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अयोध्या में क्या निषाद राज के वंशज के घर पहुंचे पीएम मोदी ? जानिए प्रभु राम और निषाद राज की कथा

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प्रभु राम की नगरी अयोध्या में रामलला का भव्य मंदिर निर्माण होना अद्भुत अनुभूति दे रहा है. अयोध्या दौरे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक एक निषाद परिवार में पहुंचे और उनके घर चाय- पानी ग्रहण किया.कहा जा रहा है कि अयोध्या के जिस निषाद परिवार से पीएम मिलने पहुंचे वे निषाद राज के वंशज हैं. .

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PM Modi Ayodhya Visit : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या दौरे के दौरान एक निषाद परिवार मीरा मांझी के घर पहुंचे और कुछ वक्त बिताया उनके साथ चाय पीने के साथ बातचीत की. कहा जा रहा है जिस निषाद परिवार के घर प्रधानमंत्री पहुंचे थे.उनके पूर्वजों ने ही वनवास के वक्त भगवान राम और माता सीता को सरयू नदी पार करवाई थी. दरअसल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम, जिनका नाम ही संसार के भव सागर को पार करने की अद्भुत शक्ति देता है. अयोध्या में राजा दशरथ के जन्मे प्रभु राम का पूरा जीवन एक आदर्श है. रघुकुल में अवतरित श्री राम ने जीवन भर मर्यादा का पालन करते हुए प्राण जाए पर वचन ना जाये की परंपरा निभाई. हिन्दू धर्म में, श्री राम, श्री विष्णु के 10 अवतारों में से सातवें अवतार हैं उनकी माता का नाम कौशल्या और पिता का नाम दशरथ था. भगवान श्री राम का अपने भाईयों भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण के प्रति प्रेम मानव जाति के लिए अनुकरणीय है. भगवान श्रीराम और सीता जी की जोड़ी को आज भी एक आदर्श जोड़ी माना जाता है लव और कुश उनके दो पुत्र थे. श्रीहनुमान तो भगवान श्रीराम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं.

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श्री राम अवतार में विष्णु जी ने एक पुत्र, भाई, पति और मित्र के आदर्श गुणों को सबके सामने रखा. एक आदर्श पुत्र जिसने पिता के एक वचन को निभाने के लिए राजपाट को त्याग कर वनवास का मार्ग चुना और 14 वर्ष का वनवास काटा . आदर्शपत्नी का उदाहारण पेश करते हुए पति के साथ पत्नी सीता ने भी वनवास काटा. प्रभु श्री राम जो सबकी जीवन नैया पार लगाते हैं. वैसे भगवान श्रीराम को वनवास जाते समय केवट ने नदी पार करायी थी श्री राम जब माता सीता के साथ वनवास पर जा रहे थे तब नदी तट पर पहुंचने के बाद उनकी निषाद राज से मुलाकात हुई. निषाद राज ने भक्ति भाव से भगवान के चरण धोए और अपनी नाव पर बैठाकर नदी पार कराई . इस प्रसंग के बारे में श्रीरामचरित मानस में लिखा है कि-


मांगी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।

मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥

चरन कमल रज कहुँ सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥

छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई॥

तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई॥

एहिं प्रतिपालउँ सबु परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू॥

जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥

पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं।

मोहि राम राउरि आन दसरथसपथ सब साची कहौं॥

बरु तीर मारहुँ लखनु पै जब लगि न पाय पखारिहौं।

तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं॥

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रामचरितमानस का प्रसंग है जब भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास हुआ था और प्रभु राम ,देवी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ सरयू नदी पार करने के लिए नाव से उस पार जाने के लिए केवट से कहते हैं तब केवट ने तीनों लोकों के पालनहार की नैया पार लगाई थी. वे केवट थे यानी नाव खेने वाले. केवट ने उन्हें देख कर ही समझ लिया कि ये तो प्रभु श्रीराम हैं वे कहने लगे कि आपके चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी बूटी है. जिसके छूते ही पत्थर की शिला स्त्री हो गई ;मेरी नाव तो काठ की है हे नाथ! मैं चरण कमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा, मैं आपसे कुछ उतराई नहीं चाहता. वे कहते हैं जब तक मैं पैरों को पखार न लूँगा, तब तक हे कृपालु! मैं नदी के उस पार नहीं उतारूँगा .केवट के प्रेम भरे वचन सुनकर कृपालु भगवान रामचन्द्र भी मुस्कुरा उठे और वहीं किया जो भक्त की भावना थी .निषादराज ने श्री रामचन्द्रजी की आज्ञा पाकर अत्यन्त आनंद और प्रेम से कठोत लाकर भगवान के चरणकमल धोएं. चरणों को धोकर और सारे परिवार सहित स्वयं उस जल को पीकर अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनंदपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्रजी को सीता, लक्ष्मण सहित बैठाया और नदी पार करायी. करुणा निधान भगवान श्री रामचन्द्रजी ने निर्मल भक्ति का वरदान देकर उसे विदा किया।

कौन थे निषादराज 

रामायण के अयोध्याकाण्ड में निषादराज केवट का वर्णन किया हुआ है. निषादराज गुह मछुआरों और नाविकों के राजा थे. उनका ऋंगवेरपुर में राज था.उन्होंने प्रभु श्रीराम को नदी पार कराया था. वनवास के बाद श्रीराम ने अपनी पहली रात उन्हीं के यहां बिताई थी.

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