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कम तनख्वाह पाने वाले को आती है कम नींद, सर्वे में सामने आये कई दिलचस्प तथ्य, जानें

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नयी दिल्ली: इनसान अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा नींद में गुजारता है और अगर आप को चैन की नींद नहीं आती तो इसकी बहुत सी वजह हो सकती हैं. हो सकता है आपकी तनख्वाह कम हो, हो सकता है कि आप सिगरेट पीते हों, हो सकता है कि आपने ठीक समय पर खाना न […]

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नयी दिल्ली: इनसान अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा नींद में गुजारता है और अगर आप को चैन की नींद नहीं आती तो इसकी बहुत सी वजह हो सकती हैं. हो सकता है आपकी तनख्वाह कम हो, हो सकता है कि आप सिगरेट पीते हों, हो सकता है कि आपने ठीक समय पर खाना न खाया हो और यह भी हो सकता है कि आपको मोटापे की वजह से सोने में दिक्कत आ रही हो. हाल ही में दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरू में कामकाजी पेशेवरों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण में नींद से जुड़े यह मजेदार तथ्य सामने आए.

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सर्वेक्षण के अनुसार कम वेतन पाने वालों को नींद कम आती है और अगर वेतन बढ़ जाए तो नींद की मिकदार भी बढ़ जाती है. इसी तरह जो लोग अच्छी नींद सोते हैं, उनमें दो तिहाई से ज्यादा लोगों का कहना था कि वह पूरे मन से काम करते हैं और उसके परिणाम भी बहुत अच्छे आते हैं. इसकी तुलना में कम सोने वाले लोग अपना कोई भी काम पूरे मन से नहीं कर पाते.

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 30 वर्ष से कम उम्र के लोग भरपूर नींद लेते हैं और उम्र बढ़ने के साथ साथ नींद से जुड़ी समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं. गद्दे बनाने वाली एक कंपनी द्वारा कराए गए इस सर्वे के अनुसार, बेंगलुरू में लोग बिस्तर पर जाने के कुछ देर के भीतर ही सो जाते हैं, जबकि दिल्ली और मुंबई में रहने वालों को नींद आने में थोड़ा वक्त लगता है. इसकी वजह बेंगलुरू में शोर के कम स्तर को माना जा रहा है, जबकि दिल्ली और मुंबई का शोर लोगों को सोने नहीं देता. बेंगलुरू में लोग रात 10 से 11 बजे के बीच सोने चले जाते हैं जबकि मुंबई में लोग अमूमन आधी रात के बाद ही सोते हैं.

सर्वे से यह तथ्य भी सामने आया कि जो लोग खाना खाने और सोने में दो घंटे से कम समय का अंतर रखते हैं उन्हें नींद से जुड़ी समस्या होने की आशंका अधिक होती है. वैसे खाने पीने की बात करें तो दिल्ली वालों का कोई मुकाबला नहीं. सर्वे से पता चला कि दिल्ली के लोग भारी भरकम डिनर के बाद सोने जाते हैं, जबकि मुंबई के लोग कुछ ‘लाइट’ खाकर सोना पसंद करते हैं. इसी तरह अविवाहित और बाल बच्चों वाले दंपती की नींद नि:संतान दंपतियों से कहीं बेहतर होती है. यहां यह भी दिलचस्प है कि अपने बच्चों के साथ सोने वाले माता-पिता को नींद आने में मुश्किल होती है. इसी तरह तीन साल से ज्यादा पुराने गद्दे हों तो नये गद्दों पर सोने वालों की तुलना में नींद आने में 20 प्रतिशत अधिक समस्या हो सकती है. धूम्रपान करने वाले लोगों के मुकाबले ऐसा न करने वालों को बेहतर नींद आती है.

यह भी उल्लेखनीय है कि सिगरेट की संख्या जितनी बढ़ती जाती है नींद की मात्रा उतनी कम होती जाती है. यही हाल मोटापे का है, जो लोग खुद को मोटा मानते हैं उनमें नींद से जुड़ी परेशानियां ढाई गुना तक ज्यादा होती हैं, बनिस्बत उन लोगों के, जो खुद को मोटा नहीं मानते. इसी तरह नियमित तौर पर कसरत करने वाले, जिम जाने वाले और पैदल चलने वाले लोगों को ऐसा न करने वालों के मुकाबले बेहतर नींद आती है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों से पूछे गए प्रश्नों के आधार पर एक और बात सामनेआयी कि जो लोग अपने कार्यालय के नजदीक रहते हैं वह उन लोगों के मुकाबले आराम की नींद सोते हैं, जिन्हें कार्यालय पहुंचने के लिए एक घंटा या उससे ज्यादा समय लगता है.

बेंगलुरू और मुंबई में रहने वाले 54 प्रतिशत लोग अपने बेडरूम में टेलीविजन लगाना पसंद करते हैं, जबकि दिल्ली में रहने वाले 71 प्रतिशत लोग अपने बेडरूम में टेलीविजन लगाते हैं. सर्वेक्षण में शामिल 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग अपने मोबाइल फोन को अपने पास रखना पसंद करते हैं. बेंगलुरू में तो ऐसा करने वालों का प्रतिशत 97 प्रतिशत रहा. नींद से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ डा. हिमांशु गर्ग का कहना है कि लोग नींद को उतनी तवज्जो नहीं देते, जितनी देना चाहिए. अच्छी नींद किसी वरदान से कम नहीं है. शरीर की कार्यक्षमता, कार्यकुशलता, स्मृति और चुस्ती-फुर्ती बनाए रखने में नींद का बड़ा योगदान है.

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