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Tourism Industry को ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के परिजनों के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत

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हमने कुछ ब्रिटिश अभिभावकों से बात की, जिन्होंने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को छुट्टियों पर ले जाना इतना चुनौतीपूर्ण है कि वे सिर्फ छोटी-छोटी यात्राओं की योजना बनाते हैं. इनमें से 35 फीसदी माता-पिता के मुताबिक, वे ज्यादा से ज्यादा एक से दो रात घर से बाहर रहना पसंद करते हैं.

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परिवार के साथ छुट्टियों पर जाना हमेशा मन को सुकून देने वाला अनुभव साबित नहीं होता. यातायात जाम से लेकर हवाई अड्डों पर लगने वाली लंबी कतारें और तनाव छुट्टियों का मजा किरकिरा कर सकते हैं. बावजूद इसके, हममें से ज्यादातर लोग माहौल बदलने और रोजमर्रा की दिनचर्या से ब्रेक लेने के लिए छुट्टियों पर जाने को बेकरार रहते हैं.

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हालांकि, ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए माहौल और दिनचर्या में आए बदलावों के हिसाब से ढलना बेहद मुश्किल साबित हो सकता है. और हमारे अनुसंधान से संकेत मिलते हैं कि इससे परिवार के साथ बिताई जाने वाली छुट्टियां उनके लिए बेहद भयानक अनुभव साबित हो सकती हैं.

हमने कुछ ब्रिटिश अभिभावकों से बात की, जिन्होंने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को छुट्टियों पर ले जाना इतना चुनौतीपूर्ण है कि वे सिर्फ छोटी-छोटी यात्राओं की योजना बनाते हैं. इनमें से 35 फीसदी माता-पिता के मुताबिक, वे ज्यादा से ज्यादा एक से दो रात घर से बाहर रहना पसंद करते हैं.

ज्यादातर अभिभावक छुट्टियों के मौसम या ऐसी अन्य परिस्थितियों में यात्रा करने से बचते हैं, जिनमें उनके बच्चे को ज्यादा असुविधाजनक महसूस हो सकता है. 80 फीसदी से ज्यादा माता-पिता ने बताया कि वे विदेश जाने के बजाय हमेश ब्रिटेन की किसी जगह को ही छुट्टियों के लिए चुनते हैं. कुछ अभिभावकों ने कहा कि रात में बाहर ठहरने से बचने के लिए सिर्फ दिनभर की छुट्टी की योजना बनाते हैं.

कई माता-पिता ने हमें बताया कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे का होना यह निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है कि वे कब, कहां और किस तरह की छुट्टियां मनाएंगे. एक अभिभावक ने कहा, “जब मैं अपने बेटे को बाहर घुमा-फिराकर लौटती हूं, तब मुझे खुद छुट्टियों पर जाने की जरूरत महसूस होने लगती है.” एक अन्य अभिभावक ने कहा कि उनकी हालिया छुट्टियों का अनुभव इतना खराब था कि उन्होंने अपनी अगली यात्रा रद्द कर दी और भविष्य में कभी भी बाहर न जाने का फैसला किया.

छुट्टियां मनाने आए अन्य लोगों की प्रतिक्रियाएं

हमारे अनुसंधान में कई ऐसी वजहें सामने आईं, जिससे ऑटिज्म के शिकार बच्चों के माता-पिता उन्हें छुट्टियों पर ले जाने में हिचकिचाते हैं. हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि अपने बच्चों के बर्ताव के प्रति छुट्टियां मनाने आए अन्य लोगों की प्रतिक्रियाएं इस हिचक का सबसे बड़ा कारण थीं.

ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चे उस समय बेचैन हो उठते हैं, जब उन्हें नयी और असमान्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जो छुट्टियों के दौरान बहुत सामान्य है. और जब ऐसे बच्चों की बेचैनी बढ़ जाती है, तब वे परेशान दिखने लगते हैं और उत्तेजक व्यवहार करने लगते हैं, जैसे कि सीट पर हिलना-डुलना, ताली बजाना, खिलौने पटकना या दौड़ना-भागना.

हमारे अनुसंधान में ऑटिज्म से पीड़ित 295 बच्चों के परिजन शामिल हुए. इनमें से कुछ अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों द्वारा बेचैनी में किया गया बर्ताव अन्य यात्रियों को ‘अच्छा नहीं लगता.’ यही नहीं, इन अभिभावकों को लगता है कि उन्हें ऐसे माता-पिता के रूप में देखा जाएगा, जिनका खुद के बच्चों पर कोई नियंत्रण नहीं.

अनुसंधान में शामिल लगभग आधे अभिभावकों ने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे के साथ यात्रा करने के दौरान अन्य यात्रियों से संवाद करना मुश्किल होता है. इनमें कई अभिभावकों ने अन्य यात्रियों में अपने बच्चों की हालत के प्रति संवेदनशीलता का अभाव होने की शिकायत की. उन्होंने बताया कि कुछ यात्री उनके बच्चे को घूरते हैं, जबकि कुछ उन्हें डांटने से भी नहीं चूकते.

रोमांचक गतिविधियों से दूर रहना पसंद

अनुसंधान में शामिल अभिभावकों ने कहा कि ऑटिज्म के शिकार बच्चों के साथ किसी कार्यक्रम या रोमांचक गतिविधियों के लिए जाना छुट्टियों का सबसे तनावपूर्ण हिस्सा होता है. इनमें से कई माता-पिता ने माना कि वे इन गतिविधियों में हिस्सा न लेना और उस जगह के आसपास ही रहना बेहतर समझते हैं, जहां वे ठहरे हुए हैं.

लेकिन इससे यह भी सवाल उठता है कि छुट्टियों पर ऐसे बच्चों के भाई-बहनों को बोर होने से कैसे बचाया जाए और उनका मनोरंजन कैसे किया जाए. ऑटिज्म से पीड़ित कुछ बच्चे तेज आवाज, चमकीली लाइट और तीव्र गंध के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं, जबकि उनके भाई-बहन को ऐसी जगहें आकर्षित कर सकती हैं.

एक मां ने कहा, “छुट्टियां पूरे परिवार के लिए होती हैं, लेकिन मेरा पूरा समय ऑटिज्म से जूझ रही मेरी बेटी को शांत करने और उसकी जरूरतें पूरी करने में बीत जाता है. मेरे छोटे बच्चे और परिवार के सदस्यों को छुट्टियों का वैसा अनुभव नहीं मिल पाता, जिसके वे हकदार हैं.”

अभिभावकों ने कहा कि चलने-फिरने में दिक्कतों का सामना करने वाले लोगों की मुश्किलें हल करने के लिए पर्यटन उद्योग ने बहुत कुछ किया है, लेकिन ऑटिज्म से पीड़ित दिव्यांग बच्चों के वास्ते उसकी तरफ से खास पहल किए जाने की जरूरत हैं. इनमें हवाई अड्डों पर शांत जगहें बनाना, विमान में शोर बाधित करने वाले हेडफोन उपलब्ध कराना, पार्क में जल्दी प्रवेश की व्यवस्था करना और होटल में भारी कंबल व आंखों पर बांधी जाने वाली काली पट्टी उपलब्ध कराना शामिल है.

(ब्रायन गैरोड, स्वानसी विश्वविद्यालय, एलन जेपसन, यूनिवर्सिटी ऑफ हर्टफोर्डशायर और राफेला स्टैडलर, एमसीआई मैनेजमेंट सेंटर इंसब्रक)

इनपुट: भाषा

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