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कोरोना काल में युवा पीढ़ी और किशोरों के मानसिक तनाव को कैसे करें दूर? जानिए क्या कहती हैं डॉ नीरजा अग्रवाल

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शताब्दी के सबसे बड़ी त्रासदी में सबका समय मुश्किल भरा गुजर रहा है. ऐसे में युवा पीढ़ी अछूती नहीं है.

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नई दिल्ली : कोरोना महामारी ने आम आदमी को जितना प्रभावित किया है, उससे कहीं अधिक युवा पीढ़ी, किशोर-किशोरियों और स्कूली बच्चों को प्रभावित किया है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि युवा पीढ़ी और किशोर-किशोरियों को सामाजिक और मानसिक स्तर पर प्रोत्साहित करने की जरूरत है. आइए, जानते हैं कि पुनर्वास और किशोर मनोविज्ञान विशेषज्ञ डॉ नीरजा अग्रवाल क्या जानकारी दे रही हैं…?

युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी का प्रभाव किस तरह पड़ा है?

शताब्दी के सबसे बड़ी त्रासदी में सबका समय मुश्किल भरा गुजर रहा है. ऐसे में युवा पीढ़ी अछूती नहीं है. वे समय के साथ खुद को ढाल नहीं पा रहे. उनकी दिनचर्या बिगड़ गई है. घर बैठे वे या तो अधिक खा रहे हैं या कुछ बिल्कुल नहीं खाते. कुछ किशार आक्रामक और चिड़चिड़े हो गए हैं, तो कुछ का व्यवहार में गंभीरता यानी ओसीडी (अब्सेसिव कंपलसिव डिसआर्डर) का असर दिख रहा है. इसकी वजह यह है कि पाबंदियों के दौरान घर से निकलना मना है. ज्यादातर समय मोबाइल पर बितता है. ऐसे में उनकी एकाग्रता घटी है. अपने संबंधियों को खोने वाले परिवारों में समस्या विकट हो गई है.

इसकी मनोवैज्ञानिक जांच क्या है?

मनोवैज्ञानिक परीक्षण किसी भी व्यक्ति की मानसिक, व्यवहारिक और भावनात्मक स्थिति का मूल्यांकन है. किशोर अक्सर अनचाहे फैसले थोप जाने के भय से अपनी भावनाओं को बताने में हिचकते हैं. उनके व्यवहार से उनकी भावना का पता लगाना मुश्किल होता है कि वह तनाव की किस स्थिति से गुजर रहे हैं या उनके ग्रुप के बदलाव का क्या व्यवहार है. किशोर भावनात्मक अनुभवों को अधिक तीव्रता से स्वीकार करते हैं और मजबूती से भावनात्मक स्थिति पर प्रतिक्रिया भी देते हैं. कम ही समय में उनके मन में कई तरह की भावनाएं पैदा होती हैं. बावजूद इसके कुछ विशेष तरह लक्षणों से किशोरों के तनाव की पहचान की जा सकती है, जैसे कि बना वजह का गुस्सा या चिड़चिड़ापन, आक्रामक और हिंसात्मक व्यवहार, सामाजिक दूरी बनाना, बहुत अधिक नकारात्मकता, किसी भी शौक या चीज में रूचि नही लेना, किसी भी तरह की नियमित दिनचर्या को फॉलो नहीं करना, बहुत अधिक खाना या बिल्कुल भी नहीं खाना, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना और अधिक गंभीर स्थिति में आत्महत्या का प्रयास करना आदि लक्षणों से उनकी भावनाओं का पता लगाया जा सकता है.

किशोरों मानसिक तनाव को कैसे दूर किया जा सकता है?

अभिभावकों को यह समझना होगा कि किशोर इस समय सबसे अधिक मुश्किल समय से गुजर रहे हैं. कोविड की वजह से लगाई गईं पाबंदियों के कारण बच्चे बाहर की गतिविधियों में भाग नहीं ले पा रहे हैं. लंबे समय से स्कूल और कॉलेज बंद हैं, तो बच्चे कैंपस लाइफ और दोस्तों को मिस कर रहे हैं, जिनसे अक्सर वह अपने मन की बातें साझा करते थे. इन सभी परिस्थितियों के बीच सामंजस्य बनाना बेहद मुश्किल है. किशोरों की समस्याओं को धैर्यपूर्वक समझें. यह जानने की जरूरत है कि किशोरों की ऊर्जा को पारिवारिक कार्यक्रम और ऐसी रचनात्मक कार्यों में लगाएं, जिससे वह खुद को उदासीन न महसूस करें. इस समय उनका दोस्त बनें, उनकी सराहना करें, कार्य के लिए प्रोत्साहित करें. माता-पिता को भी अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करने की कोशिश करनी चाहिए, वह भी कोशिश करें कि दिनभर में उनका स्क्रीन टाइम कम हो, लेकिन इस बात का निर्णय भी बच्चों से बात करने के बाद ही लें.

किशोरों की मानसिक स्थिति को कैसे समझा जा सकता है?

बिल्कुल सही, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता की कमी के कारण लोग तनाव को लेकर खुलकर बात नहीं करते हैं. मानसिक स्वास्थ्य को दूर करने के लिए संसाधनों की कमी है. इसके साथ ही, इस संदर्भ में की गई बातों को लोग नकारात्मक अर्थ अधिक निकालते हैं, लेकिन अब समय बदल रहा है, युवा वर्ग मानसिक तनाव को लेकर अधिक सजग है, युवा सामाजिक और व्यवहारिक मुद्दों पर बात करने की जरूरत को अच्छे से समझते हैं. युवा तनाव के विषय को लेकर आगे आ रहे हैं, और इसे कैसे दूर किया जाएं इसका भी समर्थन कर रहे हैं. इस सभी के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य के लिए ऑनलाइन काउंसलिंग को अधिक विस्तृत किया जाना चाहिए, जिससे जरूरत पड़ने पर युवा आपात स्थिति में भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सीधे संपर्क कर सकें.

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Posted by : Vishwat Sen

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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