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सैनिटरी पैड : महिलाओं के ”मुश्किल दिनों” को आसान बनाने की पहली जरूरत

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लखनऊ : किशोरावस्था में लड़कियों में माहवारी आना उनके मातृत्व की ओर बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया है और इस दौरान उन्हें उचित मार्गदर्शन के साथ ही स्वच्छ सैनेटरी पैड मिलना एक बुनियादी जरूरत है, लेकिन अपने आप में दुखदायी तथ्य यह है कि हमारे देश में बड़ी संख्या में लड़कियां माहवारी के समय कपड़ा, टाट, […]

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लखनऊ : किशोरावस्था में लड़कियों में माहवारी आना उनके मातृत्व की ओर बढ़ने की प्राकृतिक प्रक्रिया है और इस दौरान उन्हें उचित मार्गदर्शन के साथ ही स्वच्छ सैनेटरी पैड मिलना एक बुनियादी जरूरत है, लेकिन अपने आप में दुखदायी तथ्य यह है कि हमारे देश में बड़ी संख्या में लड़कियां माहवारी के समय कपड़ा, टाट, रेत या राख आदि का इस्तेमाल करती हैं, जो स्वास्थ्य और स्वच्छता की दृष्टि से ठीक नहीं है.

एक अध्ययन के अनुसार, देश में ज्यादातर लड़कियों को माहवारी आने से पहले इस प्रक्रिया के बारे में पता ही नहीं होता क्योंकि इस बारे में बात करना अच्छा नहीं माना जाता. यही वजह है कि कठिनता से भरे इन चार पांच दिनों में उनकी बुनियादी जरूरत को पूरा करने पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. सरकारी स्तर पर और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के साथ ही ‘पैडमैन’ जैसी फिल्म बनाकर बॉलीवुड भी हालात को बेहतर बनाने के लिए योगदान दे रहा है.

सैनेटरी पैड बनाने वाली कंपनी नाइन ने भारत में इन्हीं प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति जागरूक करने और बहुत कम कीमत पर सैनेटरी पैड उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया है. कंपनी ने रक्षा बंधन और शिक्षक दिवस पर इस दिशा में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया.

इसी श्रृंखला में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में किशोरियों और महिलाओं में माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विशेष अभियान शुरू किया गया है. अभियान के तहत छात्राओं के काॅलेजों में सैनेटरी पैड की वेडिंग मशीनें लगायी जा रही है.

फिलहाल दिल्ली, आगरा और इलाहाबाद के काॅलेजों में सैनिटरी पैड की 130 वेडिंग मशीनें लगायी गयी हैं और धीरे-धीरे इनका दायरा बढ़ाया जाएगा. इसके अलावा, महिला कार्यकर्ता दूरदराज के गांवों में महिलाओं को सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में जानकारी दे रही हैं.

नाइन मूवमेंट और नाइन पैड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रिचा सिंह ने बातचीत में कहा, हाल ही में आपने डाॅटर्स डे पर टेलीविजन पर नाइन पैड के विज्ञापन में एक पिता को अपनी बेटी से सैनिटरी पैड के इस्तेमाल के बारे में बात करते हुए झिझकते देखा होगा. हमारा उद्देश्य सैनिटरी पैड के बारे में समाज में व्याप्त इसी झिझक को मिटाना है.

देश की तकरीबन 50 फीसदी महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करतीं और इनमें सिर्फ ग्रामीण इलाकों की ही नहीं, बल्कि शहरी महिलाओं की तादाद भी काफी ज्यादा है. उन्होंने बताया कि नाइन पैड आंदोलन के तहत उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर, आगरा, सीतापुर, फिरोजाबाद जिलों के ग्रामीण इलाकों में पिछले दो महीनो में करीब 50 हजार किशोरियों और महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति जागरूक करने के साथ ही सैनिटरी पैड के इस्तेमाल का महत्व समझाया गया है.

सिंह बताती हैं कि इस काम में स्वयंसेवी संस्थाओं की महिला कार्यकर्ताओं, आगंनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आशा कार्यकतार्ओं की भी मदद ली जा रही है. महिला कार्यकर्ता घर-घर जाकर किशोरियों और महिलाओं को जागरूक करने का ​काम कर रही हैं. सिंह ने बताया, हम स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से किशोरियों और महिलाओं को उनके घर या स्कूल पर जो पैड का पैकेट उपलब्ध करा रहे हैं, उसकी कीमत मात्र पंद्रह रूपये है. इस जागरूकता अभियान को जल्द ही पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार और ​हरियाणा में भी शुरू किया जायेगा.

कंपनी ने कुछ माह पहले मेक इन इंडिया अभियान तहत गोरखपुर में एक फैक्टरी की स्थापना की है, जिसमें अगले दो से तीन साल में करीब 100 करोड़ रुपये के निवेश का लक्ष्य है. कंपनी ने इसी वर्ष फरवरी में उप्र में हुई इन्वेस्टर्स समिट में प्रदेश सरकार के साथ अस्सी करोड़ रुपये के एमओयू (समझौता पत्र) पर हस्ताक्षर भी किये थे.

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