैं जब 10वीं क्लास में थी, तो मेरे पड़ोस में रहनेवाले एक 55 वर्षीय शादीशुदा व्यक्ति रोज स्कूल आने-जाने के दौरान मेरा पीछा करता था. एक दिन उसने मुझे रास्ते में रोक कर कहा कि ‘मैं तुमसे प्यार करता हूं और तुम्हारे साथ रिश्ता बनाना चाहता हूं.’ उसकी बात सुन कर मैं अवाक रह गयी. मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. आखिरकार मैंने अपने माता-पिता को इस बारे में बताया. उनलोगों ने उस आदमी के घर जाकर उसकी पत्नी और बच्चों से इस बारे में बात की. उसकी पत्नी उल्टा मेरे पैरेंट्स पर ही चिल्लाने लगी और उन्हें बुरा-भला कहने लगी. इसी सब कलह के बीच एक दिन वह व्यक्ति मेरे छत की दीवार फांद कर रात करीब 12 बजे मेरे घर में घुस आया. गर्मी का मौसम होने के कारण उस समय हमलोग छत पर ही सोये हुए थे. उसके और मेरे घर की दीवार एक थी. उसने सोये हुए में ही मेरे ऊपर एसिड डाल दिया. जलन शुरू होते ही मेरी फैमिली मुझे लेकर हॉस्पिटल भागी. उससे पहले हमने लोकल थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज की. करीब चार महीनों तक मेरा इलाज चला. जब मैं लौट कर घर आयी, तो आस-पड़ोस का रिएक्शन मेरे प्रति बहुत गंदा था. मेरे सारे दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया. मैं उस वक्त 11वीं क्लास में थी. स्कूल ने मेरा नाम काट दिया. ऐसे में मां-पिता और भाई-बहनों के अलावा मेरा कोई सहारा नहीं था. मैं बिल्कुल अकेली पड़ गयी थी. अक्सर आत्महत्या का ख्याल आता था, पर मां-पापा समझाते कि ‘चेहरा तो सबके पास होता है, पर एक अच्छा दिल किसी-किसी के पास ही होता है. तुम्हारे दिल की खूबसूरती आज हम देख पा रहे हैं. एक दिन दुनिया भी देखेगी.’ उनके ऐसे शब्दों ने ही मुझे जीने का और अपने परिवार के लिए कुछ करने का हौसला दिया. मैं दुनिया और समाज को बताना चाहती हूं कि गलत मैं नहीं, वे लोग हैं, जिन्होंने मेरे साथ यह क्रूरता बरती. फिर मैं क्यों अपना चेहरा छिपाऊं. मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा था. इससे मुझे काफी हौसला और हिम्मत मिला. पिछले चार वर्षों से मैं लखनऊ से ‘सीरोज’ कैफे में काम कर रही हूं. वहां मेरे जैसी कई और लड़कियां भी हैं. सड़क पर चलते हुए कई लोग हमें घूर-घूर कर देखते हैं, कुछ देख कर मुंह फेर लेते हैं और कुछ लोग भद्दे कमेंट करते हैं, पर अब इन सबसे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. कई लोग ऐसे भी हैं, जो हमारे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं. अत: जो बुरा है, उसे इग्नोर करती हूं और जो अच्छा है, उसे अपना लेती हूं और खुश रहती हूं. फिलहाल मेरा हमलावर जेल में है. हालांकि हमारे देश की कानूनी प्रक्रिया बेहद सुस्त होने के कारण आज सात सालों बाद भी मेरे केस का अंतिम निर्णय नहीं आया है.

(इनपुट : नीतू सिंह)

बिहार सरकार ने बढ़ाया मुआवजा
बिहार सरकार ने जुलाई-2018 में दिये अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में एसिड अटैक और रेप सर्वाइवर (पीड़ित) के लिए मुआवजे की राशि को तीन लाख रुपये से बढ़ा कर 7 लाख रुपये कर दिया है. अगर पीड़िता की उम्र 14 साल से कम है तो मुआवजे की राशि 50 फीसदी तक बढ़ायी जा सकती है. इसके अलावा, अगर तेजाब पीड़िता का चेहरा स्थायी रूप से विकृत हो गया हो या आंख को नुकसान हुआ हो, तो ऐसी स्थिति में अधिकतम 10 हजार रुपये प्रति महीने आजीवन मुआवजा देने का भी प्रावधान है. नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की ओर से भी रेप, गैंगरेप और एसिड अटैक से पीड़ित वैसी ग्रामीण महिलाओं और पीड़ित परिवारों को, जो संसाधनों से हीन हैं और कानूनी लड़ाई के लिए जिन्हें मदद की दरकार रहती है, पांच से सात लाख रुपये का न्यूनतम मुआवजा देने का प्रावधान तय किया है.

इग्नू द्वारा एसिड पीड़ितों को मुफ्त शिक्षा

इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) ने गत वर्ष एसिड अटैक सर्वाइवर्स को मुफ्त में पढ़ाने की घोषणा की है. अभी पाइलट प्रॉजेक्ट के तौर पर लखनऊ केंद्र पर यह प्रयास शुरू किया गया है. अगर यह सफल रहा, तो देश भर में एसिड अटैक पीड़िताओं को मुफ्त दाखिला दिया जायेगा. फिलहाल इसके तहत गोमती नगर क्षेत्र में स्थित शीरोज (Sheroes) रेस्त्रां में काम करने वाली 10 ऐसिड अटैक सर्वाइवर्स ने सर्टिफिकेट इन फूड एंड न्यूट्रिशन कोर्स में दाखिला लिया है. यह कोर्स छह महीने का है, जिसका पूरा खर्च इग्नू अध्ययन केंद्र और यहां के अधिकारी उठायेंगे. लखनऊ के पॉलिटेक्निक संस्थानों में एसिड अटैक पीड़ित और बौनापन से ग्रसित छात्र-छात्राओं को प्रवेश में आरक्षण का लाभ देने के लिए शासन ने फिजिकल हैंडीकैप का कोटा तीन से बढ़ा कर चार फीसदी कर दिया है.

सरकारी नौकरी में मिलेगी छूट

राइट ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज एक्ट-2017 लागू होने के दो साल बाद केंद्र सरकार पहली बार मानसिक बीमारी, लर्निंग एंड इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी, ऑटिज्म और एसिड अटैक से पीड़ित लोगों के लिए सरकारी नौकरियों के दरवाजे खोलने का ऐलान किया है. इस एक्ट के तहत सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में दिव्यांगों के आरक्षण को तीन पर्सेंट से बढ़ा कर चार पर्सेंट और बेंचमार्क डिसेबिलिटी की संख्या को सात से बढ़ा कर 21 किया गया था. इसमें सभी श्रेणियों- ग्रुप ए, ग्रुप बी और ग्रुप सी के तहत सरकारी उपक्रमों में सिविल इंजीनियर, आर्किटेक्ट्स, टाउन प्लानर्स जैसे पद और मंत्रालयों में मल्टी-टॉस्किंग स्टाफ और प्रोटोकॉल ऑफिसर जैसे पदों पर दिव्यांगों के लिए नौकरियों की पहचान की गयी है.

एसिड पीड़िताओं की मददगार
मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली अंजू रावत वर्ष 1999 से रेप और एसिड अटैक पीड़ितों की मदद कर रही हैं. वर्ष 2005 में गुड़गांव आने के बाद उन्होंने यहां महिलाओं की मदद करने के उद्देश्य से एक एनजीओ की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने नाबालिग रेप पीड़िताओं और एसिड अटैक की शिकार बच्चियों का केस फ्री में लड़ना शुरू कर दिया. वह कानूनी कार्रवाई से लेकर उनके पुनर्वास तक में उन्हें पूरा सहयोग करती हैं.

-एसिड सर्वाइवर फाउंडेशन इंडिया के मुताबिक हमारे देश में हर साल लगभग 100 से 500 एसिड अटैक होते हैं.

-दुनिया में एसिड अटैक के सबसे ज्यादा मामले भारत में दर्ज होते हैं.

-भारत में हर साल करीब 300 एसिड अटैक के मामले दर्ज किये जाते हैं.

-एसिड अटैक सर्वाइवर्स का मानना है कि ऐसे मामलों की संख्या हजार से अधिक है, क्योंकि कई मामले दर्ज ही नहीं होते.

(स्रोत : गैर-सरकारी संस्था ‘स्टॉप एसिड अटैक’ द्वारा जारी आंकड़ें)

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