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Tapan Sinha Birth Anniversary: समानांतर सिनेमा आंदोलन के फिल्मकार थे तपन सिन्हा

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Tapan Sinha Birth Anniversary: तपन दा एक महान फिल्मकार थे, जिन्होंने सत्यजीत रे, ऋतिक घटक और मृणाल सेन के साथ मिलकर भारतीय सिनेमा को एक नयी ऊंचाई दी. 1968 में बनायी उनकी फिल्म 'आपन जन' एक राजनीतिक प्रतीकात्मक फिल्म थी

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Tapan Sinha Birth Anniversary: तपन सिन्हा अपने समय के सबसे प्रमुख भारतीय फिल्म निर्देशकों में से एक थे, जिन्होंने सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन के साथ एक शानदार चौकड़ी बनायी थी. वे मुख्य रूप से एक बंगाली फिल्म निर्माता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा और बंगाली सिनेमा दोनों में काम किया. तपन सिन्हा के बांग्ला के साथ-साथ हिंदी में भी ‘सगीना’ (1974), ‘सफेद हाथी’ (1977), ‘आदमी और औरत’ (1982), और ‘एक डॉक्टर की मौत’ (1991) जैसी फिल्में बनायी थीं, जो प्रशंसित और व्यापक रूप में सराही गयीं.

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समानांतर सिनेमा आंदोलन के फिल्मकार थे तपन सिन्हा

1968 में बनायी उनकी फिल्म ‘आपन जन’ एक राजनीतिक प्रतीकात्मक फिल्म थी, जिसको हिंदी में ‘मेरे अपने’ नाम से बनाकर गीतकार गुलजार ने अपनी निर्देशकीय पारी की शुरुआत की थी. 1960 में टैगोर की ही कहानी पर बनायी फिल्म ‘खुद्धितो पाषान’ को गुलजार ने रुपांतरित कर 1990 में ‘लेकिन’ नाम से फिल्म बनायी थी. 1968 में बनायी उनकी फिल्म ‘गल्प होलेउ सत्यि’ को हिंदी में हृषिकेश मुखर्जी ने ‘बावर्ची’ (1972) नाम से बनाया. फिल्मी दुनिया में लगभग पांच दशकों के लंबे और समृद्ध करियर में तपन सिन्हा के कामों की गुणवत्ता और शैलियों में विविधता रही है.

सामाजिक सरोकार व मनोरंजन से भरपूर थीं उनकी फिल्में

तपन सिन्हा ने हमेशा कम बजट की फिल्में बनायीं. सामाजिक सरोकार के साथ उनकी फिल्में दर्शकों का स्वस्थ मनोरंजन करने में हमेशा कामयाब रहीं. यही वजह है कि उन्हें 19 बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए. सामाजिक, कॉमेडी, बाल फिल्मों के अलावा साहित्य आधारित फिल्में बनाने पर उन्होंने अधिक ध्यान दिया. रवींद्रनाथ ठाकुर की रचनाओं पर ‘काबुलीवाला’ तथा ‘खुद्धितो पाषान’ उनकी चर्चित फिल्में हैं. नारायण गांगुली कथा सैनिक पर उन्होंने ‘अंकुश’ फिल्म बनायी थी. शैलजानंद मुखर्जी की रचना कृष्णा पर उनकी फिल्म ‘उपहार’ लोकप्रिय फिल्म रही है. तपन सिन्हा की साहित्य आधारित फिल्में बोझिल न होकर सिनमैटिक गुणवत्ता से दर्शकों को लुभाने में कामयाब रहीं. बांग्ला के अलावा उन्होंने हिंदी में भी सफल फिल्में दीं. कभी-कभार तपन दा ने बंगाल के सबसे महंगे सितारे उत्तम कुमार या हिंदी में अशोक कुमार को अपनी फिल्मों का नायक बनाया. बंगाल में जन्मे नक्सलवाद और महिला उत्पीड़न को अधिक गहराई से उन्होंने रेखांकित किया. अमोल पालेकर को लेकर ‘आदमी और औरत’ बहुत चर्चित हुई थी.

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तकनीशियन के तौर पर फिल्मी दुनिया में रखा कदम

अमेरिकी निर्देशकों विलियम वाइलेर और जान फोर्ड के दीवाने तपन सिन्हा ने फिल्मी दुनिया में एक तकनीशियन के तौर पर प्रवेश किया. उनके फिल्मी सफर में कुल 41 फिल्में दर्ज हैं, जिनमें से 19 ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते और लंदन, वेनिस, मास्को तथा बर्लिन में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में खूब सराहना भी बटोरी. भारत का पहला लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार तपन सिन्हा को दिया गया. 20 जून, 2008 को पश्चिम बंगाल के राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी न्यू अलीपुर के उनके मकान पर जाकर उन्हें ये पुरस्कार दिया.

दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए गए थे तपन सिन्हा

इसके अतिरिक्त तपन सिन्हा को साल 2006 में भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. भारतीय फिल्म जगत के सबसे बड़े पुरस्कार दादा साहेब फाल्के से सम्मानित तपन सिन्हा का 15 जनवरी, 2009 में कोलकाता में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. 84 साल के तपन सिन्हा निमोनिया से पीड़ित थे. उन्हें 2008 में दिसंबर को सीएमआरआइ में भर्ती कराया गया था. वहीं, उनकी अभिनेत्री पत्नी अरुंधति देवी का 1990 में ही निधन हो गया था.

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