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बिपिन रावत हेलीकॉप्टर हादसा: नीलगिरी की पहाड़ी श्रृंखला के बीच हेलीकॉप्टर चलाना क्यों है जोखिम भरा काम ?

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बिपिन रावत हेलीकॉप्टर हादसा: तमिलनाडु के कुन्नूर में बुधवार को वायुसेना का एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. यह घटना नीलगिरी पहाड़ी इलाके में हुई. जानें क्यों हेलीकॉप्टर या चॉपर चलाने के लिए नीलगिरी पर्वत श्रृंखला खतरनाक है.

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Army Helicopter Crash in Kannur : तमिलनाडु के कुन्नूर में बुधवार को वायुसेना का एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसमें चीफ ऑफ डिफेंस जनरल बिपिन रावत अपने स्टाफ, सेना के उच्च अधिकारियों और परिवार के सदस्यों के साथ सवार थे. हेलीकॉप्टर के गिरते ही उसमें आग लग गई. हेलीकॉप्टर के अंदर दो पायलट मिलाकर कुल 14 लोग सवार थे. यह घटना नीलगिरी हिल क्षेत्र में घटी. यह पहली घटना नहीं जब इस क्षेत्र में ऐसा हादसा हुआ है. पढ़ें क्यों खतरनाक है हेलीकॉप्टर या चॉपर चलाने के लिए नीलगिरी पर्वत श्रृंखला.

हादसा कहां हुआ?

हादसा तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में हुआ. यह घने जंगलों वाला इलाका है, इसे ‘क्वीन ऑफ हिल स्टेशन’ भी कहते हैं. सेना का हेलीकॉप्टर कोयंबटूर और सुलूर के बीच दुर्घटनाग्रस्त हुआ. इस हेलीकॉप्टर ने सुलूर से उड़ान भरी थी.

नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में क्यों कठिन होता है हेलीकॉप्टर चलाना

नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र बहुत ही नुकीले पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है. ऐसे में इन क्षेत्रों में उड़ान भरने के दौरान रडार से संपर्क टूटता रहता है और हेलीकॉप्टर चलाने के लिए पायलट को अपनी आंखों और अनुभव पर ज्यादा भरोसा करना होता है. ऐसे में एक चूक बड़े हादसे का रूप ले लेता है. दरअसल हेलीकॉप्टर हो या हवाई जहाज हो उन्हें उड़ान भरने के बाद समय-समय पर जमीन पर रडार स्टेशन के संपर्क में रहना जरूरी होता है. दिन हो या रात हो ये जरूरत लगातार बनी रहती है. इसी पायलट को सही रास्ते में उड़ान भरने के निर्देश मिलते रहते हैं.

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पहाड़ी श्रृंखला के बीच कठिन होता है रडार से संपर्क बनाना

सभी हवाई जहाज आसमान में लगभग 25000-35000 फीट या उससे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं. इतनी उंचाई पर रहने के कारण वे हमेशा से उस प्रदेश की पहाड़ियों की चोटी के काफी उपर से उड़ान भरते हैं. इस ऊंचाई से जमीन पर रडार स्टेशन से संपर्क बनाना सहज हो जाता है. राडार की लहर सीधी रेखा में चलती है. लेकिन हेलीकाप्टर हवाई जहाज के जैसे बहुत ज्यादा उंचाई पर नहीं उड़ सकता. इसे पहाड़ियों की चोटियों के बीच से उड़ान भरना होता है. इतना ही नहींपहाड़ी के किसी भी खाई में बहूत छोटी जगह पर उतरना भी पड़ता है. ऐसी जगहों में रडार से संपर्क टूटता रहता है.

हेलीकॉप्टर की उड़ान की अधिकतम ऊंचाई 3000-3500 मीटर से भी कम

ऐसा ही नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में भी है. यहां हेलीकॉप्टर बीच चोटियों से उड़ान भरते समय पहाड़ी के कारण सीधी रेखा से रडार स्टेशन से संपर्क नहीं बना पाते हैं. हेलीकॉप्टर दिन में उड़ान भरते समय जबतक मुमकिन है तबतक जमीन के रडार स्टेशन से संपर्क में रहते हैं लेकिल पहाड़ियों के बीच पायलट को अपनी आंखों के भरोसे हेलीकॉप्टर उड़ाना पड़ता है. यही चीज रात में या धुंध में मुमकिन नहीं हो पाता और इस समय हेलीकॉप्टर चलाना कठिन हो जाता है. नीलगिरी पहाड़ी श्रृंखला में अक्सर धुंध का भी सामना करना पड़ता है. नीलगिरी पर्वत श्रृंखला नुकीली पहाड़ियों के के कारण अप एंड डाउंस वाले हैं. जबकि हेलीकॉप्टर की उड़ान अधिकतम ऊंचाई 3000-3500 मीटर या इससे भी कम ही होती है.

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नीलगिरि पर्वत श्रृंखला मेंं हैं कई नुकीले शिखर जानें…

नीलगिरि पर्वतों की श्रेणी के बारे में बात करें तो यह दक्षिण भारतीय राज्यों अर्थात् कर्नाटक और केरल के जंक्शन पर स्थित है. यह पश्चिमी घाट का एक हिस्सा है. पहाड़ों की इस श्रेणी को ‘नीलगिरि हिल्स’ या ‘द क्वीन ऑफ हिल्स’ या ‘ब्लू माउंटेंस’ के नाम से भी जाना जाता है. नीलगिरि पर्वत की एक श्रृंखला है जिसमें कई नुकीले शिखर हैं जिन्हें चोटियां कहा जाता है. पहाड़ियों या उनकी संबंधित चोटियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इस रेंज की सबसे ऊंची चोटी डोड्डाबेट्टा है.

डोड्डाबेट्टा चोटी : इसकी ऊंचाई लगभग 2,637 मीटर (8,652 फीट) है.

स्नोडोन : स्नोडन की ऊंचाई लगभग 2,530 मीटर (8,301 फीट) है.

देवशोला : डोड्डाबेट्टा रेंज के दक्षिण में देवशोला नामक नीलगिरी पर्वत श्रृंखला की एक और चोटी है. इसकी ऊंचाई लगभग 2,261 मीटर (7,418 फीट) है.

कुलकोम्बाई : कुलकोम्बाई देवाशोला के पूर्व में स्थित है. इस चोटी की ऊंचाई लगभग 1,707 मीटर (5,600 फीट) है.

हुलीकल दुर्ग : हुलिकल दुर्ग कुन्नूर से लगभग 3 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है. इसे बकासुर पर्वत के नाम से भी जाना जाता है. इसकी ऊंचाई लगभग 562 मीटर (1,844 फीट) है.

कुन्नूर बेट्टा : कुन्नूर बेट्टा की अनुमानित ऊंचाई लगभग 2,101 मीटर (6,893 फीट) है. इसे टेनेरिफे के दूसरे नाम से भी जाना जाता है.

रलिया पहाड़ी : उधगमंडलम और कोटागिरी से रैलिया हिल लगभग बराबर है. विशेष रूप से, यह एक आरक्षित वन के बीच में स्थित है और इसकी ऊंचाई लगभग 2,248 मीटर (7,375 फीट) है.

दीमहट्टी हिल : दीमहट्टी हिल गजलहट्टी दर्रे के ऊपर स्थित है. दीमहट्टी पहाड़ी की अनुमानित ऊंचाई लगभग 1,788 मीटर (5,866 फीट) है.

हिमस्खलन हिल : एवलांच हिल कुडिक्कडु और कोलारिबेटा की दो चोटियों के लिए जाना जाता है. कुडिक्कडु की ऊंचाई लगभग 2,590 मीटर (8,497 फीट) है, जबकि कोलारिबेटा की ऊंचाई लगभग 2,630 मीटर (8,629 फीट) है.

डर्बेटा हिल : डर्बेटा हिल और कोलीबेट्टा (ऊंचाई: 2,494 मीटर (8,182 फीट)), औश्टेरोनी घाटी के दक्षिण में, कुंडाह रेंज की एक निरंतरता है.

मुकुर्ती चोटी : मुकुर्ती चोटी की ऊंचाई लगभग 2,554 मीटर (8,379 फीट) है.

मुत्तुनडु बेट्टा : मुत्तुनडु बेट्टा उधगमंडलम के उत्तर पश्चिम में लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है. इसकी ऊंचाई लगभग 2,323 मीटर (7,621 फीट) है.

ताम्रबेटा: ताम्रबेटा लगभग 8 किमी की दूरी पर उधगमंडलम से दक्षिण-पूर्व में स्थित है. इसकी ऊंचाई लगभग 2,120 मीटर (6,955 फीट) है.

वेल्लनगिरि : वेल्लानगिरि की ऊंचाई लगभग 2,120 मीटर (6,955 फीट) है. वेल्लंगिरी का अन्य नाम सिलवरी हिल है.

सेना का सबसे सुरक्षित हेलीकॉप्टर है Mi-17V5

भारतीय सेना का Mi-17V5 सबसे सुरक्षित हेलीकॉप्टरों में से एक है. किसी भी वीवीआईपी दौरे में इसी विमान का उपयोग किया जाता है. यह डबल इंजन का हेलीकॉप्टर है, जिससे एक इंजन में खराबी आने पर दूसरे इंजन के सहारे सुरक्षित लैंडिंग कराई जा सके. इस हेलीकॉप्टर की तुलना चिनूक हेलीकॉप्टर से की जाती है.

विदेशों में हवाई जाहज के रडार का उपयोग कर उड़ सकता है हेलीकॉप्टर

वैसी जगहों पर जहां हेलीकॉप्टर रडार के संपर्क में नहीं आ पाते उसके लिए विदेशों में अब नयी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. जिसमें किसी हवाई जहाज में रडार का प्रावधान किया जाता है. ऐसे हवाई जहाज हेलीकॉप्टर के मार्ग पर ही काफी ऊंचाई से उड़ते रहता है. और हेलीकाप्टर उससे सम्पर्क बनाये उड़ सकता है. इस तरह के हेलीकॉप्टर का प्रयोग अमेरिका पकिस्तान, अफगानिस्तान में उग्रवादियों के खिलाफ की कार्रवाई में करते आ रहा है. रशिया के पास भी ऐसे हेलीकॉप्टर उपलब्ध हैं.

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