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बरसाना में लट्ठमार होली का अदभुत नजारा देख रोमांचित हुए लोग

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लट्ठमार रंगीली होली का आनंद उठाने को लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े. कस्बे की हर एक गली श्रद्धालुओं के आवागमन की चहल-पहल की गवाह बनी. रंगीली गली में तो पैर रखने को जगह नहीं मिली. होली के रंग में रंगने को बालक, युवा और वृद्ध सभी का जोश देखते ही बन रहा था.

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बरसाना. सोलह श्रृंगारों से सुसज्जित हो पूरे जोर से तड़ातड़ लाठी बरसाती, बरसाना की हुरियारिनें और एक कुशल योद्धा की भांति उन लाठियों के प्रहारों को ढालों पर रोकते नंदगांव के हुरियारे. कुछ ऐसा नजारा था मंगलवार को राधा की नगरी श्रीधाम बरसाना का. ढालों की ओट में खुद को बचाने की लीला जब रंग-रंगीले बरसाना में हुई तो मानो द्वापर युग सजीव हो उठा. लट्ठमार होली की लीला की जीवंतता का आलम ऐसा था कि इसे देखने को हर किसी की आंखें लालायित थीं और दिल इस रंग से सराबोर होने को मचल उठे. मंगलवार को सुबह से ही समूची राधा की नगरी उत्साह और उल्लास से लबरेज दिखी.

देश-दुनिया में विख्यात

लट्ठमार रंगीली होली का आनंद उठाने को लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़े. कस्बे की हर एक गली श्रद्धालुओं के आवागमन की चहल-पहल की गवाह बनी. रंगीली गली में तो पैर रखने को जगह नहीं मिली. होली के रंग में रंगने को बालक, युवा और वृद्ध सभी का जोश देखते ही बन रहा था. सुबह से ही श्रद्धालुओं ने गहवर वन की परिक्रमा लगाना शुरू कर दिया. परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु जोश व मस्ती से नाचते कूदते होली के भजन गाते चल रहे थे. श्रद्धालुओं ने एक दूसरे को गुलाल लगा कर होली की शुभकामनाएं दी. कस्बे की गलियों में खड़े स्थानीय लोगों ने परिक्रमा लगा रहे श्रद्धालुओं पर गुलाल और रंग की बारिश की. श्यामा श्याम मंदिर, गोपाल जी मंदिर, राम मंदिर, सांकरी खोर, विलासगढ़, गहवर वन, रस मंदिर, मोर कुटी, राधा सरोवर, मान गढ़, दानगढ़ और कुशल बिहारी मंदिर से होते हुए परिक्रमार्थी लाडली जी के मंदिर में पहुंचे. मंदिर में लोगों ने राधा रानी के चरणों में गुलाल भेंट किया.

हुरियारिनें सुबह से ही होली की तैयारियों में जुटी थीं

हुरियारिनें सुबह से ही होली की तैयारियों में जुटी थीं. हुरियारिनों का उत्साह देखते ही बन रहा था. आखिर साल भर जिस दिन का इंतजार रहता है, वह आ ही पहुंचा. राधा रानी की लीलाओं में सहभागिता करने का मौका जो मिला है. खुद के भाग्य को सराहती हुरियारिनें अपनी पंरपरागत पोशाक लंहगा-चुनरी को पहन कर तैयार हो रही थी. कान्हा के सखा होली खेलने आते ही होंगे. दोपहर दो बजे नंदगांव से हुरियारों के टोल के टोल आने शुरू हो गए. हुरियारों का जोश और उमंग देखते ही बन रही थी. धोती और बगलबंदी पहने हुरियारे कंधे पर ढाल रखे हुए थे. ससुराल आने के चाब में ज्यादातर हुरियारे अपने मुखिया के नेतृत्व में पैदल ही ढाई कोस चले आए थे. नंद भवन से कान्हा की प्रतीक ध्वजा के पीछे- पीछे हुरियारे झूमते गाते चले आ रहे थे. मुख पर पसीना, लेकिन थकान नहीं था. बरसाना में पहुंचते ही प्रिया कुंड पर सब इकट्ठे हो गए थे. बरसाना के गोस्वामी समाज के मुखिया के नेतृत्व में हजारों बरसानावासी उनके स्वागत को जा पहुंचे. भांग की ठंडाई में केवड़ा, गुलाब जल ओर मेवा घोल कर हुरियारों को पिलाई जा रही थी, जो कभी भांग नहीं पीता वो हुरियारा भी आज भांग पिए बिना रह नहीं पाता. यहां पर हुरियारों ने अपने सिरों पर पाग बांधी थी. प्रिया कुंड के घाटों पर सैकड़ों हुरियारे एक दूसरे के पाग बांध रहे थे. जो छोटे बच्चे पहली बार होली खेलने आए, उनके पिता या दादा उनकी पाग बांध रहे थे. ऐसा लग रहा था कि हुरियारा बनने की पंरपरा का अगली पीढ़ी को उत्तराधिकार दिया जा रहा है. प्रिया कुंड पर पाग बांधने के बाद हुरियारे लाडली जी मंदिर की ओर चल दिए.

लाखों श्रद्धालु उमड़ रहे थे

दरसन दै निकरि अटा में ते, दरसन दै, गाते हुए हुरियारे मंदिर में प्रवेश कर गए. कान्हा की प्रतीक ध्वजा को मंदिर में किशोरी जी के पास रख दियाहै. जो इस बात का प्रतीक है कि नटवर नंद किशोर फाग खेलने के लिए बरसाना आ चुके हैं. मंदिर में दोनों गांवों के गोस्वामियों के मध्य संयुक्त समाज गायन हुआ. समाज गायन में दोनों पक्ष एक दूसरे पर प्रेम भरे कटाक्ष करने लगे. समाज गायन के बाद हुरियारे मंदिर से उतर कर रंगीली गली में जा पहुंचे. रंगीली गली में हुरियारिनें अपने द्वारों पर घूंघट की ओट में टोल बना कर खड़ी हुई थीं. हुरियारों ने उनको देख कर पंचम वेद के प्रचलित पदों का गायन शुरू कर दिया. इसके बाद हुरियारिनें लाठियां लेकर मस्ती में डूबे हुरियारों पर टूट पड़ी. हुरियारों का बच के निकलना बड़ा मुश्किल हो गया. हुरियारिनों के लाठी प्रहारों को हुरियारों ने बड़ी कुशलता से अपनी ढालों पर झेलना शुरू कर दिया. एक ओर हुरियारिनें पूरे जोश से लाठियां बरसा रही थीं,वहीं हुरियारे किसी कुशल योद्धा की तरह सिर पर ढाल का आवरण रखे उछल-उछल कर खुद को बचा रहे थे. इस आनंदपूर्ण दृश्य को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़ रहे थे. लोग घंटों पहले से आस पास के मकानों की छतों, छज्जों आदि पर जमे थे, कि लठामार की एक झलक देख सकें.

समाज का इशारा होते ही तड़ातड़ चलने लगी लाठियां

बरसाना. लाडली मंदिर में समाज गायन के उपरांत हुरियारे रंगीली गली में उतर आए. रंगेश्वर महादेव मंदिर के पास खड़ी हुरियारिनों के टोल को देख हुरियारों ने होली के रसिया गाने शुरू कर दिए. हुरियारिनों ने भी रसियों का जवाब रसियों से दिया. ठीक सवा पांच बजे हुरियारों को खदेड़ने के लिए एक हुरियारिन द्वारा लाठी मारी गई. जिसे हुरियारे ने बड़ी कुशलता से अपनी ढाल पर रोक लिया. इसके बाद तो लाठियों की बरसात होने लगी. ठीक एक घंटे तक कस्बे की रंगीली गली, मुख्य बाजार, सुदामा चौक, बाग मोहल्ला, थाना मार्ग, कटारा हवेली अदि स्थानों पर जम कर लट्ठमार होली होती रही.

लाठी लगने पर स्पर्श कराया जाता है ब्रजरज

बरसाना. लट्ठमार रंगीली होली लाठियों की बरसात का मौका है. हुरियारिनों द्वारा पूरी ताकत से लाठियों का प्रहार किया जाता है. हुरियारे जिनमें तीन साल के बच्चे से लेकर 80-90 वर्षके बुजुर्ग तक शामिल होते हैं. गठिया के बुजुर्ग भी कुशलता से ढाल लेकर लाठियों का प्रहार झेलते हैं. अक्सर लाठियां लग भी जाती हैं. हल्की-फुल्की चोटें लग जाती हैं. परंपरा के अनुसार ब्रजरज को चोट पर लगा लिया जाता है. मान्यता है कि इसी ब्रजरज से घाव भर जाता है. लट्ठमार के कारण आज तक किसी को कोई ऐसी चोट नहीं लगी कि डॉक्टर के पास जाने की नौबत आई हो.

लट्ठमार होली में पंचम वेद श्लोकों ने बिखेरा निराला रंग

हुरियारों द्वारा लट्ठमार से पहले हुरियारिनों को लक्ष्य कर पंचम वेद के श्लोकों का गायन किया गया. असलियत में इस मौके पर हुरियारिनों को लक्ष्य कर हुरियारों द्वारा दोहरे अर्थ वाली शब्दावली का प्रयोग किया गया. इस परंपरा के बारे में बात करने पर एक हुरियारे ने बताया कि इस प्रकार के गाली-गलौज का प्रयोग किए जाने से हुरियारिनों का क्रोध भड़क जाता है, इसके कारण वे दूनी ताकत से लाठियों का प्रहार करती हैं. इसके कारण लठामार का आवेग बढ़ गया. पूर्व में आदि काल और भक्ति काल के दौरान राधा कृष्ण की लीलाओं के पद भक्ति और वात्सल्य के होते थे. बाद में रीति काल में रसिकता का प्रादुर्भाव हुआ और राधा कृष्ण के भक्ति के पदों में श्रंगार का समावेश हो गया, यही परंपरा धीरे-धीरे रास्ते से इतना भटकी कि आज सरेआम गालियों का प्रयोग परंपरा के नाम पर किया जाता है.

आसान नहीं है लट्ठ बरसाना

बरसाना. देखने में लट्ठमार रंगीली होली में लट्ठ बरसाती हुरियारिन का काम चाहे आसन दिखता हो, लेकिन पूरी ताकत से लाठियों के प्रहार करना कोई हंसी खेल नहीं है. हुरियारिनों में से ज्यादातर महिलाएं साधारण गृहिणी हैं, कुछ कामकाजी महिलाएं हैं. साल भर सामान्य दिनचर्या वाली इन महिलाओं के लिए लगातार एक घंटे से अधिक समय तक लाठियां बरसाना आसान काम नहीं होता है, इसके लिए बहुत स्टेमिना की जरूरत होती है, जो हुरियारिनें लंबे समय से होली खेल रही हैं, उनके लिए लट्ठ बरसाना नई हुरियारिनों की तुलना में आसान रहता है.

राधा से लट्ठमार होली खेलने आज भी आते हैं कान्हा

प्रेम का अनुराग कहे जाने वाले लट्ठमार रंगीली होली में आज भी प्रिया-प्रियतम अपने ग्वालों व सखियों के साथ होली खेलने आते हैं. सुन कर अजीब तो लग रहा होगा, लेकिन यह बात सच है. राधा-कृष्ण के होली खेलने की गवाही नंदगांव-बरसाना के दोनों मंदिर आज भी देते हैं. जानकारों के मुताबिक जब दोनों जगहों की होली होती है, उस समय मंदिर के पट बंद होते हैं. भोग भी नहीं लगता. जब तक उनकी प्रतीत्मक ध्वजा होली खेल कर वापस मंदिर में नहीं पहुंच जाती. आज से साढ़े पांच हजार वर्ष पहले नंदगांव से बरसाना होली खेलने के लिए श्रीकृष्ण अपने ग्वालों के साथ कच्चे मार्ग से आते थे. उसी परंपरा के अनुरूप आज भी उनकी प्रतीत्मक ध्वजा भी होली खेलने कच्चे रास्ते से बरसाना आती है. ध्वजा को वसंत पंचमी के दिन ही मंदिर में रोपा जाता है. मान्यता है कि इसी ध्वज रूपी डांडे के साथ नंदगांव के हुरियारे होली खेलने के लिए बरसाना आते हैं. आज भी कान्हा की होली खेलने की गवाही उनका मंदिर देता है. दोपहर 2 बजे से रात 8 बजे तक मंदिर के पट बंद रहते है, क्योंकि भाव यह है कि नंदलाल अपने सखाओं के साथ होली खेलने बरसाना गए हैं. जब तक नंदबाबा मंदिर की ध्वजा बरसाना से लौट नहीं आती, तब तक कृष्ण को न तो वंशी और न ही छड़ी धारण कराई जाती. यहां तक कि भोग भी नहीं लगता. ठीक ऐसे ही जब बरसाना के लोग फगुआ मांगने के रूप होली खेलने नंदगांव आते हैं तो राधारानी मंदिर के भी पट जब तक बंद रहते हैं. तब तक ध्वजा वापस मंदिर में नहीं आ जाती. उक्त ध्वजा के नेतृत्व में ही दोनों गांव के मुखिया होली का शुभारंभ भी करते हैं. बरसाना की लट्ठमार होली से पहले कृष्ण का प्रतीक नन्दगांव की ध्वजा लाडली जी मंदिर में पहुंचती है. वृषभानु दुलारी को होली खेलने के लिए रंगीली गली बुलाते हैं. ऐसे ही नंदगांव में भी जब बरसाना के हुरियारे होली खेलने जाते हैं तो कान्हा व उनकी भाभियों को होली खेलने बुलाते हैं.

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