Jagannath Rath Yatra: ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित होती है भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा, जिसमें शामिल होने लोग देश-विदेश से आते हैं.इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मुख्य मंदिर से निकलकर मौसीबाड़ी यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं. हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलने वाली रथ यात्रा का विशेष महत्व है. नौ दिनों तक गुंडिचा मंदिर में रहने के बाद तीनों देवता वापस रथ पर सवार होकर मुख्य मंदिर आ जाते हैं. इस दौरान उपयोग होने वाला भगवान का रथ भी खास होता है. अगर आप भी भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने जा रहे हैं, तो जानिए क्या है इस रथ की विशेषता और महत्व.
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Jagannath Rath Yatra: क्या है रथ का महत्व
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जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग रथों पर सवार होते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है,जो लाल और पीले रंग का है. इस रथ की ऊंचाई करीब 45.5 फीट होती है. प्रभु श्री जगन्नाथ के रथ की विशेषता है कि इसे बनाने में न कोई कील का उपयोग होता है न किसी धातु का. यह रथ केवल नीम की लकड़ी से बना होता है. अक्षय तृतीया के दिन से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है. भगवान के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं. यह रथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथ से आकर में थोड़ा बड़ा होता है.
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Jagannath Rath Yatra: सोने की झाड़ू से रथ साफ होता है
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प्रभु जगन्नाथ का रथ काफी खास होता है. बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर रथ को बनाने के लिए लकड़ियों का चयन किया जाता है. एक बार जब रथ बनकर तैयार हो जाते हैं तो सबसे पहले इनकी पूजा पुरी के राजा द्वारा की जाती है. राजा सोने की झाड़ू से रथ और रथ यात्रा के रास्ते को साफ करते हैं. इसके बाद रथ यात्रा शुरू होती है. लोगों का मानना है कि प्रभु श्री जगन्नाथ के रथ यात्रा में शामिल होने से कई यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है. हर साल लाखों लोग जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने देश-विदेश से आते हैं.
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