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Janmashtami: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और मटकी फोड़ने की रोमांचक परंपरा

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Janmashtami: जानिए कैसे इस त्यौहार में बच्चों और बड़ों के लिए खास परंपराएं निभाई जाती हैं और क्या है मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता का महत्व

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Janmashtami: जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. यह त्यौहार हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था, और उन्हें विष्णु जी का आठवां अवतार माना गया है. यह त्यौहार हमें भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से सीखने और उनके आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देता है. आइए जानते हैं मटकी फोड़ने की परंपरा के बारे में

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जन्माष्टमी की रात का महत्व

कृष्णजी का जन्म आधी रात को हुआ था, इसलिए जन्माष्टमी की रात का बहुत अधिक महत्व है. इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में रातभर जागरण होता है, और भगवान कृष्ण की मूर्तियों को सजाया जाता है. रात के बारह बजते ही भगवान के जन्म का उत्सव शुरू होता है. इस समय भजन-कीर्तन होते हैं, मंदिरों में विशेष आरती होती है, और भगवान के जन्म का उत्सव पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है.

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मटकी फोड़ने की परंपरा

जन्माष्टमी का जश्न मटकी फोड़ने के बिना अधूरा है. मटकी फोड़ने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल से जुड़ी है. जब वे छोटे थे, तो अपने दोस्तों के साथ मक्खन चुराने के लिए मटकी फोड़ दिया करते थे. इस परंपरा को ‘दही-हांडी’ के नाम से जाना जाता है. इस पर्व के अवसर पर लड़कों की टोली मटकी फोड़ने की प्रतियोगिता में भाग लेती है. ऊंचाई पर बंधी मटकी को फोड़ने के लिए एक लड़का दूसरे लड़के के कंधे पर चढ़ता है और यह खेल तब तक चलता है जब तक मटकी टूट नही जाती

मटकी फोड़ने की तैयारी

मटकी फोड़ने की तैयारी बहुत उत्साह से की जाती है। इसमें लड़कों की टोली, जिसे ‘गोविंदा’ कहा जाता है, एक पिरामिड बनाकर मटकी तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. यह खेल सिर्फ मजेदार नहीं होता, बल्कि इसमें टीम वर्क, संतुलन और धैर्य का भी होता है. मटकी के अंदर दही, मक्खन, और अन्य चीजें भरी जाती हैं, और इसे तोड़ने वाला गोविंदा जीतता है. और पूरे माहौल में उत्साह और खुशी का माहौल होता है.

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