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Bihar Tourist Destinations: सिल्क सिटी भागलपुर  भी है बिहार का एक प्रमुख पर्यटन स्थल, जरूर घूमें इन जगहों पर

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Bihar Tourist Destinations, Silk City Bhagalpur Tour: भागलपुर रेशम उद्योग अब 200 वर्ष से अधिक पुराना है और रेशम को टसर सिल्क के नाम से जाना जाता है. आज भागलपुर को शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है. भागलपुर में घूमने लायक कई पर्यटन स्थल हैं. यहां जानें भागलपुर में कहां कहां घूमें.

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Bihar Tourist Destinations, Silk City Bhagalpur Tour:  आधुनिक बिहार में भागलपुर को सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता है. इसके प्रसिद्ध रेशमी कपड़े आज एक बार फिर सुर्खियों में हैं. इस बढ़िया रेशम को बनाने में कई पीढ़ियाँ शामिल रही हैं. रेशम बुनाई की कला को लुप्त होने से बचाने के लिए सरकार ने शहर में संस्थान स्थापित किए हैं. भागलपुर रेशम उद्योग अब 200 वर्ष से अधिक पुराना है और रेशम को टसर सिल्क के नाम से जाना जाता है. आज भागलपुर को शिक्षा के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है. भागलपुर में घूमने लायक कई पर्यटन स्थल हैं. यहां जानें भागलपुर में कहां कहां घूमें.

जयप्रकाश उद्यान भागलपुर – Jaiprakash Udyan Bhagalpur

जयप्रकाश उद्यान भागलपुर का एक मुख्य पर्यटन स्थल है. यह उद्यान भागलपुर शहर में पुलिस लाइन के पास स्थित है. यह उद्यान बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है और इस उद्यान में आपको क्रिकेट ग्राउंड, फुटबॉल ग्राउंड, वॉलीबॉल ग्राउंड देखने के लिए मिल जाता है, जिसमें सभी लोग खेल सकते हैं. इस पार्क में बहुत सारे पेड़ पौधे लगे हुए हैं. यहां पर हरियाली देखने के लिए मिलती है. पार्क में बहुत सारे जानवर भी देखने के लिए मिल जाते हैं.

मंदार हिल भागलपुर

बिहार के भागलपुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर बसे बांका जिले में ‘मंदार पर्वत’ स्थित है. मंदार पर्वत हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थलों में से एक है. मंदार पर्वत को तीन धर्मों का संगम कहा जाता है. हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और सफा धर्म को मानने वाले लोगों के लिए भी यह एक बड़ा तीर्थ स्थल है.

700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं. मंदार पर्वत से संबंधित एक कथा यह भी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे. बताया जाता है कि इस पहाड़ से देवता और असुर दोनों ने मिलकर मथनी की तरह महके रत्नों के साथ अमृत प्राप्त किया था.

प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय

भागलपुर का प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय एक अद्भुत आकर्षण है, जो शहर की सीमा से लगभग 38 किमी दूर विक्रमशिला नामक शहर में स्थित है. धर्मपाल द्वारा स्थापित, जो पाल राजवंश का एक धर्मनिष्ठ राजा था और जिसे परमसुगत के नाम से भी जाना जाता था, यह एक शिक्षा केंद्र है जो तांत्रिक बौद्ध धर्म सिखाता है. गंगा और कोसी नदियों के संगम पर स्थित चट्टानी पहाड़ी विश्वविद्यालय को सुंदर वातावरण प्रदान करती है और इस स्थल पर लगभग 108 छोटे मंदिर भी हैं. आपको यहां छठी शताब्दी ईस्वी की याद दिलाने वाली कई चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तियां और गुफाएं भी दिखाई देंगी.

कर्नलगंज रॉक कट मंदिर

कर्नलगंज के चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर भागलपुर में पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षणों में से एक हैं. सुल्तानगंज शहर के पश्चिम में लगभग 8 किमी दूर स्थित मंदिरों पर आपको चट्टानों पर की गई ये नक्काशी गुप्त राजवंश के काल से चली आ रही है. इन नक्काशियों में कई बौद्ध, जैन और हिंदू देवताओं को चित्रित किया गया है. आगंतुकों को इन मंदिरों में कलात्मक रूप से की गई कई नक्काशी भी देखने को मिलेगी, जिन्हें विभिन्न शहरों से खोदकर निकाला गया है, जिनमें बिहार के कहलगांव और सुल्तानगंज शामिल हैं. संभव है कि ये नक़्क़ाशी सम्राट अशोक के समय की हो.

महर्षि मेंहीं आश्रम

महर्षि मेंही परमहंस, जिन्हें गुरुमहाराज के नाम से भी जाना जाता है, ने वेदों और उपनिषद के अलावा भगवद गीता के साथ-साथ पवित्र बाइबिल का भी अध्ययन किया और संत मत परंपरा में एक संत थे. वह बौद्ध धर्म और कुरान के भी अच्छे जानकार थे. उन्होंने सत्संग और ध्यान की मदद से मोक्ष प्राप्त करने की सबसे आसान विधि का प्रचार किया. यूपी के मुरादाबाद के बाबा देवी साहब के प्रत्यक्ष शिष्यों में से एक, वे अखिल भारतीय संतमत सत्संग के मुख्य गुरु थे. 28 अप्रैल 1885 को बिहार के एक छोटे से गाँव मझुआ में जन्मे महर्षि मेंही भगवान शिव के गहन उपासक थे. जब ऋषि दसवीं कक्षा में पढ़ रहे थे तभी उन्होंने गृहस्थ जीवन छोड़ दिया.

रवीन्द्र भवन

रवीन्द्र भवन का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा है. यह भागलपुर से केवल 4.7 किमी दूर सिटानाबाद में स्थित है और इस जगह के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है. यह स्मारक टिल्हा कोठी के नाम से जाना जाता था और यह भी भागलपुर विश्वविद्यालय से जुड़ी विभिन्न इमारतों में से एक है. एक टीले की चोटी पर स्थित यह इमारत वाकई खूबसूरत है. यह इमारत महत्वपूर्ण हस्तियों से जुड़ी है जिनमें क्लीवलैंड, हेस्टिंग्स और अवध के राजा चेत सिंह शामिल हैं. लेकिन, जिस मुख्य व्यक्तित्व के नाम पर इस इमारत का नाम रखा गया है, वह निश्चित रूप से रबींद्रनाथ टैगोर हैं, जिन्होंने 1910 में इस स्थान का दौरा किया था और यहां रुके थे. यह समझा जाता है कि कवि पुरस्कार विजेता ने टिल्हा कोठी में रहते हुए गीतांजलि के कुछ छंद लिखे थे. प्रवेश निःशुल्क है. यह स्थान रविवार को बंद रहता है.

राजमहल जीवाश्म अभयारण्य

राजमहल जीवाश्म अभयारण्य झारखंड राज्य के संथाल परगना में भागलपुर से लगभग 117 किमी दूर राजमहल पहाड़ियों में स्थित है. ये पहाड़ियाँ प्रागैतिहासिक पौधों के जीवाश्मों का घर हैं जो 68 से 145 मिलियन वर्ष पुराने हैं. लखनऊ में पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान इन जीवाश्मों का संरक्षक है. इन पहाड़ियों को कवर करने वाला क्षेत्र संथालों द्वारा बसा हुआ है और लगभग 2600 वर्ग किमी में फैला हुआ है. पहाड़ियाँ और उनके आस-पास का क्षेत्र जुरासिक युग के दौरान हुई गंभीर ज्वालामुखीय गतिविधि का परिणाम था और आज आप गंगा नदी को इन पहाड़ियों के आसपास घूमते हुए पाएंगे, भले ही यह पूर्व से दक्षिण की ओर प्रवाह की दिशा बदलती हो.

घंटा घर भागलपुर

शहर के मध्य भाग में स्थित घंटा घर प्राचीन काल में इसका निर्माण समय वाहिनी के लिए बनाया गया था तब इसके बजने की आवाज करीब 15 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती थी और इसी से वहां के स्थानीय गांव के निवासी समय का आकलन किया करते थे . लेकिन आज के समय में यह जगह बाजार के रूप में तब्दील हो चुका है और ये भागलपुर सिटी का मुख्य मार्किट के रूप में उभर कर सामने आया यह पर्यटन दृष्टि से भी काफी ज्यादा लोकप्रिय है खास कर फोटोग्राफी के शौकीन लोगो के लिए बेस्ट लोकेशन है .

गुरान शाह पीर बाब की दरगाह

परी चौक के पास स्थित पीर बाबा की यह दरगाह धार्मिक दृष्टि से काफी ज्यादा प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर हिंदू ,मुस्लिम , सिख , इसाई सभी धर्मों के लोग श्रद्धा भक्ति भाव से एक साथ जुट होकर बाबा पीर की दरगाह में चादर चढ़ाने के लिए आते हैं. यह स्थान धर्म के लोगों को भाईचारे और एकजुट रहने का सन्देश देता है इसी कारण यहाँ हर समय काफी भीड़ देखी जाती है .

विक्रमशिला सेतु

भागलपुर के पास विक्रमशिला सेतु गंगा नदी पर एक पुल है. इस पुल का नाम विक्रमशिला के प्राचीन महाविहार के नाम पर रखा गया है, जिसे राजा धर्मपाल ने स्थापित किया था, जो 783 और 820 ईस्वी के बीच रहे थे. यह देश में पानी पर बना पांचवां सबसे लंबा पुल है और इसकी लंबाई 4.7 किमी है. इसे वर्ष 2001 में खोला गया था और कंक्रीट से बना यह 2-तरफ़ा पुल है. यह पुल गंगा नदी के उत्तरी तट पर नौगछिया को उसके दक्षिणी तट पर बरारी घाट से जोड़ता है, इसके अलावा भागलपुर को कटिहार और पूर्णिया से जोड़ता है, जिससे भागलपुर और नदी के आसपास के अन्य शहरों के बीच सड़क यात्रा का समय काफी कम हो जाता है.

पर्यटन स्थलों की विशेषता

बता दें कि विक्रमशिला महाविहार कहलगांव के अंतीचक स्थित ऐतिहासिक स्थल है. वर्तमान में इसका भग्नावशेष है. इसका परिसर भारत सरकार की देखरेख में है. नाथनगर स्थित जैन मंदिर दुनिया भर के जैन धर्मावलंबियों के लिए आस्था का केंद्र है. यहां कई देशों से श्रद्धालु व संतों का आवागमन होते रहता है. कहलगांव स्थित बटेश्वर स्थान बाबा भोलेनाथ का मंदिर है और यह गंगा के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है. काफी संख्या में पर्यटकों व श्रद्धालुओं का यहां हर दिन आवागमन होता है.

तेतरी दुर्गा मंदिर भागलपुर

तेतरी दुर्गा मंदिर भागलपुर का एक प्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर भागलपुर में नौगछिया तहसील में तेतरी में स्थित है. यह मंदिर बहुत सुंदर है. यह मंदिर बहुत ही भव्य तरीके से बना हुआ है. मंदिरों के गर्भ गृह में माता की भव्य मूर्ति के दर्शन करने के लिए मिलते हैं. आप यहां पर घूमने के लिए आ सकते हैं. नवरात्रि में यहां पर बहुत ज्यादा भीड़ रहती है.

डॉल्फिन ऑब्जर्वेटरी साइट भागलपुर

डॉल्फिन ऑब्जर्वेटरी साइट भागलपुर का एक मुख्य स्थल है. यहां पर गंगा नदी के किनारे डॉल्फिन ऑब्जर्वेटरी साइट देखा जा सकता है. यहां पर आप बैठकर गंगोय डॉल्फिन को देख सकते हैं. यह भारत की पहली ऑब्जर्वेटरी है और गंगोय डॉल्फिन यहीं पर पाई जाती है. गंगोय डॉल्फिन एक संकटग्रस्त प्रजाति है और सांस लेने के लिए, गंगोय डॉल्फिन पानी की सतह पर आती है. आप इसे आसानी से देख सकते हैं. यहां पर इनका संरक्षण किया जाता है.

बटेश्वर स्थान में ऋषि-मुनियों की ऐतिहासिक गुफाएं

बटेश्वर स्थान में ऋषि-मुनियों की ऐतिहासिक गुफाएं आकर्षण का केंद्र हैं. अजगैबीनाथ मंदिर के घाट से हर साल श्रावणी मेला में लाखों शिवभक्त जल लेकर बाबाधाम जाते हैं. दुनिया के सबसे लंबे मेले की शुरुआत यहीं से होती है. नाथनगर स्थित कर्णगढ़ में वर्तमान में पुलिस ट्रेनिंग स्कूल संचालित होता है. सुलतानगंज स्थित नमामि गंगे घाट का निर्माण इसी वर्ष कराया गया है.

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