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Textiles and Fabrics of Ancient India : प्रागैतिहासिक काल से मौजूद है भारत में वस्त्र पहनने का चलन

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भारत के वस्त्रों की कहानी दुनिया की सबसे पुरानी कहानियों में से एक है तथा यह प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है.

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भारत में textile, यानी वस्त्रों का इतिहास अत्यधिक प्राचीन है. यहां प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric period) से वस्त्रों का चलन है. Mesolithic era (मध्यपाषाण युग) की गुफा चित्रकारियों में कमर पर पहनने वाले परिधानों को दर्शाती पेंटिंग्स मिली हैं. हालांकि वस्त्र उत्पादन और उपयोग के ठोस साक्ष्य तीसरी सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व (third millennium BCE (2001 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व)) में ही दखने को मिलते हैं. हड़प्पा और चन्हूदड़ो में जंगली सिल्क मोथ स्पेसिज के evidence मिले हैं. इससे पता चलता है कि थर्ड मिलेनियम बीसीई के मध्य में रेशम का उपयोग होता था. यह दुखद है कि प्राचीन भारतीय टेक्सटाइल मैन्युफक्चरिंग से संबंधित कोई भी ठोस सबूत नहीं बचे हैं, परंतु, पुरातात्विक खोज और साहित्यिक संदर्भों में इस बात के ठोस सबूत मिलते हैं. एक नजर उन सबूतों पर जो विभिन्न काल खंडों से जुड़े हैं…

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2000 ईसा पूर्व

  • मेहरगढ़ (वर्तमान पाकिस्तान) साइट से कपास के रंगे हुए टुकड़े प्राप्त हुए हैं.

2600-1900 ईसा पूर्व

  • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में जंगली देशी रेशम कीट की प्रजाति पायी गयी है, इससे पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता में रेशम का उपयोग होता था.
  • मोहनजोदड़ो की site पर हुई खुदाई में, चांदी के बर्तन पर लिपटे, बुने और मजीठ (हर्बल डाई) से रंगे हुए, कपास के टुकड़ों के साथ रंजक कुंड (Dye Tank) भी मिला है. इससे पता चलता है कि यहां कपड़ों पर पक्का रंग चढ़ाने की प्रक्रिया की समझ काफी एडवांस थी.
  • मोहनजोदड़ो में हुई खुदाई में कपास के टुकड़े भी मिले हैं.
  • हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ो, लोथल, सुरकोतदा और कालीबंगा जैसी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी साइटों से पत्थर, चिकनी मिट्टी, धातु, टेराकोटा और लकड़ी के तकली चक्रों के सबसे पुराने नमूने मिले हैं. माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के दौरान commercial crops में cotton का प्रमुख स्थान था.
  • हड़प्पा स्थलों से सुईयां भी पायी गयी हैं जो इस बात का संकेत हैं कि इस दौरान सिलाई करने की कला विद्यमान थी.

2500 से 1900 ईसा पूर्व

  • मोहनजोदड़ों की साइट से पुरोहित-नरेश की चोगा पहने मूर्ति मिली है, जिस पर तिपतिया, यानी तीन पत्तियों वाले फूल उकरे गये हैं. जो बताते हैं कि सिंधु-घाटी सभ्यता में कढ़ाई अथवा बिना कढ़ाई वाला चोगा पहनने का चलन था.
  • खुदाई में मुहरों, तख्तियों और ताबीजों पर नावों के चित्र मिले हैं, जो इस बात का संकेत करते हैं कि सिंधु-घाटी सभ्यता के दौरान समुद्र के रास्ते व्यापार होता था.
  • वहीं लोथल साइट पर एक डॉकयार्ड मिला है, जो सिंधु-घाटी सभ्यता में व्यापार होने का प्रमाण है.
  • मेसोपोटामिया के लेखों में मेलूहा (सिंधु घाटी सभ्यता का सुमेरी नाम) से मेसोपोटामिया भेजे गये कपड़ों का संदर्भ मिलता है.

1500 से 500 ईसा पूर्व

  • ऋग्वेद में बुनाई का उल्लेख है, जिनसे प्राचीन भारत के टेक्सटाइल हिस्ट्री के विकास का पता चलता है. ऋग्वेद में एक बनुकर को वसोवाया कहा गया है. तब पुरुष बुनकर को वय और स्त्री बुनकर को वयित्री कहा जाता था. ऋग्वेद में मुख्य रूप से दो परिधान, वास अथवा निचला परिधान और अधिवास अथवा ऊपरी परिधान का उल्लेख है.
  • वैदिक ग्रंथों में कढ़ाई का भी उल्लेख है, जो संभवत: नर्तकियों द्वारा पहने जाने वाले पेशस् या कढ़ाई वाले वस्त्र प्रतीत होते हैं.
  • वैदिक युग के ग्रंथ, ‘आपस्तम्ब श्रौतसूत्र’ में चित्रंत, अथवा printed fabric का उल्लेख है. तब ब्राह्मणों द्वारा पहना जाने वाला यज्ञोपवित कपास के सूत का बना होता था.
  • उत्तरकालीन संहिताओं में, निवी, अथवा अंत:वस्त्र (undergarment), शब्द का भी उपयोग किया गया है. इन संहिताओं में ‘अत्क’ को बुने हुए और सही नाप के बने परिधान के रूप में वर्णित किया गया है.
  • उत्तरकालीन संहिताओं व ब्राह्मण में ऊर्णा सूत्र (ऊनी धागों) का निरंतर उल्लेख है. यहां ऊर्णा का अर्थ भेड़ का ऊन और बकरी का बाल बताया गया है.

To be continued…

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