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Life Vs Hope: 30 मिनट तक बंद रहा दिल, मौत के मुंह से मरीज की जान खींच लाये डॉक्टर, जानिए कैसे

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Life Vs Hope: अमेरिका के क्लीवलैंड क्लिनिक से ट्रेनिंग करने के बाद दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आए डॉ. रमाकांत पांडा ने एक चौंका देने वाली घटना के बारे में बताया.

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Life Vs Hope: शरीर जिंदगी की जंग हार सकती है, लेकिन डॉक्टर आखिरी कोशिश करने से नहीं कतराते हैं. वह हर मरीज को बचाने की हर संभव कोशिश करते हैं. इसीलिए डॉक्टर को धरती का भगवान कहा जाता है. ऐसी ही एक चौंका देने वाली घटना के बारे में अमेरिका के क्लीवलैंड क्लिनिक से ट्रेनिंग करने के बाद दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आए डॉ. रमाकांत पांडा ने बताया है. उन्होंने बताया कि एक मरीज का दिल पूरी तरह से बंद हो चुका था. उसकी सांसें रुक गई थीं. सभी ने सोच रहे थे कि वह मरीज मर गया. बचने की 1 फीसदी संभावना के बीच उसकी सर्जरी की.

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30 मिनट तक बंद रहा दिल

टाइम्स एंटरटेनमेंट के मुताबिक, मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में 1990 के दशक में 51 वर्षीय आईएएस अधिकारी पृथ्वीराज मोहन सिंह बायस एडमिट हुए थे. उनकी एंजियोप्लास्टी के दौरान गंभीर समस्या हो गई थी। उनका हार्ट 30 मिनट के लिए बंद हो गया था. सांसे रुक गई थीं. ऐसे में दो सीनियर डॉक्टर ने सर्जरी से मना भी कर दिया था. लेकिन डॉ. रमाकांत पांडा ने उम्मीद नहीं छोड़ी.

न्यूनतम संभावनाओं के बीच शुरू किया इलाज

डॉ. रमाकांत पांडा को मालूम था कि कार्डियक अरेस्ट के बाद तीन मिनट से ज्यादा वक्त तक दिमाग को खून नहीं मिला तो स्थायी रूप से क्षति हो सकती है. अगर दिल को बचा भी लिया जाए तो मरीज को नहीं बचा सकते हैं. ऐसे में उन्होंने आईएएस अधिकारी के परिवार को बचने की न्यूनतम संभावनाओं के बारे में बताकर सर्जरी की तैयारी में जुट गए. इस दौरान जब कैथीटेराइजेशन लैब से ओटी की तरफ गए तो उन्हें एहसास हुआ कि ऑपरेशन की तैयारी करने में करीब 30 से 60 मिनट लग जाएंगे. लेकिन इस काम को 10 मिनट के अंदर ही करना था. जब ऑपरेशन शुरू हुआ तो दिल धड़कना बंद कर दिया था. ऐसे में नर्स ने करीब 15 मिनट तक हाथ से दिल को दबाकर खून के फ्लो को बनाए रखा. जब हार्ट, लंग की मशीन को मरीज से जोड़ा गया। फिर ब्लॉकेज हटाने की बाईपास सर्जरी शुरू की गई. उस समय यह सर्जरी एक नई तकनीक थी, ज्यादा डॉक्टर इस काम को करने में सक्षम नहीं थे.

सर्जरी के बाद भी हालत रही गंभीर

डॉक्टर ने बताया कि सर्जरी हो जाने के बाद भी मरीज की हालत गंभीर थी. तीन महीने तक उनकी 24 घंटे देखभाल की गई. लेकिन डॉक्टरों की कोशिश नाकाम नहीं हुई. उनकी मेहनत रंग लाई. वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गए. इसके बाद उन्होंने बृहन्मुंबई नगर निगम में बतौर संयुक्त आयुक्त काम किया. आज तीन दशक के बाद वह अपने बच्चों, पोते-पोतियों के साथ खुशहाली से जीवन बिता रहे हैं.

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